ः २४२ः आत्मधर्मः ४७
६. शास्त्रथी ज्ञान थतुं नथी
सामे शास्त्र आव्युं माटे ज्ञान थयुं–एम नथी. पण जे क्षणे पोतानी लायकात छे ते क्षणे जीव पोतानी
शक्तिथी ज्ञान करे छे अने त्यारे निमित्त तरीके शास्त्र होय छे. ज्ञान थवानुं होय माटे शास्त्रने आववुं ज पडे तेम
नथी, अने शास्त्र आव्युं माटे ज्ञान थयुं–एम पण नथी.
आत्माना सामान्य ज्ञानस्वभावनुं विशेषरूप परिणमन थईने ज ज्ञान थाय छे; ते ज्ञान निमित्तना
अवलंबन वगर अने रागना आश्रय वगर सामान्य ज्ञानस्वभावना आश्रये ज थाय छे.
७. कुंभारने लीधे घडो थयो नथी
माटीनी जे समयनी पर्यायमां घडो थवानी लायकात छे ते ज समये ते पोताना उपादानथी ज घडारूपे थाय
छे, अने ते वखते कुंभारनी हाजरी (उपस्थिति) तेना पोताना कारणे होय छे–तेने निमित्त कहेवाय छे. घडो थाय ते
वखते कुंभार वगेरे न होय तेम बने नहि पण कुंभार आव्यो माटे माटीनी अवस्था घडारूपे थई–एम नथी; घडो
थवानो हतो माटे कुंभारने आववुं पडयुं एम पण नथी. माटीमां स्वतंत्र ते समयनी पर्यायनी लायकातथी घडो थयो
छे अने ते वखते कुंभार पोतानी पर्यायनी स्वतंत्र लायकातथी हाजर छे; पण कुंभारे घडो कर्यो नथी, तेमज
कुंभारना निमित्तथी घडो थयो नथी.
८. एक पर्यायमां बे प्रकारनी लायकात होय ज नहि.
प्रश्नः– ज्यां सुधी कुंभाररूप निमित्त न हतुं त्यांसुधी माटीमांथी घडो केम न थयो?
उत्तरः– अहीं ए खास विचारवानुं छे के–जे वखते माटीमांथी घडो नथी थयो ते वखते
तेनामां शुं घडोथवानी योग्यता छे? के घडो थवानी योग्यता ज नथी?
जो एम मानवामां आवे के ‘माटीमांथी घडो नथी थयो ते वखते पण माटीमां घडो थवानी योग्यता छे,
परंतु निमित्त नथी माटे घडो नथी थतो,’ तो ए मान्यता बराबर नथी. केमके ज्यारे माटीमां घडारूप अवस्था नथी
थई त्यारे तेमां पिंडरूप अवस्था छे, अने ते वखते ते अवस्था थवानी ज तेनी योग्यता छे. जे समये माटीनी
पर्यायमां पिंडरूप अवस्थानी योग्यता होय ते ज समये तेमां घडारूप अवस्थानी पण योग्यता होई शके ज नहि–
केमके एक ज पर्यायमां एक साथे बे प्रकारनी योग्यता होई शके ज नहि। आ सिद्धांत अत्यंत अगत्यनो छे, ते
दरेक ठेकाणे लागु पाडवो.
आ सिद्धांतथी नक्की थयुं के माटीमां जे वखते पिंडरूप अवस्था हती ते वखते तेनामां घडारूप अवस्थानी
योग्यता ज न हती तेथी ज तेमां घडो थयो नथी; परंतु कुंभार न हतो माटे न थयो ए वात खोटी छे.
९. ‘निमित्तो न मेळवे तो कार्य न थाय’ ए मान्यतानुं मिथ्यापणुं, अने ते संबंधी पुत्रनुं द्रष्टांत
‘कोईने पुत्र थवानो हतो पण विषय रूप निमित्त न मळ्युं माटे न थयो’ ए वात मिथ्या छे. जो पुत्र
थवानो ज होय तो जे वखते थवानो होय ते वखते थाय ज, अने ते वखते विषयादि निमित्त स्वयं होय. पुत्र एटले
के एक आत्मा अने अनंत रजकणो आववाना तो छे पण पति–पत्नी ब्रह्मचर्य पाळे छे एटले के पुत्र थवानुं
निमित्त नथी मळतुं तेथी ते आवता अटकी गयां–ए मान्यता मिथ्यात्व छे. पुत्र थवानो ज न हतो अर्थात् ते जीव
अने अनंत रजकणोनी क्षेत्रांतररूप अवस्थानी लायकात ज त्यां आववानी न हती तेथी ज ते आव्या नथी.’ पुत्र
आववानी लायकात तो हती पण निमित्त न मळ्युं माटे न आव्यो, ने निमित्त मळ्युं त्यारे आव्यो’–ए मान्यतानो
अर्थ ए थयो के निमित्त कार्य कर्युं; ए बे द्रव्यनी एकत्वबुद्धि ज छे. अथवा तो माता–पिताए निमित्तनो रस्तो न
लीधो माटे पुत्र न थयो ए वात पण मिथ्या छे. पुत्र थवानी लायकात होय त्यारे ते थाय छे अने ते वखते
विषयादिनो अशुभ विकल्प तथा शरीरनी भोगरूप क्रिया होय छे–तेने निमित्त कहेवाय छे. पण पुत्र आववानो हतो
तेना कारणे विकल्प के क्रिया नथी, अने क्रिया तथा विकल्प थयो तेने कारणे पुत्र आव्यो नथी. विषयनो अशुभ
विकल्प आव्यो माटे देहनी क्रिया थई–एम नथी, देहनी क्रिया थवानी हती माटे अशुभविकल्प आव्यो एम पण
नथी. दरेक द्रव्ये पोतानुं कार्य स्वतंत्रपणे कर्युं छे.
१०. जीव निमित्तोने मेळवी के दूर करी शके नहि, मात्र पोतानुं लक्ष फेरवी शके
जीव पोतामां शुभभाव करी शके; पण शुभभाव करवाथी ते बहारना शुभनिमित्तोने मेळवी शके अथवा तो
अशुभनिमित्तने दूर करी शके–एम नथी. जीव पोते अशुभनिमित्त उपरथी लक्ष फेरवीने शुभनिमित्तो उपर लक्ष करे,
पण निमित्तोने नजीक लाववा के दूर करवा ते जीव करी शकतो नथी. कोई जिनमंदिर वगेरे धर्मस्थाननुं शिलान्यास
(खातमुहूर्त) करवानो शुभभाव जीवे कर्यो,