Atmadharma magazine - Ank 048
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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आसोः२४७३ः २७०ः
उत्सव तो एक ज जुदी ज छटा अने आनंदनो हतो. सवारे व्याख्यान बाद श्री शास्त्रपूजन करवामां आव्युं हतुं,
जेमां रत्नत्रय समान कुंदकुंदभगवाननां त्रणरत्नोनी पूजा करवामां आवी हती.
बपोरे व्याख्यान बाद श्रीरत्नत्रयमंडळनी विधिपूर्वक पूजा तथा १०८ कळशोथी श्रीजिनेन्द्रदेवनो
महाअभिषेक उत्सव थयो हतो. बपोरे बार वाग्याथी ज ए बे महाप्रसंगनी तैयारी करतां मुमुक्षुओनो उत्साह
अपार हतो. ३
।। वागे व्याख्यान पूरुं थतां तुरत ज श्रीरत्नत्रयमंडळ नी पूजा करवामां आवी. त्यारबाद १०८
कळशोद्वारा श्रीसीमंधरभगवाननो महा अभिषेक विधिपूर्वक थयो. आ प्रसंग वखतनो सर्वेनो अपूर्व उत्साह अने
कार्य संलग्नता तो नजरे जोया होय ते ज जाणे!! श्रीजिनमंदिरमां आवो महान प्रसंग आ पहेलो ज हतो.
अभिषेकनुं द्रश्य एवुं अपूर्व हतुं के जे जोतां मेरू पर्वत उपर श्रीजिनेन्द्रदेवना जन्मकल्याणकनो पवित्र प्रसंग द्रष्टि
समक्ष तरवरी आवतो हतो. अभिषेक वखते, जिनमंदिरनी मध्यमां क्षीरसमुद्रनी स्थापना करी हती, त्यांथी शरु
थईने प्रभुजी सुधी बे बाजु ईंद्रोनी हार हती, ते ईंद्रो मुगट वगेरेथी सज्जित हता. प्रभुश्रीनी एक बाजु ईशान–
इन्द्र अने बीजी बाजु सौधर्म–इन्द्र अभिषेक करवा माटे उभा हता. १०८ कळश पहेलेथी शणगारी राख्या हता; क्षीर
समुद्रमांथी ते कळश भरी भरीने इन्द्रो एकबीजाने हाथोहाथ आपता हता, ने छेवटे इन्द्रो प्रभुश्रीनो अभिषेक करता
हता. आ प्रसंगे एक इन्द्र हाथमां चामर लईने नाचता हता, बीजा देवो वाजां वगाडतां हतां. मुमुक्षुओ मंगळ
अभिषेक–पाठ बोलता हता. पूज्य गुरुदेवश्री आ मंगळ प्रसंगमां पहेलेथी छेल्ले सुधी उपस्थित रह्या हता.
अभिषेकविधि समाप्त थया बाद पण इन्द्रो अने भक्तमंडळनो उत्साह अने भक्ति वधतां ज जतां हतां, अने इन्द्रो
नृत्य करता हता तथा भक्तो धून लेता हता. छेवटे क्षमापना पाठ बोलीने विसर्जन करवामां आव्युं हतुं.
केटलाक मुमुक्षुओ विखराया...परंतु...त्यां तो बाकीना मुमुक्षुओमां फरीथी एक अपूर्व भक्तिनो जूवाळ
आव्यो अने फरीथी अपूर्व भक्तिनो एक सुंदर प्रसंग बनी गयो. श्रीजिनेन्द्रदेवना जन्म कल्याणक वखते अभिषेक
करनारा सौधर्मेन्द्र ने ऐशानेन्द्र नियमथी एकावतारी ज होय छे; अहीं पण अभिषेकनुं द्रश्य जोती वखते निकट
भव्य जीवोने पोताना एकावतारीपणानी भावना जागृत थया विना रहे ज नहि एवो ते प्रसंग हतो. आ प्रकारे,
आ पर्व अपूर्व आनंद, उत्साह अने नवीनतापूर्वक उजवायुं–तेनुं पूरुं वर्णन करवा कलम अने कागळ समर्थ नथी.
पर्वनी सार्थकता क्यारे?
श्रीजिनेन्द्रदेवना आत्मानी परिपूर्णता ओळखतां आत्मस्वभावना बहुमानने लीधे मुमुक्षु जीवो उल्लासथी
महोत्सव उजवे छे, ने भक्ति करे छे. श्रीजिनेन्द्र देव समान पोताना परिपूर्ण आत्मस्वभावना माहात्म्य तरफ ढळी
जतां सम्यग्दर्शन प्रगटे छे अने वीतरागतानी वृद्धि थाय छे–ते ज पर्वनी सार्थकता छे.*
लक्ष्मी पूजन
दिपावलीनो मंगळ उत्सव नजीक आवे छे. ते दिवसे लक्ष्मी–पूजन करवानो रिवाज छे. परंतु कई लक्ष्मीनुं
पूजन करवुं जोईए अने ते ज दिवसे ते पूजन केम करवामां आवे छे–तेने घणा मोटा भागना लोको जाणता नथी;
तेथी ते संबंधी प्रकाशनी जरूर छे.
प्रथम तो, लक्ष्मी खरेखर तेने कहेवाय के जेनो भोगवटो आत्मा करी शके अने जेना भोगवटाथी आत्माने
सुख थाय. एवी जे कोई आत्म लक्ष्मी होय ते ज पूजनिक छे; पण पैसा–रूपिया वगेरे जड लक्ष्मी पूजवी योग्य नथी,
तेने पूजवाथी महापाप थाय छे, ते लक्ष्मीने आत्मा भोगवी शकतो नथी, पण तेने भोगववानी के मेळववानी
भावनाथी पोते दुःखी ज थाय छे. माटे एटलुं अवश्य नक्की करवुं जोईए के पूजवायोग्य जे लक्ष्मी छे ते आत्मामां ज
छे. ए लक्ष्मी कई छे ते ओळखवुं जोईए. अजीवलक्ष्मीनो स्वामी अजीव होय, अजीवनो स्वामी जीव होय नहि.
जीव तो चैतन्य स्वरूप छे ने ज्ञान ज तेनी लक्ष्मी छे. ज्ञान सिवाय बीजी कोई लक्ष्मीनो स्वामी जीव नथी. विकारी
भावो थाय ते खरेखर जीवनी लक्ष्मी नथी. ज्ञान ते ज जीवनी लक्ष्मी छे, ने संपूर्ण केवळज्ञान ते जीवनी संपूर्ण लक्ष्मी
छे. पोताना ज्ञान भंडारने ओळखीने संपूर्ण ज्ञान लक्ष्मी प्राप्त करवानी भावना पूर्वक ते लक्ष्मीनुं पूजन करवुं–तेनुं
ज नाम साचुं लक्ष्मी पूजन छे. परंतु पैसा वगेरेनी पूजा करवी ते तो जड–पूजन छे, तेनाथी आत्मानी ज्ञानलक्ष्मीनुं
खून थाय छे.