Atmadharma magazine - Ank 047
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ः २प०ः आत्मधर्मः ४७
अपेक्षाए ए बे भेद छे. जे निमित्त पोते ईच्छावाळुं के गतिमान होय तेने प्रेरक निमित्त कहेवाय छे. अने जे
निमित्त पोते स्थिर के ईच्छा वगरनुं होय तेने उदासीन निमित्त कहेवाय छे. ईच्छावाळो जीव अने गतिमान अजीव
ते प्रेरक निमित्त छे तथा इच्छा वगरनो जीव अने गति वगरना अजीव ते उदासीन निमित्त छे. परंतु बन्ने प्रकारना
निमित्तो परमां बिलकुल कार्य करता नथी. घडो थाय तेमां कुंभार अने चाक ते प्रेरक निमित्त छे अने धर्मास्तिकाय
वगेरे उदासीन निमित्त छे.
महावीर भगवानना समोसरणमां गौतमगणधर आववाथी दिव्यध्वनि छूटयो अने पहेलां छांसठ दिवस
सुधी न आववाथी ध्वनि अटकयो हतो–ए वात साची नथी. वाणीना परमाणुओमां जे समये वाणीरूपे
परिणमवानी लायकात हती ते समये ज तेओ वाणीरूपे परिणम्या छे. अने ते वखते ज बराबर गणधर देव होय
ज. गणधर आव्या माटे वाणी छूटी–एम नथी. गणधर जे समये आव्या छे ते समये ज तेमनी आववानी लायकात
हती. एवो ज सहज निमित्त–नैमित्तिक संबंध छे; तेथी गौतम गणधर न आव्या होत तो वाणी न छूटत ने?’
एवा तर्कने अवकाश ज नथी.
३९. निमित्त न होय तो....?
‘कार्य थवानुं होय पण निमित्त न होय तो...? ’ एम शंका करवानी सामे ज्ञानीओ पूछे के ‘हे भाई, तुं
जीव ज आ जगतमां न होत तो?’ अथवा तो तुं अजीव होत तो?’ शंकाकार उत्तर आपे छे के– ‘हुं जीव ज छुं तेथी
बीजा तर्कने स्थान नथी.’ तो ज्ञानी कहे छे के–जेम तुं स्वभावथी ज जीव छो तेथी तेमां बीजा तर्कने स्थान नथी तेम,
‘ज्यारे उपादानमां कार्य थाय त्यारे निमित्त होय ज छे’ एवो ज उपादान–निमित्तनो स्वभाव छे, तेथी तेमां बीजा
तर्कने अवकाश नथी.
४०. कमळमां खीलवानी लायकात होय पण सुर्य न ऊगे तो...?
कमळनुं खीलवुं अने सूर्यनुं ऊगवुं तेने सहज निमित्त–नैमित्तिक संबंध छे, पण सूर्य ऊग्यो ते कारणे कमळ
खील्युं नथी, कमळ पोतानी ते पर्यायनी लायकातथी खील्युं छे.
प्रश्न–सूर्य न ऊगे तो कमळ न खीले ने?
उत्तर– ‘कार्य थवानुं होय पण निमित्त न होय तो? एना जेवो आ प्रश्न छे. तेनुं समाधान उपरनी युक्ति
प्रमाणे समजी लेवुं ज्यारे कमळमां खीलवानी लायकात होय त्यारे सूर्यमां पण पोताना ज कारणे ऊगवानी लायकात
होय ज–एवो स्वभाव छे. कमळमां खीलवानी लायकात होय अने सूर्यमां ऊगवानी लायकात न होय–एम कदी
बने ज नहि. छतां सूर्यना निमित्तथी कमळ खीलतुं नथी अने कमळ खीलवानुं छे माटे सूर्य ऊगे छे–एम नथी.
४१. ज्यारे सुर्य ऊगे छे त्यारे ज कमळ खीले छे तेनुं शुं कारण?
प्रश्न–जो सूर्यना निमित्तथी कमळ न खीलतुं होय तो– ‘सूर्य छ वागे ऊगे तो कमळ पण छ वागे खीले, ने
सूर्य सात वागे ऊगे तो कमळ पण सात वागे खीले’–एम थवानुं शुं कारण?
उत्तर–ते वखते ज कमळमां खीलवानी लायकात छे, तेथी त्यारे ज ते खीले छे. पहेलां तेना पोतामांज
खीलवानी लायकात न हती, पण तेनी लायकात बीडाई रहेवानी ज हती. एक समये बे विरूद्ध प्रकारनी पर्यायनी
लायकात तो होई शके नहि.
४२. आ जैनदर्शननुं मूळ रहस्य छे
अहो, स्वतंत्र निरपेक्ष वस्तु स्वभाव छे; ए स्वभावने ज्यां सुधी न जाणे त्यां सुधी जीवने परना
अहंकारथी साची उदासीनता आवे नहि, विकारनो धणी ते मटे नहि अने पोतानी पर्यायनो धणी (–आधार) जे
आत्मस्वभाव तेनी द्रष्टि थाय नहि. आ स्वतंत्रता ते जैनदर्शननुं मूळ रहस्य छे.
४३. एक परमाणुनी स्वतंत्र ताकात
दरेक जीव तेमज अजीव द्रव्योनी पर्याय स्वतंत्रपणे पोताथी थाय छे. एक परमाणु पण पोतानी ज शक्तिथी
परिणमे छे; तेमां निमित्तनुं शुं प्रयोजन छे? एक परमाणु पहेला समये काळो होय अने बीजा समये धोळो थई
जाय, तेमज पहेला समये एक अंश काळो ने बीजा समये अनंतगुणो काळो थई जाय. तेमां निमित्त कोने कहेशो? ते
पोतानी योग्यताथी स्वयं परिणमी जाय छे.
४४. इंद्रियो अने ज्ञाननुं स्वतंत्र परिणमनः निमित्त–नैमित्तिक सबंधनुं स्वरूप
जड ईन्द्रियो छे माटे आत्माने ज्ञान थाय छे ए वात जुठ्ठी छे. आत्मानो त्रिकाळी सामान्यज्ञानस्वभाव
पोताने कारणे समये समये परिणमे छे, अने जे पर्यायमां जेवी लायकात होय तेटलो ज्ञाननो उघाड होय छे. पांच
ईन्द्रिय संबंधी ज्ञाननो उघाड छे माटे पांच बाह्य