Atmadharma magazine - Ank 049
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४७४ : आत्मधर्म : १३ :
सत्श्रुतज्ञानी प्रभावना
संपादकीय
१. श्री ‘आत्मधर्म’ मासिक आजे पांचमां वर्षमां प्रवेश करे छे, तेमां मुख्यपणे परम पूज्य सद्गुरुदेव
श्रीकानजीस्वामीनां व्याख्यानो आपवामां आवे छे. पोतानी मधुर वाणीद्वारा तेओश्री सत्श्रुतज्ञाननी जे
प्रभावना करी रह्या छे ते आ क्षेत्रमां आ काळे अद्वीतिय छे. ज्यारे जगतना लोकोमां धर्मना नामे संसारपोषक
उपदेश चाली रह्यो छे त्यारे तेओश्री संसारनो नाश करनार एवा सत्यधर्मनो उपदेश एकदम सरळ भाषामां,
नानामां नानुं बाळक पण समजी शके तेवी रीते आपी रह्यां छे. मुमुक्षु जीवोनां महान पुण्यनो उदय छे के
तेओने आवा सदुपदेशनो योग सांपड्यो छे. तत्त्वज्ञाननो उपदेश ज्यांसुधी सत्पुरुष पासेथी सीधो सांभळीने
पचाववामां न आवे त्यांसुधी तेनो पुरतो लाभ न मळी शके–एम जिज्ञासुओ जाणता होवाथी, (–वेपार–धंधा
वगेरे अनेक प्रकारनी तडामार अने चडसाचडसीना आ जमानामां पण) संख्याबंध भाई–ब्हेनो पू.
गुरुदेवश्रीना सदुपदेशनो सीधो लाभ लई रह्यां छे–ए एक घणा हर्षनी बिना छे.
२. पण बधा मुमुक्षुओ तेओश्रीना सदुपदेशनो सीधो लाभ हमेशा न लई शके, तेथी तेओने पण
गुरुदेवश्रीनी कल्याणकारी वाणीनो लाभ मळे–ए हेतुथी आ ‘आत्मधर्म’ प्रसिद्ध करवामां आवे छे. अने तेनो
लाभ पण घणा भाई–बहेनो लई रह्यां छे. गुजराती आत्मधर्मना आशरे २००० अने हिंदीना आशरे १०००
ग्राहको छे. सत्यधर्मनी साची समजण (एटले के आत्मानी ओळखाण) ए ज साचा सुखनो उपाय छे. साचा
अविनाशी सुखनी ईच्छा सर्वे जीवोने छे माटे जेम बने तेम वधारे संख्यामां आ पत्रनो लाभ जीवोने मळे ए
हेतुथी तेना प्रचारनी एक योजना करवामां आवी छे. आ उपरांत, वस्तुस्वभावने सरळ रीते समजावतुं एक
पुस्तक पूज्य गुरुदेवश्रीना व्याख्यानो उपरथी छपाववामां आवे छे, तेनी ५००० गुजराती तथा ५००० हिंदी–
एम कुल दश हजार प्रत छपाशे. तेमांथी गुजरातीनी ५००० प्रतो छापवानुं काम लगभग पूरुं थवा आव्युं छे.
आ पुस्तक सत्धर्मना प्रचार अर्थे तद्न मफत वहेंचवानी योजना करी छे. आ योजना पार पाडवा माटे ५०००
पूरा सरनामानी जरूर छे, ते माटेनी खास विनंति आ अंकमां आपी छे.
३. आत्मधर्मनी गुजराती तेमज हिंदी आवृत्ति उपरांत, आ संस्था (श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट)
मारफत तत्त्वज्ञानना पुस्तकोनो जे विस्तृत प्रचार थयो छे, ते बधा भाई–बहेनोना जाणवामां न होय तेथी
तेओनी जाण माटे ते पुस्तको संबंधी जाणवा योग्य विगतोनुं पत्रक आ अंकमां प्रसिद्ध करवामां आव्युं छे. ते
उपरथी मुमुक्षुओने जणाशे के आज सुधीमां प्रचार पामेला पुस्तकोनी संख्या
एकलाख बसो पचास छे, के जेनी
किंमत रू. ५९४६२–छे. (जे पुस्तको भेट तरीके आपवामां आव्या छे तेनी किंमत आमां गणी नथी.) भेट
पुस्तकोनी किंमत रू
।। १००००/–दश हजार छे.
ए उपरांत हिंदी भाषानां तत्त्वज्ञाननां पुस्तकोनो पण मोटो प्रचार अहीं थई रह्यो छे. लगभग
१०२५० हिंदी पुस्तकोनो प्रचार थयो छे, जेनी किंमत लगभग–रू।। २५०००–थाय.
तेमज ‘श्रीमद् राजचंद्रजीना तत्त्वज्ञान संबंधी साहित्यनो पण अहींथी घणो प्रचार थयो छे, लगभग
४००० पुस्तकोनो प्रचार थयो छे जेनी किंमत लगभग रू।। ५०००–थाय. ए रीते आ संस्था तरफथी आज
सुधीमां कुल रू. ९९४६२–नी किंमतना पुस्तको प्रचार पाम्यां छे. आ बधां पुस्तको मुख्यपणे पडतर भावे अने
घणां तो पडतरथी पण घणा ओछा भावे आपवामां आव्यां छे. पुस्तकोनी संख्या कुल ११४५००–अंके एक लाख
चौद हजार पांच सो थाय छे. आमां हाल सिलक रू
।। २००००/–वीश हजार आशरेनां पुस्तको वेचावां बाकी छे.
४. ‘आत्मधर्म’ पंचमवर्षमां प्रवेश करे छे ते प्रसंगे मानवंता मुमुक्षु ग्राहकोने केटलीक सूचनाओ
करवानी जरूर लागे छे ते नीचे मुजब छे–