Atmadharma magazine - Ank 047
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 18 of 21

background image
भाद्रपदः२४७३ः २४९ः
तेने ज निमित्त कहेवाय छे; पण ते कर्मना कारणे जीवनी पर्यायमां रागद्वेष के विलक्षणता थया नथी.
ज्यारे ज्ञाननी पर्याय अपूर्ण होय त्यारे ज्ञानावरण कर्ममां ज निमित्तपणानी लायकात छे. जीवनी पर्यायमां
जीव मोह करे त्यारे मोहकर्मने ज निमित्त कहेवाय एवी ते कर्मपरमाणुओनी योग्यता छे. जेम उपादानमां समये
समये स्वतंत्र योग्यता छे, तेम निमित्त तरीकेनी मोहकर्मना ते ते दरेक परमाणुमां समयसमयनी स्वतंत्र योग्यता छे.
प्रश्नः– जीवे रागद्वेष कर्या माटे परमाणुमां कर्म अवस्था थईने?
उत्तरः– नहि; अमुक परमाणु ज कर्मरूपे थया अने जगतना बीजा परमाणु केम न थया?–माटे जे जे
परमाणुओमां लायकात हती ते ज परमाणुओ कर्मरूपे परिणम्या छे. तेओ पोतानी लायकातथी ज कर्मरूपे थया छे,
जीवना रागद्वेषने कारणे नहि.
३६. पर उपर जोवानुं नथी पण स्वउपर जोवानुं छे
प्रश्न–ज्यारे परमाणुओमां कर्मरूपे थवानी लायकात होय त्यारे आत्माने राग–द्वेष करवा ज जोईए, केमके
परमाणुमां कर्मरूप थवानुं उपादान छे तेथी त्यां जीवना विकाररूपे निमित्त पण होवुं ज जोईए ए वात बराबर छे?
उत्तर–ए प्रश्न ज अज्ञानीनो छे. तारे तारा स्वभावमां जोवानुं काम छे के परमाणुमां जोवानुं काम छे? जेनी
स्वतंत्रद्रष्टि थई छे ते आत्मा उपर जुए छे, अने जेनी निमित्ताधीनद्रष्टि छे ते पर उपर जुए छे. ‘ज्यारे जे
वस्तुनी जे अवस्था थवानी होय ते ज थाय छे.’ एम जेणे यथार्थ निर्णय कर्यो तेने द्रव्यद्रष्टि थई–स्वभावद्रष्टि थई;
हवे स्वभावद्रष्टिमां तेने तीव्ररागादि थतां ज नथी, अने ते जीवना निमित्ते तीव्रकर्मरूपे परिणमे एवी लायकातवाळा
परमाणुओ ज आ जगतमां होता नथी. जीवे पोताना स्वभावना पुरुषार्थथी समयग्दर्शन प्रगट कर्युं त्यां ते जीवने
माटे मिथ्यात्वादि कर्मरूपे परिणमे एवी लायकात जगतना कोई परमाणुओमां होती ज नथी. अने सम्यग्द्रष्टिने जे
अल्प राग–द्वेष छे ते पोतानी वर्तमानपर्यायनी योग्यताथी रह्यो छे, ते वखने अल्प कर्मरूपे बंधावानी परमाणुनी
पर्यायमां लायकात छे. आ रीते स्वलक्षथी शरू करवानुं छे.
‘जगतना परमाणुओमां मिथ्यात्वादि कर्म थवानी लायकात छे माटे जीवने मिथ्यात्वादि भाव थवा ज
जोईए’ एवी जेनी मान्यता छे ते जीव स्वद्रव्यना स्वभावने जाणतो नथी, अने तेथी ते ते जीवना निमित्ते
मिथ्यात्वादिरूप परिणमवाने योग्य परमाणुओ आ जगतमां छे, एम जाणवुं. परंतु स्वभावद्रष्टिथी जोनार जीवने
मिथ्यात्व होतुं ज नथी अने ते जीवना निमित्ते मिथ्यात्वादिरूप परिणमे एवी लायकात ज जगतना कोई परमाणुमां
होती नथी. स्वभावद्रष्टिथी ज्ञानी विकारना अकर्ता थई थया छे, तेथी ‘ज्ञानीने विकार करवो पडे’ ए वात ज खोटी
छे. जे अल्प विकार होय ते पण स्वभावद्रष्टिना जोरे पुरुषार्थवडे टळतो ज जाय छे. आवी स्वतंत्र स्वभावद्रष्टि
(सम्यक् श्रद्धा) कर्या वगर जीव जे कांई शुभभावरूप व्रत, तप, त्याग करे ते बधुंय ‘रणमां पोक’ नी जेम
मिथ्या छे.
३७. ‘फुंकथी डुंगर उडाडवानी वात! ! !’
शंकाकार– ‘वस्तुमां ज्यारे जे पर्याय थवानी होय ते थाय अने त्यारे निमित्त होय ज, पण निमित्त कांई करे
नहि के निमित्तद्वारा कांई कार्य थाय नहि’ ए तो फूंकथी डुंगर उडाडवा जेवुं छे! !
समाधान– अरे भाई, अहीं तो फूंकथी पहाड ऊडे ए वात पण नथी. पहाडना अनंत परमाणुओमां
ऊडवानी लायकात होय तो पहाड एनी मेळे उडे छे, पहाडने उडवा माटे फूंकनी पण जरूर पडती नथी. कोईने एम
थाय के ‘अरे, आ तो केवी वात छे? शुं पहाड एनी मेळे उडता हशे?’ परंतु भाई, वस्तु मां जे काम थाय (–
अर्थात् जे पर्याय थाय) ते तेनी पोतानी ज शक्तिथी (लायकातथी) थाय छे. वस्तुनी शक्तिओ परनी अपेक्षा
राखती नथी. पर वस्तुनो तो तेमां अभाव छे तो ते शुं करे?
३८. उदासीन निमित्त अने प्रेरक निमित्त
प्रश्न–निमित्तना बे प्रकार छे–एक उदासीन अने बीजुं प्रेरक. तेमांथी उदासीन निमित्त तो कांई न करे परंतु
प्रेरक निमित्त तो उपादानने कांईक प्रेरणा करेने?
उत्तर–निमित्तना जुदा जुदा प्रकार ओळखाववा माटे ए बे भेद छे, परंतु तेमांथी कोई पण निमित्त
उपादानमां कांई ज करतुं नथी, के निमित्तना कारणे उपादानमां कांई विलक्षणता आवती नथी. प्रेरक निमित्त पण
प्रेरणा करतुं नथी. बधां निमित्तो धर्मास्तिकायवत् छे.
प्रश्न–प्रेरकनिमित्त अने उदासीननिमित्तनी व्याख्या शुं छे?
उत्तर– उपादाननी अपेक्षाए तो बन्ने पर छे, बन्ने अकिंचित्कर छे तेथी बन्ने सरखां छे. निमित्तनी