स्वभाव छे. जड चेतननुं भेदज्ञान अने तेनुं फळ वीतरागता. बिलाडी उंदरने पकडे छे एम बोलाय छे, हवे त्यां
खरेखर भेदज्ञानथी जोईए तो बिलाडीनो आत्मा अने तेनुं शरीर जुदां छे; तेमां बिलाडीना आत्माए तो उंदरनुं
ज्ञान कर्युं छे अने साथे साथे तेने मारीने खावानो अत्यंत तीव्र गृद्धिभाव कर्यो छे, अने मोढाद्वारा उंदर पकडवानी
क्रिया जड परमाणुओना स्वतंत्र कारणे थई छे. आम सर्वत्र जड चेतननी स्वतंत्रता छे. जड–चेतननां आवा
भेदज्ञाननी समजणनुं फळ वीतरागता छे. साचुं समजे तो परथी अत्यंत उदास थई जाय, परंतु कोई एम बोले
के ‘खावुं–पीवुं वगेरे बधी शरीरनी क्रिया छे’ अने अंतरथी तो ते प्रत्ये जरापण उदासीनता थाय नहि, तीव्र
करे छे. जो के जडनी क्रिया तो जडथी ज थाय छे, परंतु जो खरेखर तें तारा आत्माने परथी भिन्न जाण्यो होय तो
तने परद्रव्योने भोगववा तरफ रुचि भाव ज केम थाय छे? एक तरफ जडथी भिन्न–पणानी वातो करवी अने
पाछुं जडनी रुचिमां एकाकारपणे तल्लीन वर्त्या करवुं–ए तो चोकखो स्वच्छंद छे, पण भेद ज्ञान नथी.
उत्तर:– तारो आत्म स्वभाव केवो छे ते तने ओळखाववो छे. ज्ञानीओ स्वयं आत्माने परथी भिन्नपणे
शरीरनां रजकणो पण जगतनां स्वतंत्र तत्त्वो छे, तेनी अवस्था तेनी स्वतंत्र ताकातथी थाय छे, तुं तनो कर्ता
नथी. तुं तारी पर्यायमां जे ज्ञान तथा क्रोधादि भावो करे छे ते तने शरीर करावतुं नथी; तुं जुदो अने परमाणु
जुदा तारी शक्ति जुदी अने परमाणुनी शक्ति जुदी. तारुं काम जुदुं अने परमाणुनुं काम जुदुं.
धणीपणुं छोडी दे
तारुं नथी. माटे परना कर्तापणानी मान्यता छोड, परमां मारुं सुख छे एवी मान्यता छोड, विकार मारुं स्वरूप
छे एवी मान्यता पण छोड. अने परथी तथा विकारथी भिन्न मात्र चैतन्यस्वरूप एवा तारा आत्मानी
ओळखाण करीने तेनी श्रद्धा कर.
मूळ स्वरूपने नहि जाण्युं होवाथी कोई अन्यने आपरूप मानीने तेमां अहंबुद्धि अवश्य धारण करे छे. पोते
ते पोतानुं स्वरूप मानी रह्यो छे. ए रीते ईन्द्रियज्ञानना अवलंबनने लीधे पोताना साचा स्वरूपनुं अजाणपणुं
एज सर्व भूलनुं मूळ छे.
भिन्न आत्मानुं स्वरूप अने तेनी चैतन्य क्रिया सम्यग्ज्ञानथी जणाय, अने ए जणातां जडनी अने विकारी
क्रियानुं धणीपणुं छूटी जाय. अंतर स्वभाव तरफ वळीने धीरो थईने, अतीन्द्रिय ज्ञानथी अंदर जोतो नथी, अने
मात्र ईन्द्रिय–ज्ञानथी पर तरफ ज जोया करे