Atmadharma magazine - Ank 051
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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। धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे ।
वर्ष पांचमुं : संपादक : पोष
रामजी माणेकचंद दोशी
अंक त्रीजो वकील २४७४
जा त्त् िज्ञ र्
वस्तु विज्ञानसार
जगतमां सत्य वस्तुविज्ञाननो महान प्रचार पामे अने सत्यतत्त्वज्ञान जीवोना
ख्यालमां आवे तेवी भावनाथी वस्तुविज्ञानसार नामना पुस्तकनी एकंदर दस हजार कोपी
छपावी छे, अने ते विनामूल्ये भेट मोकलवानी योजना करवामां आवी छे.
जगतना घणा जीवो आत्मकल्याण करवानी भावनावाळा होय छे परंतु यथार्थ
तत्त्वज्ञाननी प्राप्तिना अभावे तेओ आत्मानी खरी समजण पामी शकता नथी, एना
परिणामे या तो तेओ मूंझाया करे छे. अगर तो ऊंधा मार्गमां फसाई पडे छे.
–एवा आत्मार्थि जीवो मूळभूत तत्त्वज्ञानने वांचे, विचारे, तेनो निर्णय करीने
आत्मानी समजण पामे अने निःशंकपणे पोताना आत्मकल्याणना पंथे विचरी शके एवी
उत्कट शुभभावनाथी प्रेराईने आ पुस्तिका छपाववामां आवी छे, एमां अति अगत्यना
मूळभूत वस्तुनियमोनुं दोहन कर्युं छे, जेने विचारवाथी अने समजवाथी अवश्य स्वसन्मुख
परिणति प्राप्त थाय छे.
आ पुस्तकमां आवेला विषय संबंधी प्रस्तावनामां लखवामां आव्युं छे, ते
प्रस्तावना पण आ अंकमां आपवामां आवी छे.
आ पुस्तकनी प्रभावनामां ३९३१/–रू. नी सहायता जुदा जुदा मुमुक्षुओ तरफथी
मळी छे, ते साभार स्वीकारवामां आवी छे.
आ पुस्तक मोकलवा माटे ५००० गुजराती सरनामानी जरूर छे. तो, जे जैनो आ
पुस्तक वांचे अने विचारे तेवा होय तेमना सरनामा लखी मोकलवा आत्मधर्मना वांचकोने
विनंति छे.
वार्षिक लवाजम छुटक अंक
त्रण रूपिया चार आना
• आत्मधर्म कार्यालय – मोटा आंकडिया – काठियावाड •