Atmadharma magazine - Ank 051
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA With the permisson of the Baroda Govt. Regd No. B. 4787
order No. 30-24 date 31-10-44
जे शक्तिने लीधे द्रव्यनो कदी नाश न थाय तेने
अस्तित्वगुण कहे छे.
गुरुजी–बराबर; हवे विचार करो के ‘रमणना दादा’
ए शुं वस्तु हती?
वसंत–रमणना दादामां एक जीव अने एक शरीर हतुं.
ए जीव अने शरीर भेगा रहेता तेने लोको ‘रमणना
दादा’ तरीके ओळखता हता.
गुरुजी–रमणना दादा मरी गया–एटले शुं?
भूपत–रमणना दादानो जीव अने शरीर छूटा पड्या
तेने लोको मरण कहे छे.
गुरुजी–तो रमणना दादानो जीव नाश पाम्यो के नहि?
भरत–ना, जी. जीवमां अस्तित्वपणुं छे तेथी ते नाश
पामे ज नहि.
गुरुजी–त्यारे ते जीव क्यां गयो?
बाबु–ते जीव बीजी गतिमां अवतर्यो. तेमने धर्मनो
प्रेम हतो तेथी ते स्वर्गमां जाय.
गुरुजी–जीवनो नाश थाय नहि ए वात बराबर, पण
रमणना दादानुं शरीर अजीव हतुं तेनो तो नाश थयो ने?
मनसुख–ना, जी. अजीव वस्तुओमां पण अस्तित्व
नामनो गुण छे, तेथी तेनो पण नाश थाय नहि.
गुरुजी–शरीर कई वस्तुमांथी बन्युं हशे?
किशोर–पुद्गल नामनी अजीव वस्तुमांथी शरीर बन्युं छे.
गुरुजी–पुद्गल ते शुं हशे?
कान्ति–ए बहु झीणा रजकण छे, ते भेगा थाय छे ने
छूटा पडे छे.
गुरुजी–रमणना दादाना शरीरनुं शुं थयुं?
धीरज–रमणना दादानुं शरीर घणा रजकण भेगा
थईने बन्युं हतुं, ते बधा छूटा पडी गया; तेथी लोको कहे
छे के ‘रमणना दादानुं शरीर छूटी गयुं. ’
गुरुजी–तो शरीरमांथी छूटा पडेला भाग तो होवा
जोईए ने?
हरसुख–जुओ साहेब, ते शरीर सळगीने तेमांथी
घणा रजकणनी राख थई, घणानो धूमाडो थयो ने घणा
हवामां ऊडी गया.
गुरुजी–जीवनो पण नाश थयो नहि, ने अजीवनो पण
नाश थयो नहि, तो पछी ‘रमणना दादा मरी गया एम
बधा लोको केम बोले छे?
धरणिधर–लोकोमां बधाने आवुं ज्ञान होय नहि, तेथी
लोकोना व्यवहारमां ‘रमणना दादा मरी गया’ एम
कहेवाय छे.
गुरुजी–तो व्यवहारे जे कहेवाय छे तेनो साचो अर्थ
शो?
ज्योति–तेनो साचो अर्थ ए के खरेखर कोई मरतुं नथी,
कोई वस्तु नाश पामती नथी. पहेलांं जीव अने शरीर भेगा
देखाता ते जुदा पड्यां. बस, आटलो ज तेनो अर्थ छे.
गुरुजी–कोई जीव मरे?
चंद्रकान्त–ना.
गुरुजी–कोई जीव नवो थाय?
छबील–ना. कोई जीव नवो थाय नहि, एटले के कोई
जीव जन्मे नहि.
गुरुजी–एम शा माटे हशे?
सुरेन्द्र–केम के वस्तुमां अस्तित्व गुण छे, तेथी
जगतमां जे वस्तु होय तेनो कदी नाश थाय नहि. जे वस्तु
न होय ते कदी नवी बने नहि. पण जे वस्तु होय ते सदा
फर्या करे.
गुरुजी–आ उपरथी तमे बधा शुं समज्या? ते कहो
जोईए.
बधा बाळको साथे बोले छे–
हुं एक जीव छुं. मारामां अस्तित्व गुण छे;
मारो कदी नाश थतो नथी. हुं कदी मरतो नथी.
हुं कदी जनमतो नथी. हुं मारा ज्ञानथी सदाय जीवुं छुं.
मारी हालत जुदी जुदी थया करे छे.
अजीव वस्तुमां पण अस्तित्व गुण छे;
तेनो कदी नाश थतो नथी. हुं जीव छुं; शरीर अजीव छे.
मारामां ज्ञान छे, शरीरमां ज्ञान नथी. शरीर माराथी
जुदुं छे.
गुरुजी–बाळको तमे बहु सारुं समजी गया छो. तमे
नानी उमरथी ज आवुं शीखो छो ते जोईने मने आनंद
थयो छे, तेथी तमने बधाने एकेक शास्त्र ईनाम आपुं छुं.
तमारामां एक ‘वस्तुत्व’ नामनो सरस गुण छे, तेनी
समजण हवे आपीश.
ईनाम मळवाथी बधा बाळको राजी थया अने
‘सीमंधर भगवानकी जय’ बोलावीने बधा छूटा पड्या.
रस्तामां पण रमणना दादानी अने अस्तित्व गुणनी
वातो करता करता बधाय घरे गया.
मुद्रक: चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, मोटा आंकडिया ता. ११–१–४८
प्रकाशक: श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया, काठियावाड.