Atmadharma magazine - Ank 047
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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२४६ः आत्मधर्मः ४७
अने स्वने वर्तमान पर्याय पुरता ज न मान्या पण कायमना मान्या. आत्मानो कायमनो स्वभाव तो शुद्ध
रागरहित छे तेथी ते जीव रागनो अकर्ता थयो, अने परपदार्थोने कायमना मान्या एटले के ते पदार्थोमां तेनी त्रणे
काळनी पर्यायनी लायकात पडी छे, ते मुजब ज तेनी अवस्था स्वतंत्रपणे थाय छे. आ रीते सम्यक् नियतवादना
निर्णयमां स्वतंत्रतानी प्रतीत थई. पोतानी अवस्थानो आधार द्रव्य छे, ने द्रव्यस्वभाव तो शुद्ध छे–एवी प्रतीति
पूर्वक ‘जे बनवानुं होय ते बने’ एम माने छे ते जीव वीतरागीद्रष्टि छे. आ नियतवाद तो वीतरागतानुं कारण छे.
नियतवादना बे प्रकार छे–एक सम्यक् नियतवादने बीजो मिथ्यानियतवाद. सम्यक्नियतवादतो
वीतरागतानुं कारण छे, एनुं स्वरूप उपर बताव्युं छे. कोई जीव ‘जेम बनवानुं होय तेम ज बने छे’ एम
नियतवादने माने खरो, परंतु परनुं लक्ष अने पर्यायद्रष्टि छोडीने स्वभाव तरफ ढळे नहि, नियतवादने जे नक्की
करनार छे एवा पोताना ज्ञान अने पुरुषार्थनी स्वतंत्रताने स्वीकारे नहि, परनुं अने विकारनुं कर्तापणानुं
अभिमान छोडे नहि–ए रीते पुरुषार्थने उथापीने स्वछंदे प्रवर्ते–एने गृहीतमिथ्याद्रष्टि कह्यो छे.
‘थवानुं होय ते थाय छे’ एम मात्र पर लक्षे मान्युं ते यथार्थ नथी, ‘थवानुं होय ते थाय छे’ एवो जो
यथार्थ निर्णय होय तो जीवनुं ज्ञान पर प्रत्ये उदासीन थईने पोताना स्वभावमां वळी जाय, अने ते ज्ञानमां यथार्थ
शांति थई जाय. ते ज्ञान साथे ज पुरुषार्थ, नियति, काळ स्वभाव ने कर्म–ए पांचे समवाय आवी जाय छे.
२३. मिथ्या नियतवादना उपलक्षणो
प्रश्नः– मिथ्यानियतवादी जीव पण पर वस्तु भांगी जाय के नष्ट थई जाय त्यारे ‘जेम बनवानुं हतुं तेम
बन्युं’ एम मानीने शांति तो राखे छे? तो पछी तेने सम्यक्नियतवादनो निर्णय केम नथी?
उत्तरः– ते जीव जे शांति राखे छे ते यथार्थ नथी पण मंदकषायरूप शांति छे. जो नियतवादनो यथार्थ निर्णय
होय तो, जेवी रीते ते एक पदार्थनुं जेम बनवानुं हतुं तेम बन्युं तेवी रीते बधाय पदार्थोनुं बनवानुं होय तेम ज
बने छे–एवो पण निर्णय होय. अने जो एम होय तो पछी ‘हुं परद्रव्योने निमित्त थाउं तो तेनुं काम थाय, निमित्त
होय तो ज काम थाय, निमित्तनुं कोई वखते जोर छे’ एवी बधी मान्यता टळी जाय छे. ‘बधुं नियत छे’ एटले जे
कार्यमां जे समये जे निमित्तनी हाजरी रहेवानी होय ते कार्यमां ते समये निमित्त स्वयमेव होय ज. तो पछी
‘निमित्त मेळववुं जोईए अथवा निमित्तनी उपेक्षा न करी शकाय अथवा तो निमित्त न होय तो कार्य न थाय’ एवी
मान्यताओने अवकाश ज क्यां छे? जो सम्यक् नियतवादनो निर्णय होय तो निमित्ताधीनद्रष्टि टळी जाय छे.
२४. मिथ्यानियतवादने ‘गृहीत’ मिथ्यात्व केम कह्युं?
प्रश्नः– मिथ्यानियतवादने गृहीतमिथ्यात्व केम कह्युं छे?
उत्तरः–निमित्तथी धर्म थाय, रागथी धर्म थाय, शरीरादिनुं आत्मा करी शके एवी मान्यतारूप
अगृहीतमिथ्यात्व तो अनादिनुं हतुं. अने जन्म्या पछी शास्त्र वांचीने अथवा कुगुरु वगेरेना निमित्ते
मिथ्यानियतवादनो नवो कदाग्रह ग्रहण कर्यो तेथी तेने गृहीतमिथ्यात्व कहेवाय छे. पहेलां जेने अनादिनुं
अगृहीतमिथ्यात्व होय तेने ज गृहीतमिथ्यात्व थाय. जीवो साताशीळियापणाथी, इन्द्रियविषयोना पोषण माटे,
‘थवानुं हशे तेम थशे’ एम कही एक स्वछंदतानो मार्ग शोधी काढे छे तेनुं नाम गृहीतमिथ्यात्व छे, अने आ
सम्यक्नियतवाद तो स्वभावभाव छे, स्वतंत्रता छे, वीतरागता छे.
२प. सम्यक् नियतवादना निर्णयथी निमित्ताधीनद्रष्टि अने स्वपरनी एकत्वबुद्धि टळे छे.
जे वस्तुमां जे वखते जेवी पर्याय थवानी होय अने जे निमित्तनी हाजरीमां थवानी होय, ते वस्तुमां ते
वखते तेवी पर्याय थाय ज अने ते निमित्तो ज ते वखते होय. बीजी पर्याय थाय नहि अने बीजुं निमित्त होय नहि.
ए नियममां त्रणकाळ त्रणलोकमां फेरफार थाय नहि. आ ज यथार्थ नियतनो निर्णय छे, तेमां आत्मस्वभावना
श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र आवी जाय छे, अने निमित्त उपरनी द्रष्टि टळी जाय छे. ‘हुं परनो कर्ता तो नथी पण हुं परनो
निमित्त थाउं’ एवी जेनी मान्यता छे ते मिथ्याद्रष्टि छे. पोते निमित्त छे माटे परनुं कार्य थाय छे–एम नथी, पण
सामी चीजमां तेनी योग्यताथी जे कार्य थाय छे तेमां अन्य चीजने निमित्त कहेवामां आवे छे. ‘हुं निमित्त थाउं’
तेनो अर्थ एवो थयो के वस्तुमां कार्य थवानुं न हतुं पण हुं निमित्त थयो त्यारे तेमां कार्य थयुं. एटले ते तो स्वपरनी
एकत्वबुद्धि ज थई.
२६. लाकडुं एनी मेळे ऊंचुं थाय छे, हाथना निमित्तथी नहि
‘आ लाकडुं छे तेनामां ऊंचुं थवानी लायकात छे पण ज्यारे मारो हाथ तेने स्पर्शे त्यारे ते उपडे अर्थात्