: ३६ : आत्मधर्म : पोष : २४७४ :
वीर सं. २४७३: द्विं. श्रावण वद ६ शनिवार
[५] परमात्मदशा प्रगटवानो उपाय ध्यान छे. : – “हुं परमात्मा ज छुं” एवी द्रष्टिना जोरे परमात्मदशा
प्रगट करवी तेनुं नाम परमात्मप्रकाश छे. आत्मा त्रिकाळ परमात्मा स्वरूप ज छे, ते स्वरूपनी द्रष्टि ए ज
मुक्तिनुं कारण छे. अहीं परमात्मस्वरूप जे त्रिकाळ छे तेनुं ध्यान ए ज परमात्मदशानो उपाय बताव्यो छे.
परमात्मशक्ति त्रिकाळ छे, तेनुं ध्यान करवाथी परमात्मदशा प्रगटरूप थई; ‘परमात्मदशा प्रगटी’ ए
कथन पर्यायद्रष्टिनुं छे अने ‘त्रिकाळ परमात्म स्वभाव छे’ ए द्रव्यद्रष्टि छे. ए परमात्मानी श्रद्धा करीने
सम्यग्दर्शन प्रगट करवुं ते पण परमात्मानुं निर्विकल्प ध्यान छे. सम्यग्दर्शन, ज्ञान ने चारित्र त्रणेय
परमात्माना ध्यानथी ज प्रगटे छे अने ते त्रणे निर्विकल्प ज छे.
[६] द्रव्य – गुण – पयार्यने अोळख्या वगर धमर् थाय निह. : – परमात्मशक्ति तो त्रिकाळ छे, पण अहीं तेनो
पर्याय प्रगटवानी वात छे. द्रव्य–गुण–पर्याय एटले शुं? द्रव्य ते त्रिकाळी शक्ति छे. तेनी प्रतीति वगर
पर्यायमां धर्म प्रगटे नहि. धर्म तो पर्यायमां छे. द्रव्य–गुण–पर्यायनुं स्वरूप जाण्या वगर धर्म क्यांथी करशे
अने शेमां करशे?
जे परमात्मशक्ति छे ते त्रिकाळ छे, ते शक्ति कदी नवी प्रगटती नथी अने तेनो कदी नाश थतो नथी.
द्रव्य अने तेनी शक्ति (अर्थात् गुणो) त्रिकाळ छे, तेनो पर्याय नवो प्रगटे छे. ए द्रव्यगुणपर्यायने ओळख्या
वगर धर्म थई शके नहि. कोई कहे के धर्म करवा माटे द्रव्य–गुण–पर्यायना ज्ञाननी जरूर नथी–तो तेनी वात
खोटी छे. पोताना द्रव्य–गुण–पर्याय साथे ज धर्मनो संबंध छे, माटे तेनुं ज्ञान अवश्य करवुं जोईए.
[७] िनश्चय मोक्षमागर् जीवनुं ित्रकाळीस्वरूप नथी : – जे एकलो आत्मस्वभाव छे ते ढंकाय पण नहि अने
प्रगटे पण नहि. ढंकाय अने प्रगटे ते तो पर्याय होय छे. परमात्मानुं ध्यान ते पर्याय छे. निश्चय सम्यग्दर्शन–
ज्ञान–चारित्ररूप जे निर्मळ पर्याय छे.–मोक्षमार्ग छे–ते पण जीवनुं त्रिकाळी स्वरूप नथी, तेने जीवनुं स्वरूप
कहेवुं ते पण उपचार छे–व्यवहार छे, केम के तेनो पण नाश थईने पूर्णदशा प्रगटे छे. जीवना मूळ स्वरूपमां
राग–द्वेष नथी. अने अधूरो पर्याय ते पण जीवनुं मूळस्वरूप नथी.
[८] कारण समयसार अने कायर् समयसार : – अहीं मोक्षमार्गरूप पर्यायने कारण समयसार कहेल छे.
‘त्रिकाळी स्वभाव ते कारण समयसार छे’ ए वात अहीं नथी लीधी. अहीं पर्यायमां मोक्षमार्गनी वात छे.
मोक्षमार्ग ते मोक्षनुं कारण छे एटले मोक्षमार्ग ते कारण समयसार छे, अने पूर्ण अनंत चतुष्टयरूप प्रगटदशा ते
कार्य समयसार छे. आ बन्ने पर्यायो छे, तेथी व्यवहार छे; अने त्रिकाळी परमात्मस्वभावरूप द्रव्य छे ते निश्चय
छे. कारण समयसार कहो के कारण परमात्मा कहो–ते बंने एक ज छे; तेवी ज रीते कार्य समयसार ने कार्य
परमात्मा ए बंने पण एक ज छे.
[९] द्रव्यद्रिष्ट अने पयार्य द्रिष्टनुं िवेचन : – द्रव्यद्रष्टिथी तो आत्मा त्रिकाळ सिद्धजेवो पूर्ण छे, तेमां सिद्धदशा
न हती ने प्रगटी–एवा बे भेद नथी. पण पर्यायद्रष्टिथी अनादिथी कदी सिद्धदशा न हती अने नवी प्रगटे छे
तेथी ‘अभूतपूर्व सिद्धदशा प्रगटी’ एम कहेवाय. अहीं परमात्मदशा प्रगटवानो उपाय निर्विकल्पध्यान ज कह्युं
छे, अज्ञानी ऊंधु ध्यान करे छे एटले के ‘रागादि ते हुं’ एवी ऊंधी श्रद्धाथी ध्यान करे छे तेथी ते रखडे छे. ते
रागनो आश्रय छोडीने त्रिकाळी स्वभावनी श्रद्धा करीने तेनुं ध्यान करवाथी सिद्धदशा प्रगटे छे; ते सिद्धदशा
नवी प्रगटे छे, माटे ‘अभूतपूर्व’ छे. संसारदशा टळीने सिद्धदशा प्रगटी ते कथन पर्यायद्रष्टिनुं छे; त्रिकाळी
स्वभावनुं कथन नथी.
[१०] द्रव्यािथर्कनय अने पयार्यािथर्कनय कोने जाणे छे? : – वर्तमान पर्यायने जोनारी द्रष्टि ते पर्यायद्रष्टि छे.
अने त्रिकाळी स्वभावने जोनारी द्रष्टि ते द्रव्यद्रष्टि छे.
जे त्रिकाळी द्रव्य स्वभावने जाणे अने कहे ते द्रव्यार्थिकनय छे. तेमां त्रिकाळी द्रव्यने जाणनार ज्ञान छे
ते अंतरंगनय (अर्थनय अथवा भावनय) छे, अने तेने कहेनार वचन ते बहिर्नय (–वचनात्मकनय अर्थात्
शब्दनय) कहेवाय छे; अने जे ज्ञान वर्तमान पर्यायने जाणे छे ते ज्ञानने अने तेने कहेनार वचनने
पर्यायार्थिकनय कहेवाय छे. तेमां पर्यायने जाणनारुं ज्ञान ते अंतरंगनय छे अने तेने कहेनार वचन ते
बहिर्नय छे.