Atmadharma magazine - Ank 051
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४७४ : आत्मधर्म : ३७ :
सिद्धदशाने जाणनारुं ज्ञान ते पर्यायार्थिकनय छे, परंतु सिद्धदशा प्रगटवानो उपाय पर्यायद्रष्टि नथी.
द्रव्यद्रष्टि ते ज सिद्धदशा प्रगटवानो उपाय छे. पण जे सिद्धदशा प्रगटे तेने जाणनार तो पर्यायार्थिकनय छे.
द्रव्यार्थिकनय द्रव्यने मुख्य करीने जाणे छे; अहीं ‘द्रव्य’ एटले शुं? द्रव्य अने पर्याय बंने भेगुं थईने
द्रव्य कहेवाय छे ते नहि, अर्थात् गुण–पर्यायनो पिंड ते द्रव्य–ए अपेक्षा अहीं नथी; पण अहीं तो वर्तमान
अंशने गौण करीने त्रिकाळ शक्ति ते द्रव्य छे, ते सामान्य–स्वभाव छे, अने वर्तमान अंश ते विशेष छे–पर्याय
छे. ए बे थईने आखुं द्रव्य ते प्रमाणनो विषय छे. अने तेमांथी सामान्यस्वभाव ते द्रव्यार्थिकनयनो विषय छे,
विशेष पर्यायते पर्यायार्थिकनयनो विषय छे. तेमांथी द्रव्यार्थिकनयनी द्रष्टिमां पर्याय गौण छे एटले ए नयनी
द्रष्टिमां सिद्धदशा प्रगटी ते वात न आवे; त्रिकाळ शुद्ध ज्ञान स्वभाव छे ते द्रव्यद्रष्टिनो विषय छे, अने तेना ज
आश्रये निर्मळपर्याय प्रगटे छे. द्रव्यनो विश्वास करवाथी ज पर्यायमां निर्मळ कार्य थाय छे.
द्रव्यार्थिकनयथी आ जगतमां जेटला आत्माओ छे ते दरेक आत्मा शुद्ध–बुद्ध परमात्मस्वभाव ज छे.
आखो लोक परमात्मस्वभावी शुद्ध–बुद्ध जीवोथी ठांसी ठांसीने भरेलो छे. परंतु बधा आत्मा भेगा थईने
अद्वैतब्रह्म छे–एम न समजवुं. लोकमां सर्वत्र आत्मा भरेला छे अने ते एकेक आत्मा द्रव्यद्रष्टिए पूर्ण
परमात्मा छे.
[] द्रष्ट त्स् : जेम सुवर्णपाषणमां सोनुं तो सदाय सोनुं ज छे,
पत्थर साथे छे ते वखते पण तेनुं सोनापणुं टळी गयुं नथी, अने जुदुं पाडे त्यारे पण ते सोनुं ज छे. सोनुं
प्रगट्युं (अर्थात् शुद्ध थयुं) ते तो पर्याय अपेक्षाए छे, शक्ति तो कायम छे. तेम आत्मामां परमात्मदशा
शक्तिरूपे त्रिकाळ छे. संसारदशा वखते पण परमात्म स्वभाव शक्तिरूपे तो छे ज, एनो कदी नाश थयो नथी
अने ते कदी नवो प्रगटतो नथी. पण एनी ओळखाण अने श्रद्धा करवाथी परमात्मदशा नवी प्रगटे छे, ए ज
सुख छे.
[] रू :रू ? : ज्यांसुधी अशुभगतिमां तो दुःख भासे पण आखो संसार ज दुःखरूप छे
एम न भासे त्यांसुधी अज्ञान छे, संयोगनी रुचि छे. स्वर्गमां मोटा देवनो अवतार थाय अने अनुकूळ सामग्री
होय ते पण दुःखरूप ज छे. आखो संसार ज दुःखरूप छे अने परमात्मदशा ज पूर्ण सुखरूप छे–एम न माने
त्यांसुधी अज्ञान छे. स्वर्गादि गतिमां पण दुःख छे एम ज्यांसुधी न माने त्यां सुधी नरक–तिर्यंचगतिमां पण
खरेखर तेने दुःख भास्युं नथी; पण मात्र प्रतिकूळतानो भय छे अने अनुकूळतानी रुचि छे. पण पुण्यनां फळ के
पापनां फळ बंने दुःखरूप छे अने स्वभाव ज सुखरूप छे–एम जेने भासतुं नथी तेने स्वभावनी रुचि नथी पण
संयोगनी रुचि छे.
[] ्य ? द्रव् र्? : अनंतसुख छे ते द्रव्यमां शक्तिरूप त्रिकाळ छे अने
पर्यायमां पण अनंत सुख प्रगटे छे. पर्यायमां अनंत आनंद छे ते एक समयनो छे अने एवा एवा अनंतानंत
पर्यायनो आनंद शक्तिरूपे द्रव्यमां त्रिकाळ छे, ते त्रिकाळी द्रव्यनी श्रद्धा–ज्ञान–स्थिरता करे त्यारे पर्यायमां
अनंत आनंदनो अनुभव थाय छे.
[] द्ध त् ित्र द्ध , : पण पर्यायमां शुद्धता केवी रीते प्रगटे?
शुद्धनयथी बधा आत्मा त्रिकाळ शुद्ध छे; निगोदना आत्मामां पण केवळज्ञानदशा प्रगटवानी ताकात
त्रिकाळ छे. अहीं पहेलांं आत्मानो त्रिकाळशुद्ध स्वभाव बतावे छे; ते त्रिकाळ शुद्धस्वभावनी श्रद्धा करीने
ध्यानरूपी अग्निवडे ज परमात्मदशा प्रगट करी शकाय छे.
शुद्धनयथी बधा आत्मा शुद्ध छे, ‘सर्व जीव छे सिद्धसम’ ए शुद्धनयथी छे; अने ‘जेसमजे छे ते थाय’
ए पर्यायनी वात छे. बधा आत्मा शुद्धनयथी शुद्ध परमात्मा छे, पण ते परमात्मदशा प्रगटे केवी रीते? जेम
सुवर्णपाषाणमांथी सोनुं काढवानो उपाय तेने अग्निमां तपाववो ते छे, तेम आत्मामां परमात्मदशा प्रगटाववा
माटे क्यो अग्नि छे? जे परमात्मस्वभाव त्रिकाळ छे तेनुं ध्यान ते ज परमात्मदशानो उपाय छे. ए ध्यानरूपी
अग्निवडे कर्मकलंकने भस्म करीने सिद्धदशा प्रगट थाय छे. ध्यान कहेतां तेमां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र त्रणे
आवी जाय छे. पहेलेथी पूर्णदशा थतां सुधी शुद्ध आत्मानुं ध्यान ए ज उपाय छे.
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