भाद्रपदः२४७३ः २४१ः
उपादान–निमित्तनी स्वतंत्रता
पूज्य श्री कानजी स्वामीनुं व्याख्यान–भादरवा वदी १ वीर संवत २४७३
१. उपादान–निमित्त
उपादान कोने कहेवुं? अने निमित्त कोने कहेवुं? आत्मानी त्रिकाळी शक्तिने उपादान कहेवाय छे तेमज
पर्यायनी वर्तमान शक्तिने पण उपादान कहेवाय छे. जे अवस्थामां कार्य थाय छे ते समयनी ते अवस्था पोते ज
उपादान कारण छे; अने ते वखते तेने अनुकूळ परद्रव्य निमित्त छे. निमित्तने लीधे उपादानमां कांई थतुं नथी. आ
उपादान–निमित्त संबंधी चालती अनेक प्रकारनी मिथ्यामान्यता दूर थई जाय ते माटे आ उपादान–निमित्तनो
सिद्धांत अनेक द्रष्टांतो सहित समजाववामां आवे छे.
२. गुरुनी निमित्तथी ज्ञान थतुं नथी
आत्मामां जे ज्ञान थाय छे ते ज्ञान आत्मानी पर्यायनी शक्तिथी थाय छे के शास्त्रना निमित्तथी थाय छे?
आत्मानी पर्यायनी लायकातथी ज ज्ञान थाय छे, निमित्तथी ज्ञान थतुं नथी. जे वखते आत्मानी पर्यायमां
पुरुषार्थद्वारा सम्यग्ज्ञान प्रगट करवानी लायकात होय अने आत्मा सम्यग्ज्ञान प्रगट करे ते वखते गुरुने निमित्त
कहेवाय छे. पण गुरुना निमित्तथी ज्ञान थयुं नथी.
ज्यारे जीवमां प्रथम सम्यग्ज्ञाननो पुरुषार्थ होय त्यारे गुरुनी वाणीनी जोगवाई होय ज, पण ज्यां सुधी ते
वाणी उपर जीवनुं लक्ष छे त्यां सुधी राग छे, अने ज्यारे वाणीनुं लक्ष छोडीने स्वभावनो निर्णय करे छे त्यारे ते
निर्णयमां गुरुने निमित्त कहेवाय छे. अने जीवने गुरुना बहुमाननो विकल्प ऊठे त्यारे ते एम पण कहे के मने
गुरुथी ज्ञान थयुं.
३. ‘गुरुथी ज्ञान थयुं’ एम कहेवुं ते कपट नथी पण व्यवहार छे.
प्रश्नः– ज्ञान तो पोताथी ज थयुं छे, गुरुथी थयुं नथी–एम जाणे छे छतां गुरुथी ज्ञान थयुं एम कहेवुं ते
कपट न कहेवाय?
उत्तरः– व्यवहारमां एम ज बोलाय, ए कपट नथी पण यथार्थ सिद्धांत छे. गुरुना बहुमाननो शुभ विकल्प
ऊठयो छे तेथी निमित्तमां आरोप अपाय छे.
प्रश्नः– गुरुना बहुमाननो विकल्प ऊठे ते तो बराबर छे पण ‘गुरुथी ज्ञान थयुं’ एम शा माटे कहे छे?
उत्तरः– बहुमाननो विकल्प ऊठयो छे तेथी निमित्तमां आरोप करीने व्यवहारे तेम कहेवाय छे. आरोपनी
भाषा एवी ज होय. पण खरेखर गुरुथी ज्ञान थयुं छे. एम नथी अथवा तो गुरु न होत तो ज्ञान न थात एम
पण नथी. पोते पुरुषार्थथी ज्यारे ज्ञान करे छे त्यारे गुरु निमित्त तरीके गणाय छे–ए सिद्धांत छे.
४. माटीमां घडारूप पर्याय थवानी लायकात कायमनी नथी पण एक समयनी ज छे.
माटीमांथी घडो थाय छे, ते तेनी वर्तमान पर्यायनी ते समयनी लायकातथी ज थयो छे, कुंभारना कारणे
थयो नथी. कोई एम कहे के ‘माटीमां घडो थवाथी लायकात तो कायम छे पण कुंभार आव्यो त्यारे घडो थयो.’ –तो
ए मान्यता खोटी छे. माटीमां घडारूपे थवानी लायकात कायम नथी, पण वर्तमान एक ज समयनी पर्यायनी ते
लायकात छे, अने जे समये पर्यायमां लायकात होय छे ते समये ज घडो थाय छे अन्य पदार्थोथी माटीने जुदी
ओळखाववा माटे ‘माटीमां घडो थवानी लायकात छे’ एम द्रव्यार्थिकनये कहेवाय छे. पण खरेखर तो ज्यारे घडो
थाय छे त्यारे ज तेनामां घडो थवानी लायकात छे, त्यार पहेलां घडो थवानी लायकात नथी पण बीजी पर्यायो
थवानी लायकात छे.
प. गुरुने लीधे श्रद्धा थती नथी
आत्मा पुरुषार्थथी साची श्रद्धा करे छे, ते तेनी पर्यायनी वर्तमान लायकात छे, ने गुरु पोताना कारणे हाजर
होय छे ते निमित्त छे. जीवे श्रद्धा करी माटे गुरुने आववुं पडयुं–एम नथी, तेमज गुरु आव्या तेना कारणे श्रद्धा थई
एम पण नथी; बन्ने पोताना कारणे छे. जो गुरु आव्या माटे श्रद्धा थई–एम मानीए तो, गुरु कर्ता अने शिष्यने
श्रद्धा थई ते तेनुं कार्य–एम बे द्रव्योने कर्ताकर्मपणुं थई जाय; अथवा तो श्रद्धा करी माटे गुरु आव्या एम–मानीए
तो, श्रद्धा कर्ता अने गुरु आव्या ते तेनुं कार्य–एम बे द्रव्योने कर्ताकर्मपणुं थई जाय. पण श्रद्धा थई ते श्रद्धानी
पर्यायना कारणे, ने गुरु आव्या ते गुरुनी पर्यायना कारणे,–बन्ने स्वतंत्र छे.