Atmadharma magazine - Ank 048
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म मासिकना अंक ३७ थी ४८ सुधीमां आवेला लेखोनी कक्कवारी
क्रमांकविषयअंकपृष्ट३८.जीवनी प्रतीत कयारे थई कहेवाय?१०२२२
१.अध्यात्म उपदेश३९.जीवननुं कर्तव्य६२
२.अध्यात्म शास्त्रोनी कथन पद्धति८३४०.जैनदर्शननो व्यवहार१२४
३.अध्यात्मधाम–सोनगढ१०२४१.जैन धर्म११२३४
४.अध्यात्मनी ज्योति११२४२.जैन समाजनी वर्तमान परिस्थिति पर एक
अवलोकन
११२३४
प.अष्टप्राभृत–प्रवचन१–२–
४–६–
खास
११, ३६, ७७,
११२, १९७
४३.जैनशासन एटले स्वाश्रय अने वीतरागता११२३९
६.अभिनंदन पत्र९४४४.जो के व्यवहारनय अभूतार्थ छे... तो पण.१४७
७.अभिनंदनपत्र का उत्तर९प४प.ढंढेरो८२
८.अभव्य (नालायक) जीवनुं चिह्न१००४६.दशलक्षणपर्व अने श्रीजिनेन्द्र अभिषेकनो महान
उत्सव
१२२६९
९.अभूतपूर्व सफळता१०२४७.द्रव्यद्रष्टि अने पर्यायद्रष्टि तथा तेमनुं प्रयोजन११२३८
१०.अहिंसा अने हिंसा१प४४८.द्रिव्य ध्वनिदाता श्रीकानजीस्वामी१४०
११.अज्ञानीओ भले पुकारे४२४९.दुःखनुं कारण अने ते टाळवानो उपाय६२
१२.आजीवन ब्रह्मचर्यप, ७,
खास
९३, १४४,
१९३,
प०.दुःखथी छूटवानी ने सुखी थवानी साची रीत११२३७
१३.आत्मधर्म१२२प४प१.धन्य ते सुप्रभात
१४.आत्मस्वाधीनतानो महान उत्सव१२२प३प२.धन्य ते धर्मकालप९
१प.आत्मानी क्रिया१४पप३.धर्मात्मा चक्रवर्ती भरतनी मुनि भक्ति.१७१
१६.आत्मस्वभावखास१९२प४.धर्म करवानी रीत१७प
१७.आपणा पूज्य गुरुदेव१४१पप.धार्मिक महोत्सव१०२२८
१८.उत्तमक्षमाधर्म१२२६७प६.नयाभास–मिथ्या नयोनुं स्वरूप४–७६७–
१२७
१९.उपादान निमित्तनो संवाद२, ३, ४,
६, ८
२९, प२, ७०,
११७, १प९
प७.निवृत्त परायण श्रीवनेचंदभाई शेठ८४
२०.उपादान निमित्तना दोहा१८०प८.निमित्त१प१
२१.उपादान निमित्तनी स्वतंत्रता११२४१प९.निश्चय अने व्यवहारनी कथन शैली४८
२२.”” ”१२२प९६०.नीतिनुं स्वरूप४७
२३.एवा कुंदकुंद प्रभु अम मंदिरीये२२६१.नूतन वर्षे मंगळ भावना
२४.एकवार तो जीवतां मर!४३६२.... पण तेथी शुं?१२२पप
२प.एक प्रस्तावखास१८९६३.परमानंद स्तोत्र१६९
२६.क्रिया२३६४.पवित्र वचनामृतो१०२३२
२७.कल्याणनी मूर्ति६१६प.पुण्य बांध्यु१प०
२८.कुंदकुंद प्रभु केवा हशे४०६६.पुनित सम्यक्दर्शन१२२प८
२९.कुंदकुंदवाणी१६७६७.पंचास्तिकाय समाचार८९
३०.केटलुं जीव्या केवी रीते जीववुं१६६६८.प्रभु श्रीमहावीर भगवाननो तपकल्याणिक महोत्सव
३१.केवुं जीवन गाळवुं११२३३६९.बे मित्रो वच्चे तत्त्वचर्चा
३२.कया भावे धर्म थाय अने कया
भावे अधर्म थाय
१२२६२७०.भगवान श्रीकुंदकुंद प्रवचन मंडपनुं उद्घाटन९०
३३.चैतन्य स्वभावनी श्रद्धा१६प
३४.जगतना सर्व जीवोने शांतरस
सबरसनी प्रप्नि हो.
२२
३प.जीनशासननी प्रभावनाखास१८७
३६.जीवदयानुं स्वरूपखास१८६
३७.जीव अने कर्म एक बीजाने कांई
नुकशान करे नहि
१०२१३
ATMADHARM
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