आध्यात्मिक पत्र...तेनो जन्म वीर सं. २४७० ना
मागसर सुद बीजे थयो....
उपदेशनुं श्रवण करवा हजारो मुमुक्षुओ झंखी रह्या हता;
कोई पण रीते तेओ पूज्य गुरुदेवश्रीनी वाणी सांभळवा
आतुर हता....अने पूज्य गुरुदेवश्रीनी वाणीने प्रगट
करतुं कोई पत्र शरू करवानी योजना विचाराई रही
हती; छेवटे, मुमुक्षुओनी भावनाथी आत्मधर्मनी मंगळ
शरूआत थई....जेम जेम आत्मधर्मना अंको प्रगट थता
गया तेम तेम घेर बेठां पूज्य गुरुदेवश्रीनी वाणीनुं पान
करीने मुमुक्षुओए पोतानी भावनाने कंईक अंशे तृप्त
करी. अने जेम जेम तेनो प्रचार थवा मंडयो तेम तेम
पूज्य गुरुदेवश्रीनी वाणीनुं साक्षात् श्रवण करवा माटे
मुमुक्षुओ विशेषपणे आववा लाग्या.
अध्यात्मउपदेशने माटे झंखता हता तेथी मुमुक्षुओए
‘आत्मधर्म’ ने घणा हर्षथी वधावी लीधुं...दिन–प्रतिदिन
तेनो विकास अने वांचन विस्तार पामवा
लाग्या...अंदाज प०० ग्राहको थशे–एवी धारणाथी शरु
करवामां आवेला आ मासिकना आजे लगभग २०००
ग्राहको छे अने तेनी २प०० प्रत छपाय छे.
हता. बीजा वर्षनी शरूआतमां ८०० हता ने अंतसुधीमां
१३२प थया हता त्रीजा वर्षनी शरूआतमां १प०० हता
ने अंतमां २१प० थया हता. चोथा वर्षनी शरूआतमां
१८०० हता, ने आ अंके चोथुं वर्ष पुरुं थतां–अत्यारे
तेना २००० ग्राहको छे. एक खास विशेषता ए छे के
आ ग्राहकोमांथी लगभग २प० ग्राहको आफ्रिकामां छे.
तेनो व्यापक प्रचार थई गयो. बीजा ज वर्षमां तो
हिंदीवांचको ते पत्रनी हिंदीआवृत्ति काढवानी मागणी
करवा लाग्या अने गुजराती आवृत्ति पछी मात्र दोढ ज
वर्षमां (२४७१ ना वैशाख सुद बीजे) हिंदी आत्मधर्म
पण शरू थयुं. आजे तेना १००० ग्राहको छे. अने तेनी
१६२प प्रत छपाय छे, हिंदी तेमज गुजराती मुमुक्षु
वांचको तरफथी ‘आत्मधर्म’ वांचीने तेनी प्रशंसाना
एटला बधा पत्रो आवेला छे के जो ते पत्रोने
छपाववामां आव्या होय तो एक मोटुं पुस्तक थाय.
समाचार तेमां होता नथी...संसारनी झंझटोथी ते सदाय
अलिप्त रहे छे, तेनुं दरेक पानुं–ने दरेक लींटी
तत्त्वज्ञानथी ज भरपूर होय छे. आ अंके ते चार वर्ष
पूरा करे छे अने आवता अंके पंचम वर्षमां प्रवेश करशे.
अने द्रुनियामां वधारे ने वधारे जीवो तत्त्वज्ञान पामे–
एवी संचालकोनी भावना छे अने ते माटे आवता वर्षे
कुल्ले २००० वांचकोने त्रण मास सुधी नमूनार्थ
आत्मधर्म मोकली शकाय एवी योजना करी छे.
गुरुदेवश्रीना मुखेथी जे श्रुतामृतनो धोध वहे छे तेनुं टीपुं
मात्र ते छे; तेथी मात्र आत्मधर्म वांचीने संतोष न
मानतां विशेष स्पष्ट समजवा माटे पूज्य गुरुदेवश्रीनी
अमृतवाणीनुं सीधे–सीधुं पान करवा अमे आग्रहभरी
भलामण करीए छीए. केम के ज्ञानीपुरुषना श्रीमुखथी
आध्यात्मिक उपदेशनुं साक्षात् श्रवण करवुं ते ज
आत्मार्थिओने कल्याणनुं मुख्य कारण छे...एक वखत तो
सत्नी रुचि पूर्वक चैतन्यमूर्ति ज्ञानीपुरुष पासेथी
अवश्य श्रवण करवुं जोईए तेम करवाथी ज आत्मामां
सत्नुं परिणमन थाय छे.