Atmadharma magazine - Ank 047
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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भाद्रपदः२४७३ः २४३ः
माटे जीवना भावने लीधे बहारमां खातमुहूर्तनी क्रिया थई–ए वात खोटी छे. जीव मात्र निमित्त उपर लक्ष करे
अथवा लक्ष छोडे, पण निमित्तरूप परपदार्थोमां ते कांई फेरफार करी शके नहि. आवो वस्तुनो स्वभाव ज छे; आ
समजवुं ते भेदज्ञान छे.
११. पंचमहाव्रतने कारणे चारित्रदशा नथी, ने चारित्रना कारणे वस्त्रनो त्याग नथी.
जेने आत्मानी निर्मळ वीतरागी चारित्र दशा थाय तेने ते दशा थया पहेलां चारित्र अंगीकार करवानो
विकल्प ऊठे. जे विकल्प ऊठयो ते राग छे, तेना कारणे वीतरागभावरूप चारित्र प्रगटतुं नथी; चारित्र तो ते ज
समयनी पर्यायना पुरुषार्थथी प्रगटयुं छे.
चारित्रदशामां शरीरनी नग्नदशा शरीरना कारणे होय छे. आत्माने चारित्र अंगीकार करवानो विकल्प
ऊठयो तेना कारणे अथवा तो चारित्रदशा प्रगट करी तेना कारणे शरीर उपरथी लूगडांं खसी गयां–एम नथी, पण
ते समये लूगडांंनां परमाणुओनी अवस्थामां क्षेत्रांतरनी तेवी ज लायकात हती तेथी ज ते खस्यां छे. आत्माए
विकल्प कर्यो माटे ते विकल्पने आधीन लूगडांं छूटी गयां–एम जो होय तो विकल्प ते कर्ता थयो अने लूगडांं छूटयां
ते तेनुं कर्म थयुं एटले के बे द्रव्यो एक थई जाय. तेवी ज रीते लुगडांं छूटवानां हतां माटे जीवने विकल्प आव्यो एम
पण नथी; केमके जो एम होय तो लुगडांंनी पर्याय ते कर्ता ठरे अने विकल्प आव्यो ते तेनुं कर्म ठरे, एटले के बे द्रव्यो
एक थई जाय. पण ज्यारे स्वभावना भानपूर्वक चारित्रनो विकल्प ऊठे अने चारित्र ग्रहण करे त्यारे वस्त्र
छूटवानो प्रसंग सहजपणे तेना कारणे होय छे. पण ‘में वस्त्र छोडयां अथवा तो मारो विकल्प निमित्त थयो तेथी
वस्त्र छूटी गयां’ एवी मान्यता ते मिथ्यात्व छे. वीतरागीचारित्र पहेलां पंचमहाव्रतादिनो विकल्प आव्या वगर न
रहे, पण ते विकल्पना आश्रये चारित्रदशा प्रगटती नथी.
चारित्रमां पंचमहाव्रतना विकल्पने निमित्त कहेवाय छे. विकल्प तो राग छे तेनाथी स्वभाव तरफ ढळातुं
नथी पण विकल्प छोडीने स्वभाव तरफ ढळे त्यारे पूर्वना विकल्पने निमित्त कहेवाय छे. पंचमहाव्रतादिना विकल्पने
चारित्रनुं निमित्त क्यारे कहेवाय? जो स्वभावमां लीनतानो पुरुषार्थ करीने चारित्रदशा प्रगट करे तो विकल्पने तेनुं
निमित्त कहेवाय. पण पंचमहाव्रतना विकल्परूप निमित्त करुं तो चारित्र प्रगटे–एवी मान्यता ते मिथ्यात्व छे. तेवी
ज रीते व्यवहार दर्शन व्यवहार ज्ञान ने व्यवहार चारित्रना परिणाम करुं तो तेनाथी निश्चय दर्शन–ज्ञान–चारित्र
प्रगटे ए मान्यता पण मिथ्यात्व छे.
१२. समय समयनी स्वतंत्रता अने भेदज्ञान
आ वात दरेक वस्तुना स्वतंत्र स्वभावनी छे. स्वभावनी स्वतंत्रता न समजे अने ‘निमित्तथी थाय’ एम
माने त्यां सम्यक्श्रद्धा नथी, अने सम्यक्श्रद्धा वगर ज्ञान साचुं नथी, शास्त्रनां भणतर साचां नथी, व्रत साचां नथी,
त्याग साचो नथी. दरेक वस्तुमां समय–समयनी पर्यायनी स्वतंत्रता छे. दरेक पदार्थमां तेना कारणे समय–समयनी
तेनी पर्यायनी लायकातथी कार्य थाय छे. पर्यायनी लायकात ते उपादान कारण छे. अने ते वखते ते कार्य माटे
अनुकूळतानो आरोप जेना उपर आवी शके एवी लायकातवाळी बीजी चीज योग्य क्षेत्रे होय छे तेने निमित्त कारण
कहेवाय छे, पण तेना कारणे वस्तुमां कांई थतुं नथी. आवुं भिन्नतानुं यथार्थ भान ते भेदज्ञान छे.
आत्मा तेमज दरेक परमाणुनी पर्याय स्वतंत्र छे. जीवने वांचवानो विकल्प ऊठयो माटे पुस्तक हाथमां
आव्युं एम नथी, अथवा तो पुस्तक आव्युं माटे विकल्प ऊठयो–एम नथी. तेमज ज्ञान थवानुं हतुं माटे वांचवानो
विकल्प ऊठयो–एम नथी अने वांचवानो विकल्प ऊठयो माटे ज्ञान थयुं–एम पण नथी. पण दरेक द्रव्ये ते वखते
स्वतंत्रपणे पोतपोतानुं कार्य कर्युं छे. वीतरागीभेदविज्ञान एम जणावे छे के–दरेक समये दरेक पर्याय पोताना स्वतंत्र
उपादानथी ज कार्य करे छे. उपादाननुं कार्य निमित्त आवे तो थाय–एवुं पराधीन वस्तुस्वरूप नथी. पण उपादाननुं
कार्य स्वतंत्र थाय छे त्यारे निमित्त तेनी पोताथी लायकातथी होय छे.
१३. सुर्य ऊग्यो माटे छायामांथी तडको थयो–ए वात खोटी
छायामांथी तडको थवानी परमाणुनी अवस्थामां जे समये लायकात होय ते ज समये तडको थाय छे,
अने ते समये सूर्य वगेरे निमित्त तरीके होय छे. पण सूर्य वगेरे निमित्त आव्युं माटे छायामांथी तडको थयो– ए
वात खोटी छे. तेमज छायामांथी तडकारूपे अवस्था थवानी हती माटे सूर्य वगरेने आववुं पडयुं–ए वात पण खोटी
छे. सूर्य ऊग्यो ते तेनी ते वखतनी लायकात छे, ने जे परमाणुओ छायामांथी तडकारूपे थया तेनी ते समयनी तेवी
लायकात छे.