ः २४८ः आत्मधर्मः ४७
छे, लोकाकाशनी बहार जवानी तेमनामां लायकात ज नथी. ‘अलोकमां धर्मास्तिकायनो अभाव छे माटे सिद्ध त्यां
गमन करता नथी’ ए मात्र व्यवहार नयनुं कथन छे अर्थात् उपादानमां स्वयं लायकात अलोकमां जवानी न होय
त्यारे निमित्त पण न होय एवो उपादान–निमित्तनो मेळ बताववा माटे ते कथन छे.
३१. दरेक पदार्थनुं कार्य स्वतंत्र
कोईए पोताना मुनीम उपर पत्र लख्यो के अमुक रूपिया बेंकमां मूको. अने मुनीमे रूा. बेंकमां मूकया. तेमां
जीवे पत्र लखवानो विकल्प कर्यो माटे पत्र लखायो–एम नथी, पत्र आव्यो माटे मुनीमने बेंकमां रूा. मूकवानो
विकल्प आव्यो–एम नथी, अने मुनीमने विकल्प आव्यो माटे रूा. बेंकमां मूकाया तेम पण नथी. तेवी ज रीते रूा.
बेंकमां मूकावाना हता माटे मुनीमने विकल्प आव्यो–एम नथी. ए प्रमाणे दरेकमां समजी लेवुं. जीवनो विकल्प
स्वतंत्र, कागळनी अवस्था स्वतंत्र, मुनीमनो विकल्प स्वतंत्र अने रूा. नी अवस्था स्वतंत्र; मुनीमने विकल्प आव्यो
त्यारे कागळने निमित्त कहेवाणुं, तथा बेंकमां जवानी रूा. नी अवस्था थई त्यारे मुनीमना विकल्प ने तेनुं निमित्त
कहेवायुं.
३२. निमित्तने कारणे उपादानमां विलक्षणदशा थती नथी.
प्रश्नः– उपादानमां निमित्त कांई करतुं नथी ए वात तो साची, पण निमित्त होय त्यारे उपादानमां विलक्षण
अवस्था तो थवी ज जोईए ने! जेमके अग्निरूपी निमित्त आवे त्यारे पाणीने उष्ण थवुं ज जोईए.
उत्तरः– ए वात खोटी छे; जे पाणीनी पर्यायनो स्वभाव ते ज वखते उष्ण थवानो हतो ते ज पाणी ते ज
अग्निना संयोगमां आव्युं अने पोतानी लायकातथी पोतानी मेळे ज उष्ण थयुं छे, अग्निना कारणे तेने विलक्षण
थवुं पडयुं–तेम नथी; अने अग्निए पाणीने उष्ण कर्युं नथी.
३३. मिथ्याद्रष्टि संयोगने जुए छे, सम्यग्द्रष्टि स्वभावने जुए छे.
अग्निथी पाणी उष्ण थयुं–एवी मान्यता ते संयोगाधीन पराधीन द्रष्टि छे, अने पाणी पोतानी योग्यताथी
ज उष्ण थयु छे–एवी मान्यता ते स्वतंत्र स्वभावद्रष्टि छे. संयोगाधीन द्रष्टि ते मिथ्याद्रष्टि छे, ने स्वभावद्रष्टि ते
सम्यग्द्रष्टि छे.
मिथ्याद्रष्टि जीव, वस्तुना स्वभावनी समयसमयनी योग्यताथी ज दरेक कार्य थाय छे ते स्वभावने नथी
जोतो, पण निमित्तना संयोगने जुए छे, ए ज तेनी पराधीनद्रष्टि छे अने ते द्रष्टिथी परमां एकत्वबुद्धि कदी टळती
नथी. सम्यग्द्रष्टि जीव स्वतंत्र वस्तु स्वभावने जुए छे के, दरेक वस्तुनी समय समयनी योग्यताथी ज तेनुं कार्य
स्वतंत्रपणे थाय छे.
३४. उपादान अने निमित्त बन्नेनी स्वतंत्र लायकात (लूगडुं अने अग्नि)
लूगडामां जे वखते जे क्षेत्रे जे संयोगमां बळवानी लायकात होय ते वखते ते क्षेत्रे ते संयोगमां तेनी
बळवानी पर्याय थाय छे, अने अग्नि ते वखते स्वयं होय छे. अग्नि आवी माटे लूगडुं बळी गयुं–एम नथी. अने
‘लूगडामां बळी जवानी अवस्था थवानी लायकाय होय पण अग्नि के बीजो योग्य संयोग न आवे तो ते अवस्था
अटकी जाय’–एम पण नथी; जे समये योग्यता होय ते समये ज ते बळे ज अने ते वखते अग्नि पण होय ज.
छतां अग्निनी उपस्थितिना कारणे लूगडानी अवस्थामां कांई पण विलक्षणता थई नथी. अग्निए लूगडांने बाळ्युं
ते मान्यता मिथ्यात्व छे.
कोई पूछे के लूगडुं बळती वखते अमुक ज अग्नि हतो अने बीजो न हतो तेनुं शुं कारण? तो तेनो उत्तर ए
छे के–ते वखते जे अग्नि हतो ते ज अग्निनी निमित्तपणानी लायकात हती, बीजो अग्नि न ज होय केमके तेनामां
निमित्तपणानी लायकात हती ज नहि. उपादान वखते जे निमित्तनी योग्यता होय ते निमित्त ज होय, बीजुं होय ज
नहि. सौना पोताना कारणे सौनी अवस्था थइ रही छे, त्यां ‘निमित्तथी थयुं अथवा निमित्ते कर्युं’ एम अज्ञानी
माने छे.
३प. उपादान अने निमित्त बन्नेनी स्वतंत्र लायकात (आत्मा अने कर्म)
आत्मा पोतानी पर्यायमां ज्यारे राग–द्वेष करे त्यारे कर्मना जे परमाणुओनी योग्यता होय ते उदयरूप होय
ज, कर्म न होय तेम न बने; पण कर्म उदयमां आव्युं माटे जीवने राग–द्वेष थया ए मान्यता खोटी छे. अने रागद्वेष
कर्या माटे कर्म आव्युं–ए मान्यता पण खोटी छे. जीवने पोताना पुरुषार्थनी नबळाईथी राग–द्वेष थवानी योग्यता
हती तेथी ज रागद्वेष थया छे अने ते वखते जे कर्मोमां योग्यता हती ते कर्मो उदयमां आव्या छे अने