Atmadharma magazine - Ank 047
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 13 of 21

background image
ः २४४ः आत्मधर्मः ४७
१४. केवळज्ञान अने वज्रर्षभनाराचसंहनन–बन्नेनी स्वतंत्रता
केवळज्ञान थाय त्यारे वज्रर्षभनाराचसंहनन निमित्त होय छे. पण ते वज्रर्षभनाराचसंहनन निमित्तरूपे छे
माटे केवळज्ञान थयुं छे–एम नथी. अने केवळज्ञान थवानुं छे माटे वज्रर्षभनाराचसंहननपणे परमाणुओने थवुं
पडयुं–एम पण नथी. ज्यां जीवनी पर्यायमां केवळज्ञानना पुरुषार्थनी जागृति होय छे त्यां शरीरना परमाणुओमां
वज्रर्षभनाराचसंहननरूप अवस्था तेनी लायकातथी होय छे. बन्नेनी लायकात स्वतंत्र छे, कोईना कारणे कोई
नथी. जीवने केवळज्ञान पामवानी योग्यता होय त्यारे शरीरना परमाणुओमां वज्रर्षभनाराचसंहननरूप अवस्थानी
ज योग्यता होय–एवो मेळ स्वभावथी ज छे, कोई एकबीजाना कारणे नथी.
१प. पेट्रोल खूटयुं माटे मोटर अटकी–ए वात साची नथी.
एक मोटर चालती होय अने तेनी पेट्रोलनी टांकी फूटी जतां तेमांथी पेट्रोल नीकळी जाय अने मोटर चालती
अटकी जाय. त्यां पेट्रोल नीकळी गयुं माटे मोटर अटकी गई–एम नथी. जे समये मोटरमां गतिरूप अवस्थानी
लायकात होय ते समये ते गति करे छे, ते वखते पेट्रोलनी अवस्था मोटरनी टांकीना क्षेत्रमां रहेवानी होय छे. पण
पेट्रोल छे माटे मोटर चाले छे–ए वात खोटी छे. मोटरना दरेक परमाणु पोतानी स्वतंत्र क्रियावती शक्तिनी
लायकातथी गमन करे छे. अने पेट्रोल नीकळी गयुं माटे मोटरनी गति अटकी गई–एम नथी. जे क्षेत्रे जे समये
अटकवानी लायकात हती ते ज क्षेत्रे अने ते ज समये मोटर अटकी छे, अने पेट्रोलना परमाणुओ पण पोतानी
लायकातथी ज छूटा पडया छे. पेट्रोल खूटयुं माटे मोटर अटकी–ए वात साची नथी.
१६. वाणी एनी मेळे (–परमाणुओथी) बोलाय छे, जीव तेनो कर्ता नथी
बोलवानो विकल्प–राग थयो माटे वाणी बोलाणी–एम नथी अने वाणी बोलावानी हती माटे विकल्प
थयो–एम पण नथी. रागना कारणे जो वाणी बोलाती होय तो, राग कर्ता अने वाणी तेनुं कर्म–एम ठरे. अथवा
वाणी बोलावानी हती माटे राग थयो एम होय तो, वाणीना परमाणु कर्ता अने राग तेनुं कर्म–एम ठरे. पण राग
तो जीवनी पर्याय छे अने वाणी तो परमाणुनी पर्याय छे–तेमने कर्ताकर्मभाव क्यांथी होय? जीवनी पर्यायनी
लायकात होय तो राग थाय छे, ने वाणी ते परमाणुनुं ते वखतनुं सहज परिणमन छे. परमाणुओ स्वतंत्रपणे
वाणीरूपे परिणमे त्यारे जीवने राग होय तो तेने निमित्त कहेवाय छे. केवळी भगवानने वाणी होय छतां राग होतो
नथी.
१७. शरीर एनी पोतानी योग्यताथी चाले छे, जीवनी इच्छाथी नहि.
जीव इच्छा करे माटे शरीर चाले छे–एम नथी. अने शरीर चाले छे माटे जीवने इच्छा थाय छे–एम पण
नथी. शरीरना परमाणुओमां क्रियावती शक्तिनी लायकातथी गति थाय छे, त्यारे कोई जीवने पोतानी अवस्थानी
लायकातथी इच्छा होय छे अने कोईने नथी पण होती. केवळीने शरीरनी गति होवा छतां इच्छा नथी होती.
इच्छाना निमित्तथी शरीर चाले छे–ए वात खोटी छे. अने गतिना निमित्तथी इच्छा थाय छे–ए वात पण खोटी छे.
१८. विकल्प निमित्त छे माटे ध्यान जामे छे–ए वात साची नथी.
चैतन्यना ध्याननो विकल्प ऊठे ते राग छे; ते विकल्परूपी निमित्तना कारणे ध्यान जामे छे–एम नथी, पण
ज्यां ध्यान जामवानुं होय त्यां पहेलां विकल्प होय छे. पण विकल्पने कारणे ध्यान नथी, ने ध्यानने कारणे विकल्प
नथी. जे पर्यायमां विकल्प हतो ते ते पर्यायनी स्वतंत्र लायकातथी हतो अने जे पर्यायमां ध्यान जाम्युं ते ते
पर्यायनी स्वतंत्र लायकातथी जाम्युं छे.
१९. सम्यक्नियतवाद अने तेनुं फळ
सम्यक् नियतवाद छे. मिथ्या नियतवाद नथी. सम्यक् नियतवाद एटले शुं? जे पदार्थमां जे
समये जे क्षेत्रे जे निमित्ते जेम थवानुं तेम थवानुं ज छे, तेमां किंचित् फेरफार करवा कोई समर्थ नथी–एवो ज्ञानमां
निर्णय करवो ते सम्यक् नियतवाद छे, अने ते निर्णयमां स्वभाव तरफनो अनंत पुरुषार्थ आवी जाय छे. बधुं ज
नियत छे एम जे ज्ञाने निर्णय कर्यो ते ज्ञानमां एम पण निर्णय थई गयो के कोई पण द्रव्यमां कांई पण फेरववा हुं
समर्थ नथी. ए रीते, नियतनो निर्णय करतां ‘हुं परनुं करी शकुं’ एवो अहंकार टळी गयो अने ज्ञान परथी
उदासीन थई स्वभाव तरफ वळ्‌युं.