Atmadharma magazine - Ank 048
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 3 of 21

background image
ः २प४ः आत्मधर्मः ४८
आत्मधर्म
वर्ष चोथुंः सळंग अंकः आसो
अंक बारः ४८ः र४७३
‘आत्मधर्म’
‘आत्मधर्म’ एटले, आत्मानो धर्म समजावीने शात
सुखनो उपाय दर्शावतुं भारतक्षेत्रनुं एकनुं एक
आध्यात्मिक पत्र...तेनो जन्म वीर सं. २४७० ना
मागसर सुद बीजे थयो....
जन्मकाळ वखतनी परिस्थिति
... ते वखते शासनमां मोटो क्रांतिकाळ चाली रह्यो
हतो. पूज्य गुरुदेवश्री (कानजीस्वामी) ना कल्याणकारी
उपदेशनुं श्रवण करवा हजारो मुमुक्षुओ झंखी रह्या हता;
कोई पण रीते तेओ पूज्य गुरुदेवश्रीनी वाणी सांभळवा
आतुर हता....अने पूज्य गुरुदेवश्रीनी वाणीने प्रगट
करतुं कोई पत्र शरू करवानी योजना विचाराई रही
हती; छेवटे, मुमुक्षुओनी भावनाथी आत्मधर्मनी मंगळ
शरूआत थई....जेम जेम आत्मधर्मना अंको प्रगट थता
गया तेम तेम घेर बेठां पूज्य गुरुदेवश्रीनी वाणीनुं पान
करीने मुमुक्षुओए पोतानी भावनाने कंईक अंशे तृप्त
करी. अने जेम जेम तेनो प्रचार थवा मंडयो तेम तेम
पूज्य गुरुदेवश्रीनी वाणीनुं साक्षात् श्रवण करवा माटे
मुमुक्षुओ विशेषपणे आववा लाग्या.
विकास
पूज्य गुरुदेवश्रीना ताजेतरना विहारथी लोकोमां
अध्यात्म–जागृति घणी वृद्धि पामी हती अने मुमुक्षु लोको
अध्यात्मउपदेशने माटे झंखता हता तेथी मुमुक्षुओए
‘आत्मधर्म’ ने घणा हर्षथी वधावी लीधुं...दिन–प्रतिदिन
तेनो विकास अने वांचन विस्तार पामवा
लाग्या...अंदाज प०० ग्राहको थशे–एवी धारणाथी शरु
करवामां आवेला आ मासिकना आजे लगभग २०००
ग्राहको छे अने तेनी २प०० प्रत छपाय छे.
आत्मधर्म शरू थयुं त्यारे तेना लगभग ४००
ग्राहको हता अने पहेला वर्षना अंतसुधीमां ९०० थया
हता. बीजा वर्षनी शरूआतमां ८०० हता ने अंतसुधीमां
१३२प थया हता त्रीजा वर्षनी शरूआतमां १प०० हता
ने अंतमां २१प० थया हता. चोथा वर्षनी शरूआतमां
१८०० हता, ने आ अंके चोथुं वर्ष पुरुं थतां–अत्यारे
तेना २००० ग्राहको छे. एक खास विशेषता ए छे के
आ ग्राहकोमांथी लगभग २प० ग्राहको आफ्रिकामां छे.
हिदीमां प्रकाशन
घणा टुंका वखतमां ज गुजराती आत्मधर्म
मुमुक्षुओमां अत्यंत प्रिय थयुं अने साराये जैनसमाजमां
तेनो व्यापक प्रचार थई गयो. बीजा ज वर्षमां तो
हिंदीवांचको ते पत्रनी हिंदीआवृत्ति काढवानी मागणी
करवा लाग्या अने गुजराती आवृत्ति पछी मात्र दोढ ज
वर्षमां (२४७१ ना वैशाख सुद बीजे) हिंदी आत्मधर्म
पण शरू थयुं. आजे तेना १००० ग्राहको छे. अने तेनी
१६२प प्रत छपाय छे, हिंदी तेमज गुजराती मुमुक्षु
वांचको तरफथी ‘आत्मधर्म’ वांचीने तेनी प्रशंसाना
एटला बधा पत्रो आवेला छे के जो ते पत्रोने
छपाववामां आव्या होय तो एक मोटुं पुस्तक थाय.
विशिष्टता
आत्माना धर्म सिवाय बीजा विषयोने आत्मधर्ममां
स्थान होतुं नथी...संसार पोषक लेखो–जाहेरखबरो के
समाचार तेमां होता नथी...संसारनी झंझटोथी ते सदाय
अलिप्त रहे छे, तेनुं दरेक पानुं–ने दरेक लींटी
तत्त्वज्ञानथी ज भरपूर होय छे. आ अंके ते चार वर्ष
पूरा करे छे अने आवता अंके पंचम वर्षमां प्रवेश करशे.
विशेष प्रचारनी भावना
जो के जैन जगतमां आ मासिक खूब प्रचार पामी
चूकयुं छे...छतां हजी तेनो विशेष–विशेष प्रचार थाय
अने द्रुनियामां वधारे ने वधारे जीवो तत्त्वज्ञान पामे–
एवी संचालकोनी भावना छे अने ते माटे आवता वर्षे
कुल्ले २००० वांचकोने त्रण मास सुधी नमूनार्थ
आत्मधर्म मोकली शकाय एवी योजना करी छे.
अध्यात्मरसिकोने विनंति
आटलुं जणाव्या बाद, आत्मधर्मना अध्यात्म रसिक
वांचकोने अमे एक खास निवेदन करीए छीए के–
हे मुमुक्षुओ! आत्मधर्ममां जे कांई पीरसवामां आवे
छे ते मात्र सत्तत्त्वना नमूना रूप छे, पूज्य
गुरुदेवश्रीना मुखेथी जे श्रुतामृतनो धोध वहे छे तेनुं टीपुं
मात्र ते छे; तेथी मात्र आत्मधर्म वांचीने संतोष न
मानतां विशेष स्पष्ट समजवा माटे पूज्य गुरुदेवश्रीनी
अमृतवाणीनुं सीधे–सीधुं पान करवा अमे आग्रहभरी
भलामण करीए छीए. केम के ज्ञानीपुरुषना श्रीमुखथी
आध्यात्मिक उपदेशनुं साक्षात् श्रवण करवुं ते ज
आत्मार्थिओने कल्याणनुं मुख्य कारण छे...एक वखत तो
सत्नी रुचि पूर्वक चैतन्यमूर्ति ज्ञानीपुरुष पासेथी
अवश्य श्रवण करवुं जोईए तेम करवाथी ज आत्मामां
सत्नुं परिणमन थाय छे.
सहजचिदानंद स्वभावनी जय हो.
मुद्रकः चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, मोटा आंकडिया, काठियावाड
प्रकाशकः श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया ता. १४–१०–४७