Atmadharma magazine - Ank 051
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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वस्तुविज्ञानसारनी : : : : :
प्रस्तावना
यथार्थ वस्तुविज्ञाननुं रहस्य पाम्या विना गमे तेटलो प्रयत्न करवामां आवे, गमे तेटलां व्रत–नियम–
तप–त्याग–वैराग्य–भक्ति–शास्त्राभ्यास करवामां आवे तोपण जीवनो एक पण भव घटतो नथी. माटे आ
मनुष्यभवमां जीवनुं मुख्य कर्तव्य यथार्थ रीते वस्तुविज्ञान प्राप्त करी लेवानुं छे. वीतराग सर्वज्ञे स्वयं प्रत्यक्ष
जाणीने उपदेशेलुं वस्तु–विज्ञान विशाळ छे अने ते अनेक आगमोमां विस्तरेलुं छे. ते विशाळ वस्तुविज्ञानना
रहस्यभूत सार आ नानी पुस्तिकामां प्रगट करवामां आव्यो छे, कारण के अनेक आगमोना अभ्यासीहुं पण
घणी वार ते वस्तुविज्ञाननुं खरुं रहस्य खेंची शकता नथी.
नीचेनी रहस्यभूत हकीकतो आमां खास स्पष्ट करवामां आवी छे:–
विश्वनो दरेके दरेक पदार्थ सामान्य–विशेषात्मक छे. सामान्य पोते ज विशेषरूपे ऊखळे छे–परिणमे छे.
विशेषरूपे ऊखळवामां बीजा कोई पदार्थनी तेने खरेखर किंचित्मात्र सहाय नथी. पदार्थमात्र निरपेक्ष छे.
आम सर्व स्वतंत्र होवा छतां विश्वमां अंधारुं नथी–प्रकाश छे, अकस्मात नथी–न्याय छे; तेथी
‘पुण्यभाव रूप विशेषमां परिणमनार जीवद्रव्यने अमुक (अनुकूळ कहेवाती) सामग्रीनो ज संयोग थाय,
पापभावरूप विशेषमां परिणमनार जीवद्रव्यने अमुक (प्रतिकूळ कहेवाती) सामग्रीनो ज संयोग थाय,
शुद्धभावरूप विशेषमां परिणमनार जीवद्रव्यने कर्मादिक संयोगनो अभाव ज थाय’ –ईत्यादि अनेकानेक प्रकारनो
सहज निमित्त–नैमित्तिक संबंध विश्वना पदार्थोमां प्रवर्ते छे. निमित्त–नैमित्तिकपणे प्रवर्तता पदार्थोमां परतंत्रता
लेश पण नथी. सौ पोतपोताना विशेषोरूपे ज स्वतंत्रपणे छतां न्यायसंगतपणे ऊखळ्‌या करे छे.
आम होवाथी जीवद्रव्य देहादिकनी क्रिया तो करी शकतुं ज नथी, पोताना विशेषने मात्र करी शके छे.
संकल्पविकल्परूप विशेष ते दुःखपंथ छे, विपरीत पुरुषार्थ छे; जगतनुं स्वरूप न्यायसंगत अने नियत जाणी,
परमां पोतानुं कांई कर्तृत्व नथी एम निर्णय करी, निजद्रव्यसामान्यनी श्रद्धारूपे परिणमी तेमां लीन थई जवारूप
विशेष ते ज सुखपंथ छे, ते ज परम पुरुषार्थ छे. अज्ञानीओने परनो फेरफार करी शकवामां ज पुरुषार्थ भासे छे,
संकल्पविकल्पोना उछाळामां ज पुरुषार्थ भासे छे, परंतु विश्वना सर्वभावोना नियतपणानो निर्णय जेमां गर्भित
छे एवी द्रव्यसामान्यनी श्रद्धा करी तेमां डूबी जवारूप जे यथार्थ परम पुरुषार्थ ते तेने ख्यालमां ज आवतो नथी.
वळी जीवोए आगमोमांथी उपरोक्त वातोनी धारणा पण अनंत वार करी लीधी छे परंतु सर्व
आगमोना सारभूत स्वद्रव्यसामान्यनो यथार्थ निर्णय करी तेनी रुचिरूपे परिणमन कर्युं नथी. जो ते–रूपे
परिणमन कर्युं होत तो संसार परिभ्रमण होत नहि.
–आवी वस्तुविज्ञाननी अनेक परमहितकारक रहस्य भूत साररूप हकीकतो आ पुस्तिकामां स्पष्ट रीते
समजाववामां आवी छे, तेथी आ पुस्तिकानुं नाम ‘वस्तुविज्ञानसार’ राखवामां आव्युं छे. परम पूज्य
परमोपकारी सद्गुरुदेव श्री कानजीस्वामी सोनगढमां हंमेशांं मुमुक्षुओ समक्ष जे आध्यात्मिक प्रवचनो करे छे
तेमांथी केटलांक वस्तु–विज्ञानना सारभूत प्रवचनो आमां प्रकाशित करवामां आव्यां छे. जे मुमुक्षुओ तेमां
कहेला विज्ञानसारने अभ्यासी, चिंतन करी, निर्बाध युक्तिरूप प्रयोगथी सिद्ध करी, निर्णीत करी,
चैतन्यसामान्यनी रुचिपणे परिणमी तेमां लीन थशे, ते अवश्य शाश्वत परमानंददशाने पामशे.
जे जीवो दैहिक क्रियाकांडमां के बाह्य प्रवृत्तिओमां धर्मनो अंश पण मानता होय, जे जीवो वैराग्य–भक्ति
आदि शुभ भावमां धर्म मानता होय, जे जीवो शुभ भावमां धर्मनुं किंचित्मात्र कारणपणुं मानता होय, जे जीवो
निर्णय विना शास्त्रोनी मात्र धारणा करवाथी किंचित् धर्म मानता होय, ते ते सर्व प्रकारना जीवो आ
पुस्तिकामां कहेला परमप्रयोजनभूत भावोने जिज्ञासुभावे शांतिथी गंभीरपणे विचारो अने अनंतकाळथी रही
गयेली मूळभूत भूल केटली सूक्ष्म छे तेम ज कया प्रकारनो अपूर्व परम सम्यक् पुरुषार्थ मागे छे ते समजी निज
कल्याण करो. तेमां ज आ मानवजीवननुं साफल्य छे.
रामजी माणेकचंद दोशी
मागशर सुद १५ प्रमुख
वीर सं. २४७४ श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट
सोनगढ