ः २७१ः आत्मधर्मः ४८
हवे दिपावलीना दिवसोमां ते लक्ष्मीपूजन शा माटे करवामां आवे छे ते विचारीए–
दिपावलीनो मंगळ दिवस ते आत्मीकस्वाधीनतानुं पर्व छे, ते दिवसे (आसो वद अमासना रोज) संध्या समये
श्रीवीरप्रभुना मुख्य गणधर श्रीगौतमप्रभुजीने केवळज्ञानरूपी अक्षय लक्ष्मी प्राप्त थई. ते वखते देवो अने मनुष्योए
महान उत्सव साथे ते केवळज्ञानलक्ष्मीनी पूजा करी अने त्यारथी लक्ष्मी–पूजन’ करवानो रिवाज चालु ज रह्यो. तेथी
खरी रीते दिपावलीना मंगळ प्रभाते केवळज्ञानरूपी लक्ष्मीनुं पूजन करवुं जोईए–आ यथार्थ हकीकत नहि जाणनारा
अने आत्मलक्ष्मीने नहि ओळखनारा मूर्ख जीवो रूपिया–पैसा वगेरेनी पूजा करे छे. अने चोपडानी शरूआतमां पण
एवी ज अज्ञानमय भावनाने पोषण आपे एवां लखाणो लखे छे. परंतु–एक तरफ प्रभुश्री महावीरभगवाननी
सिद्धदशा अने बीजी तरफ श्रीगौतमप्रभुने केवलज्ञानलक्ष्मीनी प्राप्ति–एवी रीते ए बे (सिद्धदशा अने अरिहंतदशाना)
सर्वोत्कृष्ट मंगळ प्रसंगो वखते आत्माने आत्मभावनाओ वडे ओतप्रोत करवो जोईए. अने चोपडानी शरूआणमां जे
संसार पोषक भावनाओ लखाय छे तेने बदले नीचेना भाववाळी भावनाओ लखवी जोईए–
श्री महावीर प्रभुनी आत्मरिद्धि अमने प्राप्त थाव.
श्री गौतमप्रभुनी आत्मलक्ष्मी अमने प्राप्त थाव.
श्री नेमनाथभगवाननो सद्वैराग्य अमने प्राप्त थाव.
श्री बाहुबलीजीनुं अडग आत्मबळ अमने प्राप्त थाव.
श्री कुंदकुंदप्रभुजीनुं स्वरूप–जीवन अमने प्राप्त थाव.
श्री रत्नत्रयना त्रण अमूल्य रत्नोनो अमने लाभ थाव.
अमारुं जीवन रत्नत्रयनी आराधनाथी पवित्र थाव.
अमने आ वर्षमां आत्मलक्ष्मीनी खूबखूब वृद्धि थाव अक्षय चैतन्य निधान मळो अने आ जड–लक्ष्मी
उपरनो मोह सर्वथा नष्ट थई जाव. उत्कृष्ट ज्ञान–वैराग्यरूपी लक्ष्मीथी सदाय अमारा जीवन–भंडार भरपूर रहो.
मुमुक्षुओनुं जीवन उपर्युक्त भावनामय होवुं जोईए.
– पाछळना पानाथी चालु–
७१.भगवान श्री कुंदकुंद प्रवचन मंडपमां मंगळ प्रसंगप९३९४.श्रीमंडपमां मांगलिक प्रवचनप९६
७२.भगवान श्री सीमंधर जिन प्रतिष्ठानो छठ्ठो वार्षिक महोत्सवप९२९प.श्रुतपंचमी अने आपणी भावना८१४६
७३.भगवान श्री महावीरे शुं कर्युं अने शुं कह्युं?७१३प९६.स्वभावनी भावना१
७४.भक्ति७१२१९७.स्वभावनो अनुभव करवानी रीत११२३प
७प.भेदभक्ति अने अभेदभक्ति३४१९८.स्वतंत्रता त्यां यथार्थता अने यथार्थता त्यां वीतरागताखास१९४
७६.महावीर स्तुति६१०१९९.स्वतः सिद्धशक्तिने परनी अपेक्षा नथी११२३६
७७.मिथ्याद्रष्टिनुं वर्णन७१३३१००.सत्य पुरुषार्थ–भगवती प्रज्ञा२२प
७८.मुक्तिनो उपाय३४३१०१.सनातन जैन–शि. वर्गखास२०६–
२१४
७९.मुमुक्षुनी आत्मजागृति११२३३१०२.समयसारजी गाथा एकना प्रवचनना आधारे केटलाक
प्रश्नोत्तर ३, ४, ६, ६प७,
७६,
११९,१२प
८०.मोक्षशास्त्र अर्थात् तत्त्वार्थ सूत्रप८११०३.समयसार प्रश्नोत्तर२३४
८१.राणपुर तथा बोटादमां श्री जिन मंदिरनी तैयारी७१३४१०४.समयसार प्रतिष्ठा.७१२२
८२.रुचिनुं वलण७१३३१०प.सम्यक दर्शननो अपार महिमा७१२२
८३.लक्ष्मीपूजन१२२७०१०६.सम्यग्दर्शन गुण छे के पर्याय?१०२१प
८४.व्यवहारनुं अस्तित्व अने तेनुं हेयपणुं१४१०७.सम्यक् द्रष्टिनी प्रशंसा७१३२
८प.व्याख्यानो अने चर्चाओनो टूंकसार१,
३,
४,
प,
६
१०३
१०८.साचुं शुं?२२७
८६.वनयात्राखा
स१८८१०९.सुवर्णपुरी समाचार२४०
८७.वस्तु स्वभाव७१२३११०.सुर्वणकी कसोटी७१४३
८८.वींछीयामां जैन मंदिर अने स्वाध्याय मंदिरनुं खात मुहूर्तप९११११.सोनगढ जैसा वातावरण सारा हिंदमें फैलजावे६१२०
८९.श्री दि. जैन विद्वत् परिषदप८१११२.हे जीव, ज्ञानीओनो उपदेश तारा माटे छे९१६८
९०.श्री दि. जैन विद्वत् परिषद् तृतिय अधिवेशन६११०११३.हे जीव तुं विचार कर! !खास१८प
९१.श्री. दि. जैन विद्वत् परिषद्नो महत्त्वपूर्ण ठराव६१११११४.ज्ञानी स्थापे छे, अज्ञानी उथापे छे.२२१
९२.श्री मद् राजचंद्र१०२१७११प.ज्ञानी अने अज्ञानीनुं महान अंतर८१प३
९३.श्री जीनवर स्तोत्र६१०७