Atmadharma magazine - Ank 047
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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भाद्रपदः२४७३ः २४७ः
ज्यारे मारो हाथ तेने निमित्त थाय त्यारे ते उपडे’–एम माननार जीवो वस्तुनी पर्यायने स्वतंत्र मानता नथी
एटले के तेओनी संयोगीद्रष्टि छे; तेओ वस्तुना स्वभावने ज मानता नथी, तेथी मिथ्याद्रष्टि छे. लाकडुं ज्यारे ऊंचुं
नथी थतुं त्यारे तेनामां ऊंचुं थवानी लायकात ज नथी, अने ज्यारे तेनामां लायकात होय छे त्यारे ते स्वयं ऊंचुं
थाय छे; पण हाथना निमित्तथी ऊंचुं थतुं नथी. पण ज्यारे ऊंचुं थाय त्यारे हाथ वगेरे निमित्त स्वयमेव होय ज.
एवो उपादान–निमित्तनो मेळ कुदरती स्वभावथी ज होय छे. निमित्तनुं ज्ञान कराववा माटे ‘हाथना निमित्ते ऊंचुं
थयुं’ एम कहेवानो मात्र व्यवहार छे.
२७. लोकचूंबक सोयने खेंचतो नथी.
लोकचूंबक पत्थर तरफ लोढानी सोय खेंचाय छे, त्यां लोकचूंबके सोयने खेंची नथी पण सोये पोतानी
योग्यताथी ज गमन कर्युं छे.
प्रश्नः– जो सोय पोतानी योग्यताथी ज गमन करती होय तो ज्यारे लोकचूंबक पत्थर पासे न हतो त्यारे केम
गमन न कर्युं? अने ज्यारे ते पत्थर नजीक आव्यो त्यारे ज केम गमन कर्युं?
उत्तरः– पहेला सोयमां गमन करवानी योग्यता ज न हती तेथी ते वखते लोकचूंबक पासे (सोयने खेंचावा
योग्य क्षेत्रमां) होय ज नहि. अने ज्यारे सोयमां क्षेत्रांतर करवानी योग्यता होय त्यारे लोकचूंबक अने तेना वच्चे
अंतराय होय ज नहि. एवो ज उपादान–निमित्तनो संबंध छे के बन्नेनो मेळ होय. छतां एकबीजाना कारणे कोईनी
क्रिया थई नथी. सोयनी गमन करवानी योग्यता थई माटे लोकचूंबक नजीक आव्यो– एम नथी अने लोकचूंबक
नजीक आव्यो माटे सोय खेंचाणी–तेम पण नथी. सोयनी क्षेत्रांतरनी लायकात होय छे ते ज वखते लोकचूंबकमां ते
क्षेत्रे ज रहेवानी लायकात होय छे–आनुं नाम ज निमित्त–नैमित्तिक संबंध छे.
२८. निमित्तपणानी लायकात
प्रश्नः– लोकचूंबक पत्थर सोयमां कांई ज नथी करतो तो तेने ज निमित्त केम कह्युं? अन्य सामान्य पत्थरने
निमित्त केम न कह्युं? जेम लोकचूंबक सोयने कांई नथी करतो छतां तेने निमित्त कहेवाय छे, तो पछी लोकचूंबकनी
जेम अन्य पत्थर पण सोयने कांई नथी करतां छतां तेने निमित्त केम नथी कहेवातुं?
उत्तरः– ते समये ते कार्यमां लोकचूंबक पत्थरमां ज निमित्तपणानी लायकात छे, अर्थात् उपादानना कार्य
माटे अनुकूळतानो आरोप आपी शकाय तेवी लायकात लोकचूंबक पत्थरनी ते समयनी पर्यायमां छे, बीजा पत्थरमां
तेवी लायकात ते समये नथी. जेम सोयमां उपादानपणानी लायकात छे तेथी ते खेंचाय छे, तेम ते वखते ज
लोकचूंबकपत्थरमां
निमित्तपणानी लायकात छे तेथी तेने निमित्त कहेवाय छे. एक समयनी उपादाननी लायकात
उपादानमां छे. अने एक समयनी निमित्तनी लायकात निमित्तमां छे. पण बंनेनी लायकातनो मेळ छे तेथी अनुकूळ
निमित्त कहेवाय छे. लोकचूंबकमां निमित्तपणानी जे लायकात छे तेने बीजा बधा पदार्थोथी जुदी पाडीने ओळखवा
माटे तेने ‘निमित्त’ कहेवाय छे, पण तेना कारणे सोयमां किंचित् विलक्षणता थई नथी. उपादानमां कार्य थाय त्यारे
व्यवहारे–आरोपथी बीजा पदार्थने निमित्त कहेवाय छे. ज्ञाननो स्वभाव स्वपर प्रकाशक छे तेथी ते उपादान अने
निमित्त बन्नेने जाणे छे.
२९. निमित्तनुं स्वरूप समजवा माटे धर्मास्तिकायनुं द्रष्टांत
बधाय निमित्तो ‘धर्मास्तिकायवत्’ छे (जुओ इष्टोपदेश गाथा ३प) धर्मास्तिकाय पदार्थ तो लोकमां सर्वत्र
छे. ज्यारे वस्तु पोतानी योग्यताथी चाले त्यारे धर्मास्तिकायने निमित्त कहेवाय, अने वस्तु न चाले तो तेने निमित्त
कहेवाय नहि. धर्मास्तिकायनी माफक ज बधा निमित्तोनुं स्वरूप समजी लेवुं. धर्मास्तिकायमां निमित्तपणानी एवी
लायकात छे के पदार्थो गति करे तेमां ज तेने निमित्त कहेवाय, पण स्थितिमां तेने निमित्त कहेवाय नहि, स्थितिमां
निमित्त कहेवाय–एवी लायकात अधर्मास्तिकायमां छे.
३०. सिद्ध भगवान अलोकमां केम नथी जता?
सिद्ध भगवान पोतानी क्षेत्रांतरनी लायकातथी एक समयमां ज्यारे लोकाग्रे गमन करे छे त्यारे
धर्मास्तिकायने निमित्त कहेवाय छे, परंतु कांई धर्मास्तिकायना अभावने लीधे तेमनुं अलोकमां गमन थतुं नथी एम
नथी तेओ लोकाग्रे स्थित थाय छे ते पण तेमनी ज तेवी लायकात छे ते कारणे छे ते वखते अधर्मास्तिकायने निमित्त
कहेवाय छे.
प्रश्नः– सिद्धभगवान लोकाकाशनी बहार केम गमन करता नथी?
उत्तरः– तेमनी लायकात ज तेवी छे; केमके ते लोकनुं द्रव्य छे अने तेनी लायकात लोकना छेडा सुधी ज
जवानी