Atmadharma magazine - Ank 048
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 18 of 21

background image
ः २६९ः आत्मधर्मः ४८
एम मानीने जे क्षमाराखे ते धर्म नथी. पहेलां तो लाकडी शरीरने लागे छे छतां ‘मने लाकडी लागी’ एम
मानवुं ते ज मिथ्यात्व छे. घणो लाठीमार सहन करे अने बंदूकनी गोळी उघाडा शरीरे सहन करे–अने एम माने
के ‘हुं घणुं सहन करुं छुं तेथी बीजानुं हित थशे, बीजाना हित माटे ज हुं क्षमा करुं छुं.’ तो एम माननार जीव
मिथ्याद्रष्टि ज छे, तेने किंचित् धर्म नथी, परमार्थे तो तेने स्वरूपनी अरुचिरूप महान क्रोध वर्ते छे. एवा
जीवोनी रागरूप क्षमा ते कदी मोक्षनी सहायक नथी, पण ते तो संसारनुं ज कारण छे. अने उपर जे वीतरागी
उत्तमक्षमा जणावी छे ते ज मोक्षनी सहायक छे; ते उत्तमक्षमारूप चारित्रवडे मुनिओ संपूर्ण वीतरागता मेळववा
प्रयत्न करे छे. जेमने सम्यग्दर्शन होय तेमने चारित्रदशा प्रगट करवा माटे अनंत पुरुषार्थ करवो बाकी छे.
चारित्र ते धर्म छे; धर्म वीतरागतारूप छे. सम्यक्आत्मभानपूर्वक स्वभावनी सेवना वडे वीतरागता प्रगट
करवी ते आराधना छे, ने ते मोक्षमार्ग छे.
११. पहेलां ओळखाण पछी भावना
एवो उत्तमक्षमाधर्म प्रगट करवा माटे पहेलां तो उपयोगस्वरूप आत्माने क्रोधादिथी भिन्न ओळखवो
जोईए. ए ओळखाण पछी ज उत्तमक्षमादि साची भावना होई शके छे. ।।८२।। –अपूर्ण
***
सोनगढमां दशलक्षणपर्व अने श्री जिनेन्द्र अभिषेकनो महान उत्सव
पर्व एटले शुं?
पर्व एटले मंगळ काळ, पवित्र अवसर; खरेखर पोताना आत्मस्वभावनी ओळखाण पूर्वक जे निर्मळ
वीतरागी दशा प्रगट करवी ते ज साचुं पर्व छे, ते ज आत्मानो मंगळ काळ छे, ने ते ज पवित्र अवसर छे. ज्यां
आवुं भाव–पर्व होय त्यां बाह्य द्रव्य–क्षेत्र–काळने उपचारथी पर्व कहेवामां आवे छे. साची रीते आत्माना शुद्ध
भावमां ज पर्व छे, रागादिमां के बाह्य पदार्थोमां पर्व नथी. आटलुं भेदज्ञान राखीने ज दरेक कथनना अर्थो समजवा.
पर्वोनु प्रयोजन आत्माना वीतरागभावनी वृद्धि करवानुं छे.
दश लक्षण धर्म
मुनिराजोने चारित्रदशामां उत्तमक्षमादि दश प्रकारना धर्मो होय छे. भादरवा सुद प थी १४ सुधी दस दिवसो
दरमियान ए दस धर्मोनी क्रमसर भावना भाववामां आवे छे, तेथी ते दस दिवसोने ‘दस लक्षण धर्म’ कहेवामां
आवे छे. जैनसमाजमां आ पवित्र पर्वाधिराज अत्यंत उत्साहथी उजववामां आवे छे. आ वखते सोनगढमां आ
दस दिवसो उजववामां आव्या हता; भादरवा सुद प ते उत्तमक्षमाधर्मनो दिवस हतो, ते दिवसे पद्मनंदी
पच्चीशीशास्त्रना ‘दशलक्षणधर्म अधिकार’ मांथी उत्तमक्षमाधर्म उपर पू. गुरुदेवश्रीए व्याख्यान कर्युं हतुं, ने ए ज
प्रमाणे दसे दिवसो दरमियान, जे दिवसे जे धर्म होय ते दिवसे ते धर्मनुं स्वरूप पू. गुरुदेवश्री समजावता हता. तेमां
तेओश्रीए जणाव्युं हतुं के ‘आ भादरवा सुद प वगेरे दिवस ते तो काळद्रव्यनी दशा छे तेमां उत्तमक्षमादि धर्म नथी,
पण आत्मामां सम्यग्दर्शन पूर्वक वीतरागभाव प्रगट करवो ते ज उत्तमक्षमाधर्मनुं पर्व छे, अने ए भाव गमे ते
वखते आत्मा प्रगट करी शके छे.’ उत्तमक्षमादि धर्मना व्याख्यानो आत्मधर्ममां आपवामां आवशे. घणा वखतथी
विरह थयेल पोतानी वस्तुनो भेटो थतां जेम उल्लास थाय तेम आ पवित्र पर्व उजवतां मुमुक्षुओने अत्यंत उल्लास
थतो हतो. किसनगढना भाई श्री
कुंवर नेमिचंदजी पाटनी उत्सवमां खास आगळ पडतो भाग लेता हता अने
पर्वना दसे दिवसो दरमियान तेमना तरफथी मोटी पूजा कराववामां आवी हती. तेमज आ पर्व दरमियान तेमना
तरफथी लगभग रूा. प०१ तेओए दानमां काढया हता. अनंतचतुर्दशी (भा. सु. १४) ने दिवसे बपोरे १ थी र
समयसार–हरिगीतनी स्वाध्याय तथा सांजे संवत्सरिप्रतिक्रमण करवामां आव्युं हतुं. आ पर्व दरमियान पू.
गुरुदेवश्री अनेकवार कहेता हता के “साचा पर्युषण आ ज छे; काठियावाडमां आ पवित्र महोत्सव अत्यंत
उल्लासपूर्वक मनावानी मांगळिक शरूआत थई छे अने हवे ते दरेक वर्ष चालु रहेशे, तथा काठियावाडना दरेक
गामोमां आ पवित्र पर्वनो प्रचार थशे.”
ए रीते भादरवा सुद प थी १४ सुधी पर्युषणपर्व उजवाया हता, अने साथे साथे भा. सु. १३ थी १प सुधी
‘रत्नत्रय व्रत’ मानवामां आव्युं हतुं. xxx
शास्त्रपूजा अने जिनेन्द्र–अभिषेक
अपूर्व उत्साहनो प्रसंग भादरवा वद १ नो हतो. ए दिवसने ‘क्षमावणीपर्व’ कहेवाय छे. आ दिवसनो