Atmadharma magazine - Ank 051
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४७४ : आत्मधर्म : ४७ :
पंच परमेष्ठीमां कोई शास्त्र नथी. पण अरिहंत,
आचार्य, उपाध्याय तथा साधु–ए चारेनी वाणीने शास्त्र
कहेवाय छे.
(२)
सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान ने सम्यक्चारित्र–ए त्रण
वस्तुथी आपणने जरूर मोक्ष मळे छे.
(३)
चारे वस्तुमां सम्यग्दर्शन ज मने गमे छे. केमके ते
आत्मानी वस्तु छे, ने तेनाथी सुख मळे छे, बीजी त्रणे
वस्तुओ तो आत्माथी जुदी छे.
नोंध:– पहेला जवाबमां घणा बाळकोए ‘साधु–
साध्वी’ एम लखेल छे, तेमनी भूल छे. पंच परमेष्ठीमां
‘साध्वी’ (अर्थात् आर्जिका) गणातां नथी, केमके तेमने
मुनिदशा होती नथी.
आ वखते कुल ६३ बाळकोनां जवाब आव्यां हतां.
तेमांथी नीचे लखेला २९ बाळकोनां जवाब संपूर्ण साचा हता.
(१) कान्तिलाल, लाठी (२) धीरजलाल, लाठी (३)
हरसुखलाल, जामनगर (४) किशोरचंद्र, सोनगढ (५)
मंजुलाबेन, सोनगढ (६) रजनिकान्त, सोनगढ (७)
धीरजलाल, राजकोट (८) चंद्रकान्त, राजकोट (९)
छबीलदास, कलकत्ता (१०) सुरेन्द्र, मुंबई (११)
जगदीशचंद्र, मुंबई (१२) रमेशचंद्र, अमदावाद (१३)
मंजुलाबेन, वींछीया (१४) जसवंतीबेन, वींछीया (१५)
मधुकान्ताबेन, वींछीया (१६) रसिकलाल, वींछीया (१७)
कान्तिलाल, राणपुर (१८) चंद्रकान्त, जोरावरनगर
(१९) कैलास, अमरेली (२०) वीरबाळा, बोरसद
(२१) महेन्द्रकुमार, उजेडीआ (२२) हिंमतलाल, पालेज
(२३) जयंतिलाल, मोडासा (२४) विनयचंद्र, वढवाण
शहेर (२५) चंदनबाळा, वढवाण शहेर (२६) कंचनबेन,
वढवाण केम्प (२७) वसंतलाल सावरकुंडला (२८)
राजेन्द्र, आमोद (२९) विजय, मुंबई
आ वखते जवाब मोकलनारा बधा ज बाळकोने
ईनाम मोकलवामां आव्युं छे. हवेथी संपूर्ण साचा जवाब
वाळाने ज ईनाम मळशे.
जवाब शोधी काढो
नीचेना त्रण प्रश्नोनो जवाब शोधी काढीने लखी
मोकलजो, अने तमारा बाल मित्रोने पण लखवानुं कहेजो.
प्रश्नो लखवानी जरूर नथी, मात्र जवाबो ज लखवा.
(१)
नव तत्त्वना नाम लखो अने तेमांथी तमने कया कया
तत्त्वो गमे छे ते जणावो.
(२)
नीचे लखेली वस्तुओमांथी कई कई वस्तुओ जीवमां
होय छे अने कई कई वस्तुओ शरीरमां होय छे ते शोधी
काढो–
ज्ञान, दुःख, राग, जन्म, रोग, सुख.
(३)
नीचेना वाकयोमां भूल सुधारो–
१–एक माणसना शरीरमां घणुं ज्ञान हतुं.
२–जीवनुं लक्षण शरीर छे.
३–पुस्तकमांथी ज्ञान आवे छे.
४–दुःख शरीरने थाय छे अने सुख आत्माने थाय छे.
चौद वर्ष सुधीना बाळकोए ज आमां भाग लेवो.
नाम अने सरनामा साथे जवाब एक पोस्टकार्डमां नीचेना
सरनामे मोकलवा–
“आत्मधर्म बालविभाग” सोनगढ (काठियावाड)
पोष शुद १५ सुधीमां जवाब मळी जवा जोईए;
संपूर्ण साचा जवाब हशे तेने ईनाम आपवामां आवशे.
बाळको, तमे ईनामनी लालच न राखता, पण साचा
तत्त्वज्ञान माटेनी होंश राखजो.
हिंदुस्ताननी बहारना बाळकोना जवाब पोष वद ०))
सुधी स्वीकाराशे.
समन्य अस्तत्व गणन समजण
[मास्तर हीराचंद कसळचंद शाह]
गुरुजी–आजे रमण केम नथी आव्यो?
चमन–साहेब, आजे तेना दादाजी मरी गया छे तेथी
ते आव्यो नथी;
गुरुजी–ठीक; मरी जवुं एटले शुं तेनी कोईने खबर छे?
छगन–साहेब, ए तो जगतमां बधाय जाणे छे के: मरी
जवुं एटले नाश थवो.
गुरुजी–जगत् माने तेम मानी लेवुं ए न चाले. नाश
कोनो थाय? ए विचार करो. आ जगतमां जीव ने अजीव
बे जातनी वस्तुओ छे तेमांथी शुं कोई नाश पामे छे?
मगन–ना, जी. जीव के अजीव कोई वस्तुनो नाश थतो
नथी, पण दरेक वस्तु सदाय टकी रहे छे. तेमां फेरफार थाय
छे पण तेनो नाश थई जतो नथी.
गुरुजी–वस्तुनो नाश केम नहि थतो होय?
सुरेश–केम के वस्तुमां ‘अस्तित्व’ नामनो गुण छे.
गुरुजी–अस्तित्व एटले शुं?
दीनेश–अस्तित्व एटले होवापणुं. बधी वस्तु छे,
वस्तुना होवापणानो कदी नाश थतो नथी. वस्तु सदाय छे,
छे ने छे.
गुरुजी–कोई शास्त्रमां अस्तित्वगुणनी वात तमे
शीख्या छो?
रजनि–जी, हा; ‘श्रीजैनसिद्धांत प्रवेशिका’ ना ११८ मा
प्रश्नमां ते वात आवे छे. तेमां कह्युं छे के–