औदयिकभाव कहेवामां आवे छे.
प्रश्न:– द्रव्य ज उपादान कारण होई शके, पर्याय नहि ए मान्यता बराबर छे?
उत्तर:– पर्याय उपादान कारण न होय पण द्रव्य ज उपादान कारण होई शके–ए मान्यता बराबर नथी.
छे. ते एटलुं बतावे छे के आ पर्याय आ द्रव्यनो छे. द्रष्टांत:– माटीमां घडो थवानी सदा लायकात छे एम
पर्यायार्थिकनये एटले के ज्यारे पर्यायनी योग्यता बताववी होय त्यारे दरेक समयनी पर्यायनी योग्यता ते
उपादान कारण छे अने ते पर्याय पोते कार्य छे. सूक्ष्मताथी विचार करवामां आवे तो कारण–कार्य एक ज समये
होय छे. (जुओ तत्त्वार्थसार मोक्ष अधिकार गाथा ३५ तथा तेनो अर्थ पृ. ४०७) आनो अर्थ एवो छे के दरेक
समये दरेक द्रव्यमां एक ज पर्याय थवानी लायकात होय छे, पण तेनी पहेलांंना समयनी के पछीनी पर्यायमां ते
लायकात होती नथी. आ कथन पर्यायार्थिकनये समजवुं.
रोत्तरपरिणामानुदयनात्पूर्व पूर्व–परिणामानामनुदयनात् सर्वत्रापि परस्परानुस्यूतिस्त्रकस्य प्रवाहस्याव–
स्थानात्त्रैलक्षण्यं प्रसिद्धिमवतरति।।
(प्रगटता) समस्त परिणामोमां, पछी पछीना अवसरोए पछी पछीना परिणामो प्रगट थता होवाथी अने
पहेलांं पहेलांंना परिणामो नहि प्रगट थता होवाथी तथा बधेय परस्पर अनुस्यूति रचनारो प्रवाह अवस्थित
(–टकतो) होवाथी त्रिलक्षणपणुं प्रसिद्धि पामे छे.’
केवलज्ञानोत्पत्तौ शुद्धोपादानकारणं भवति। अशुद्धात्मा तु रागादिना अशुध्धनिश्चयेनाशुद्धोपादानकारणं
भवतीति सूत्रार्थः।।
शुद्ध उपादान कारण छे. अने रागादिरूपे परिणमतो अशुद्ध आत्मा अशुद्ध निश्चयथी अशुद्ध उपादान कारण छे. आ
प्रमाणे सूत्रार्थ छे. ’ अहीं शुद्ध–पर्यायने तथा अशुद्धपर्यायने बंनेने उपादान कारण कह्यां छे.
औपाधिकमुपादानम–शुद्धम् तप्तायःपिंडवत्, निरूपाधिरूपमुपादानं शुद्धं पीतत्वादिगुणानां सुवर्णवत्
अनंतज्ञानादिगुणानां सिद्धजीववत् उष्णत्वादि गुणानामग्निवत्। इदं व्याख्यानमुपादानकारण–व्याख्यानकाले
शुद्धाशुद्धोपादानरूपेण सर्वत्र स्मरणीयमिति भावार्थः।
बे प्रकारनुं कई रीते छे? श्रीगुरु तेनुं समाधान करे छे के–तपेला लोढाना गोळानी जेम जे औपाधिकउपादान छे ते
अशुद्ध उपादान छे. अने जेम सोनामां पीळाश वगेरे गुणो छे, जेम सिद्ध जीवमां अनंतज्ञान वगेरे गुणो छे तथा
जेम अग्निमां उष्णता वगेरे गुणो छे तेम जे निरूपाधिभावरूप उपादान छे ते शुद्धउपादान छे. उपादान कारणनी
व्याख्या वखते शुद्ध अने अशुद्ध उपादानरूपे आ व्याख्यान बधी जगाए याद करवुं. आ भावार्थ छे.’