Atmadharma magazine - Ank 051
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: ४६ : आत्मधर्म : पोष : २४७४ :
बाल विभाग
बाळकनी स्वाध्याय
(१)
जीवनुं बीजुं नाम आत्मा छे.
हुं एक जीव छुं–एटले हुं एक आत्मा छुं.
हुं आत्मा छुं माटे हुं शरीर नथी.
शरीर जड छे माटे शरीर आत्मा नथी.
(२)
अजीव एटले जड; तेनुं बीजुं नाम अनात्मा छे.
हुं एक जीव छुं माटे हुं जड नथी.
हुं एक जीव छुं माटे हुं अनात्मा नथी.
हुं एक आत्मा छुं माटे हुं अनात्मा नथी.
हुं एक जीव छुं, हुं एक आत्मा छुं, माटे हुं शरीर नथी,
हुं जड नथी, हुं अजीव नथी, हुं अनात्मा नथी.
(३)
जे शरीर छे ते हुं नथी, माटे हुं अने शरीर जुदां
छीए.
जेम हीरानी वींटीमां, हीरो अने वींटी जुदा छे तेम
हुं अने शरीर जुदां छीए.
जेम डबामां रहेलो गोळ अने डबो जुदां छे तेम हुं
अने शरीर जुदां छीए.
(४)
जेम हीरानी वींटीमां, हीरो अने वींटी एक जगाए
छे तेम हुं अने शरीर एक जगाए रहेला छीए, पण–
जेम हीरो अने वींटी जुदी जुदी वस्तु छे तेम हुं
अने शरीर जुदी जुदी वस्तु छीए.
जेम डबामां गोळ छे तेम शरीरमां हुं छुं.
जेम डबो अने गोळ जुदी जुदी चीज छे तेम हुं अने
शरीर जुदी जुदी चीज छीए. हुं जीव छुं अने शरीर जड छे.
(५)
हुं मारा ज्ञानथी जाणुं छुं.
जे जाणे ते काळजी न राखे तो जाणवामां भूल करे.
हुं जाणुं छुं, माटे जो हुं ज्ञानमां काळजी न राखुं तो
जाणवामां भूल करुं छुं.
जे भूल करे ते ज भूलने मटाडे.
में जाणवामां भूल करी छे माटे हुं ज ते भूल मटाडुं.
(६)
शरीर अने हुं जुदा छीए–एम मारे जाणवुं जोईए.
छतां–शरीरने हुं मारुं जाणुं ते मारा ज्ञाननी भूल छे.
ज्ञानमां भूल करवाथी दुःख थाय छे.
ज्ञानमांथी भूल टाळवाथी सुख थाय छे.
जडमां ज्ञान होतुं नथी, तेथी तेमां भूल होती नथी,
अने तेने सुख–दुःख होतां नथी.
(७)
जे जीवो शरीरने पोतानुं माने छे ते जीवो दुःखी छे.
शरीरने पोतानुं मानवुं ते ऊंधी समजण छे.
ऊंधी समजण जीव पोताना ज्ञानमां करे छे, माटे जीव
तेने टाळी शके.
बीजा जीवो मारा ज्ञानमां ऊंधी समजण करी शके
नहि, माटे मारी ऊंधी समजण बीजा टाळी शके नहि.
जीवमां ऊंधी समजण पोते एकलो ज करे छे, ने पोते
एकलो ज ते टाळे छे.
(८)
जीवनी ऊंधी समजण ते अधर्म छे.
जीवनी साची समजण ते धर्म छे.
हुं सिद्ध बनुं
हुं अनंत गुणनो दरियो छुं,
हुं अनंत ज्ञानथी भरियो छुं;
हुं सुख–शांतिनो सागर छुं,
हुं शिव–नगरीनो नागर छुं.
हुं मोहभावने दूर करुं,
हुं ज्ञानभावने प्राप्त करुं;
मुज आत्मामां हुं लीन बनुं,
मुज सिद्धपदने हुं प्राप्त करुं
मास्तर हीराचंद के. शाह
गया अंकमां पूछेला प्रश्नोनो जवाब
(१) अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय अने साधु–
ए पांच परमेष्ठि छे.
तेमां अरिहंत अने सिद्ध ए बे देव छे.
आचार्य, उपाध्याय अने साधु ए त्रण गुरु छे.