Atmadharma magazine - Ank 047
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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भाद्रपदः२४७३ः २४पः
हवे पोतानी पर्याय पण क्रमबद्ध ज छे, ते क्रमबद्धपणानो निर्णय करनारुं ज्ञान, राग होवा छतां तेनो निषेध करीने
द्रव्यस्वभाव तरफ ढळे छे. कई रीते ढळे छे? ज्यारे रागने जाणे छे त्यारे ज्ञानमां एम विचारे छे के, मारी क्रमबद्ध
पर्यायो मारा द्रव्यमांथी प्रगटे छे, त्रिकाळी द्रव्य ज एक पछी एक पर्यायने द्रवे छे, ते त्रिकाळी द्रव्य रागस्वरूप नथी,
माटे आ जे राग थयो छे ते पण मारुं स्वरूप नथी अने हुं तेनो कर्ता नथी. आ रीते, सम्यक्नियतवादनो पोताना
ज्ञानमां जेणे यथार्थ निर्णय कर्यो ते जीवनुं ज्ञान पोताना शुद्धस्वभाव तरफ ढळ्‌युं अने तेने स्वभावनां श्रद्धा–ज्ञान
थयां, परथी उदासीन थयो, रागनो अकर्ता थयो, ने परथी तथा विकारथी खसीने बुद्धि स्वभावमां ज रोकाणी.–आ
सम्यक्नियतवादनुं फळ छे; तेमां ज्ञान अने पुरुषार्थनो स्वीकार छे. पण जे जीव नियतवादने माने छे एटले के जेम
थवानुं हशे तेम थशे–एम माने छे, परंतु नियतवादना निर्णयमां पोतानुं जे ज्ञान अने पुरुषार्थ आवे छे तेनो
स्वीकार करतो नथी अर्थात् स्वभाव तरफ ढळतो नथी ते मिथ्याद्रष्टि छे; अने नियतवाद ते गृहीत मिथ्यात्वनो भेद
छे तेथी ते गृहीतमिथ्याद्रष्टि छे.
२०. सम्यक् नियतवादमां पुरुषार्थ वगेरे पांचे समवाय एक साथे छे.
जे अज्ञानीओ यथार्थ निर्णय न करी शके तेमने एम लागे के आ तो एकांत नियतवाद थई जाय छे. परंतु
आ नियतवादनो यथार्थ निर्णय करतां तो पोताना केवळज्ञाननो निर्णय थई जाय छे. गुरु, शिष्य, शास्त्र वगेरे
बधाय पदार्थोनी जे समये जे लायकात होय ते ज पर्याय थाय छे एम नक्की कर्युं एटले पोते तेनो जाणनार रही
गयो, जाणवामां विकल्प नहि; अस्थिरतानो जे विकल्प ऊठे तेनो कर्ता नहि. ए रीते क्रमसर पर्यायनी श्रद्धा थतां
द्रव्यद्रष्टि थईने रागनुं कर्तापणुं उडी जाय छे. आवा सम्यक् नियतवादनी श्रद्धामां ज पांचे समवाय एक साथे समाई
जाय छे. प्रथम तो स्वभावनुं ज्ञान अने श्रद्धा करी ते पुरुषार्थ, ते ज समये जे निर्मळ पर्याय प्रगटवानुं नियत हतुं ते
ज पर्याय प्रगटी छे–ते नियति, ते समये जे पर्याय प्रगटी ते ज स्वकाळ, जे पर्याय प्रगटी ते स्वभावमां हती–ते ज
प्रगटी छे तेथी ते स्वभाव, अने ते वखते पुद्गल कर्मनो स्वयं अभाव होय छे ते अभावरूप निमित्त; अने सद्गुरु
वगेरे होय ते सद्भावरूप निमित्त छे. क्रमबद्धपर्याय ज थाय छे एनी श्रद्धा करतां अथवा तो सम्यक् नियतवादनो
निर्णय करतां जीव जगतनो साक्षी थई जाय छे. आमां स्वभावनो अनंत पुरुषार्थ समाय छे, आ जैनदर्शननुं
मूळभूत रहस्य छे.
२१. सम्यक् नियतवाद ने मिथ्या नियतवाद
गोमट्टसार कर्मकांड गा. ८८२मां जे नियतवादी जीवने गृहीत मिथ्याद्रष्टि कह्यो छे ते जीव तो नियतवादनी
वात करे छे पण पोताना ज्ञानमां ज्ञाताद्रष्टापणानो पुरुषार्थ करतो नथी. जो सम्यक्नियतवादनो यथार्थ निर्णय करे
तो स्वभावनो ज्ञाता–द्रष्टापणानो पुरुषार्थ तेमां आवी ज जाय छे. पण ते जीव तो एकला पर लक्षे ज नियतवाद
मानी रह्यो छे अने नियतवादना निर्णयमां पोतानुं जे ज्ञान अने पुरुषार्थ कार्य करे छे तेने ते स्वीकारतो नथी तेथी
ते जीव मिथ्या नियतवादी छे अने तेने ज गृहीतमिथ्यात्वी कह्यो छे. नियतवादनो सम्यक्निर्णय ते तो गृहीत तेमज
अगृहीतमिथ्यात्वनो नाश करनार छे. सम्यक्नियतवाद कहो के स्वभाव कहो, तेमां ते दरेक समयनी पर्यायनी
स्वतंत्रता सिद्ध थई जाय छे. जो आ न्याय जीव बराबर समजे तो उपादान–निमित्त संबंधी बधा गोटाळा पण टळी
जाय. केमके–जे वस्तुमां जे समये जे पर्याय थवानी छे ते ज थाय छे, तो पछी ‘अमुक निमित्त जोईए अथवा अमुक
निमित्त वगर न थाय’ एवी वातने अवकाश ज क्यां छे? सम्यक्नियतवादनो निर्णय करवामां पुरुषार्थ आवे छे,
साची श्रद्धा–ज्ञान कार्य करे छे. स्वभावमां बुद्धि रोकाय छे–छतां ते बधाने जे जीव नथी मानतो अने नियतवादनी
वात करे छे ते जीवने एकांती गृहीत मिथ्याद्रष्टि कहेवामां आव्यो छे. पण जे जीव नियतवादने मानीने परना अने
रागना कर्तापणानो अभाव करे छे तथा ज्ञाताद्रष्टापणानो साक्षीभाव प्रगट करे छे ते जीव तो अनंत पुरुषार्थी
सम्यग्द्रष्टि छे.
२२. कोण कहे छे–सम्यक् नियतवाद ते गृहीतमिथ्यात्व छे?
सम्यक् नियतवाद ते गृहीतमिथ्यात्व नथी पण वीतरागतानुं कारण छे. जेओ आवा सम्यक् नियतवादने
एकांत मिथ्यात्व कहे छे तेओ आ वातने यथार्थ समज्या तो नथी, पण आ वात तेमणे बराबर सांभळी पण नथी.
‘बधा ज पदार्थोमां जेम बनवानुं होय तेम ज बने’ ए निर्णय करतां, एक पर्याय उपरथी द्रष्टि छूटीने त्रिकाळ तरफ
द्रष्टि लंबाणी अर्थात् द्रव्यद्रष्टि थई, एटले परने