
एम मानीने जे क्षमाराखे ते धर्म नथी. पहेलां तो लाकडी शरीरने लागे छे छतां ‘मने लाकडी लागी’ एम
मानवुं ते ज मिथ्यात्व छे. घणो लाठीमार सहन करे अने बंदूकनी गोळी उघाडा शरीरे सहन करे–अने एम माने
के ‘हुं घणुं सहन करुं छुं तेथी बीजानुं हित थशे, बीजाना हित माटे ज हुं क्षमा करुं छुं.’ तो एम माननार जीव
मिथ्याद्रष्टि ज छे, तेने किंचित् धर्म नथी, परमार्थे तो तेने स्वरूपनी अरुचिरूप महान क्रोध वर्ते छे. एवा
जीवोनी रागरूप क्षमा ते कदी मोक्षनी सहायक नथी, पण ते तो संसारनुं ज कारण छे. अने उपर जे वीतरागी
उत्तमक्षमा जणावी छे ते ज मोक्षनी सहायक छे; ते उत्तमक्षमारूप चारित्रवडे मुनिओ संपूर्ण वीतरागता मेळववा
प्रयत्न करे छे. जेमने सम्यग्दर्शन होय तेमने चारित्रदशा प्रगट करवा माटे अनंत पुरुषार्थ करवो बाकी छे.
चारित्र ते धर्म छे; धर्म वीतरागतारूप छे. सम्यक्आत्मभानपूर्वक स्वभावनी सेवना वडे वीतरागता प्रगट
आवुं भाव–पर्व होय त्यां बाह्य द्रव्य–क्षेत्र–काळने उपचारथी पर्व कहेवामां आवे छे. साची रीते आत्माना शुद्ध
भावमां ज पर्व छे, रागादिमां के बाह्य पदार्थोमां पर्व नथी. आटलुं भेदज्ञान राखीने ज दरेक कथनना अर्थो समजवा.
आवे छे. जैनसमाजमां आ पवित्र पर्वाधिराज अत्यंत उत्साहथी उजववामां आवे छे. आ वखते सोनगढमां आ
दस दिवसो उजववामां आव्या हता; भादरवा सुद प ते उत्तमक्षमाधर्मनो दिवस हतो, ते दिवसे पद्मनंदी
पच्चीशीशास्त्रना ‘दशलक्षणधर्म अधिकार’ मांथी उत्तमक्षमाधर्म उपर पू. गुरुदेवश्रीए व्याख्यान कर्युं हतुं, ने ए ज
प्रमाणे दसे दिवसो दरमियान, जे दिवसे जे धर्म होय ते दिवसे ते धर्मनुं स्वरूप पू. गुरुदेवश्री समजावता हता. तेमां
तेओश्रीए जणाव्युं हतुं के ‘आ भादरवा सुद प वगेरे दिवस ते तो काळद्रव्यनी दशा छे तेमां उत्तमक्षमादि धर्म नथी,
पण आत्मामां सम्यग्दर्शन पूर्वक वीतरागभाव प्रगट करवो ते ज उत्तमक्षमाधर्मनुं पर्व छे, अने ए भाव गमे ते
वखते आत्मा प्रगट करी शके छे.’ उत्तमक्षमादि धर्मना व्याख्यानो आत्मधर्ममां आपवामां आवशे. घणा वखतथी
विरह थयेल पोतानी वस्तुनो भेटो थतां जेम उल्लास थाय तेम आ पवित्र पर्व उजवतां मुमुक्षुओने अत्यंत उल्लास
थतो हतो. किसनगढना भाई श्री
तरफथी लगभग रूा. प०१ तेओए दानमां काढया हता. अनंतचतुर्दशी (भा. सु. १४) ने दिवसे बपोरे १ थी र
समयसार–हरिगीतनी स्वाध्याय तथा सांजे संवत्सरिप्रतिक्रमण करवामां आव्युं हतुं. आ पर्व दरमियान पू.
गुरुदेवश्री अनेकवार कहेता हता के “साचा पर्युषण आ ज छे; काठियावाडमां आ पवित्र महोत्सव अत्यंत
उल्लासपूर्वक मनावानी मांगळिक शरूआत थई छे अने हवे ते दरेक वर्ष चालु रहेशे, तथा काठियावाडना दरेक