उपर परम पूज्य सद्गुरुदेवश्री कानजी स्वामीनां
प्रवचनोनो टूंक सार–––––– (लेखांक–१)
(अनुष्टुप)
(दोहा)
वर्ष पांचमुं : सळंग अंक : पोष
अंक त्रीजो : ५१ : २४७४
श्री परमात्माने नमस्कार श्री जिनवाणी माताने नमस्कार
श्री सद्गुरुदेवने नमस्कार श्री योगीन्द्र देवने नमस्कार
श्र परमत्म प्रकश
वीर सं. २४७३ द्वि. श्रावण वद प शुक्र
[१] ग्रंथकतार् : – आ परमात्मप्रकाश ग्रंथ छे, तेना रचनार श्री योगीन्द्रदेव जंगलमां वसनार निर्ग्रंथ संतमुनि
हता, आत्मानु–भवदशामां छठ्ठा–सातमा गुणस्थाने झूलता हता.
[२] दव्यध्वन नमस्कररूप मगलचरण : – शास्त्रनी शरुआतमां मांगळकि तरीके दव्यिध्वनि “ने नमस्कार
करवामां आवे छे. आत्मानो पूरो स्वभाव समजीने पूर्णपरमात्मदशा प्रगट करवा माटे ते निमित्त छे एटले के
स्वभाव समजीने पूर्णदशा प्रगट करे तेने निमित्त पूरुं पाडनार दिव्यध्वनि छे; तेथी मंगळाचरण तरीके तेने पण
नमस्कार करवामां आवे छे.
[३] अा ग्रंथनो िवषय : – आत्मा परमात्मस्वरूप छे, शक्तिरूप परमात्मा छे, तेनो प्रकाश कई रीते थाय
अर्थात् परमात्मदशा कई रीते प्रगटे तेनो उपाय आ शास्त्रमां बताव्यो छे तेथी तेनुं नाम परमात्मप्रकाश छे.
केवळज्ञान–केवळदर्शन–अनंत सुखने अनंत वीर्यरूप स्वचतुष्टय प्रगटे ते परमात्मदशा छे. आत्माना स्वभावमां
शक्तिरूप अनंतचतुष्टय त्रिकाळ छे, तेनी श्रद्धा करीने घोलन करवाथी आत्मा पोते ज परमात्मदशारूपे प्रकाश
पामे छे–प्रगट थाय छे; एवुं वर्णन आ शास्त्रमां छे.
[४] मंगलाचरण : – प्रथम मूळ ग्रंथकार श्री योगीन्द्रदेव मंगळाचरण करे छे–
जे जाया झाणग्गियए कम्मकलंक डहेवि।
णिच्च णिरंजन णाणमय ते परमप्प णवेवि।। १।।
अर्थ:– ध्यानरूपी अग्निथी भावकर्म अने द्रव्यकर्मरूपी कलंकने भस्म करीने जेओ नित्य–निरंजन–ज्ञानमय
सिद्धपरमात्मा थया छे तेओने हुं नमस्कार करुं छुं.
आ ग्रंथना टीकाकार श्री ब्रह्मदेवजी छे, टीकामां तेमणे नयोनुं घणुं स्पष्टीकरण कर्युं छे. टीकाकार
मंगळाचरण तरीके सिद्धात्माने नमस्कार करे छे–
चिदानन्दैकरूपाय जिनाय परमात्मने ।
परमात्मप्रकाशाय नित्यं सिद्धात्मने नमः।। १।।
अर्थ:– जेओ मात्र ज्ञान–आनंदस्वरूप छे, जिन छे, परमात्मा छे एवा श्री सिद्धभगवानने,
परमात्मप्रकाशनी प्राप्ति अर्थे सदा नमस्कार हो.
आ ग्रंथना हिंदी भाषांतर कर्ता पंडित श्री दौलतरामजी छे. छहढाळाना रचनार पं. दौलतरामजी अने
आ पं. दौलतरामजी–बंने जुदा छे. भाषांतर कर्ता मंगळाचरण करे छे–
चिदानंद चिद्रूप जो, जिन परमातम देव।
सिद्धरूपसुविशुद्ध जो, नमों ताहि करी सेव।। १।।
परमातम निजवस्तु जो, गुण अनंतमय सुद्ध।
ताहि प्रकासनके निमित्त वंदू देव प्रबुद्ध।। २।।
अर्थ:– जेओ ज्ञानानंदस्वरूप छे, जिन परमात्मा देव छे एवा संपूर्ण शुद्ध सिद्धभगवंतने भकितथी
नमस्कार हो.... शा माटे नमस्कार करवामां आवे छे? पोतानो स्वभाव अनंत गुणमय शुद्धपरमात्मस्वरूप छे
तेना प्रकाशनने माटे (अर्थात् परमात्मदशा प्रगट करवा माटे) ज्ञानस्वरूपी देवने हुं नमस्कार करुं छुं.