अंशने गौण करीने त्रिकाळ शक्ति ते द्रव्य छे, ते सामान्य–स्वभाव छे, अने वर्तमान अंश ते विशेष छे–पर्याय
छे. ए बे थईने आखुं द्रव्य ते प्रमाणनो विषय छे. अने तेमांथी सामान्यस्वभाव ते द्रव्यार्थिकनयनो विषय छे,
विशेष पर्यायते पर्यायार्थिकनयनो विषय छे. तेमांथी द्रव्यार्थिकनयनी द्रष्टिमां पर्याय गौण छे एटले ए नयनी
द्रष्टिमां सिद्धदशा प्रगटी ते वात न आवे; त्रिकाळ शुद्ध ज्ञान स्वभाव छे ते द्रव्यद्रष्टिनो विषय छे, अने तेना ज
आश्रये निर्मळपर्याय प्रगटे छे. द्रव्यनो विश्वास करवाथी ज पर्यायमां निर्मळ कार्य थाय छे.
अद्वैतब्रह्म छे–एम न समजवुं. लोकमां सर्वत्र आत्मा भरेला छे अने ते एकेक आत्मा द्रव्यद्रष्टिए पूर्ण
परमात्मा छे.
प्रगट्युं (अर्थात् शुद्ध थयुं) ते तो पर्याय अपेक्षाए छे, शक्ति तो कायम छे. तेम आत्मामां परमात्मदशा
शक्तिरूपे त्रिकाळ छे. संसारदशा वखते पण परमात्म स्वभाव शक्तिरूपे तो छे ज, एनो कदी नाश थयो नथी
अने ते कदी नवो प्रगटतो नथी. पण एनी ओळखाण अने श्रद्धा करवाथी परमात्मदशा नवी प्रगटे छे, ए ज
सुख छे.
होय ते पण दुःखरूप ज छे. आखो संसार ज दुःखरूप छे अने परमात्मदशा ज पूर्ण सुखरूप छे–एम न माने
त्यांसुधी अज्ञान छे. स्वर्गादि गतिमां पण दुःख छे एम ज्यांसुधी न माने त्यां सुधी नरक–तिर्यंचगतिमां पण
खरेखर तेने दुःख भास्युं नथी; पण मात्र प्रतिकूळतानो भय छे अने अनुकूळतानी रुचि छे. पण पुण्यनां फळ के
पापनां फळ बंने दुःखरूप छे अने स्वभाव ज सुखरूप छे–एम जेने भासतुं नथी तेने स्वभावनी रुचि नथी पण
संयोगनी रुचि छे.
पर्यायनो आनंद शक्तिरूपे द्रव्यमां त्रिकाळ छे, ते त्रिकाळी द्रव्यनी श्रद्धा–ज्ञान–स्थिरता करे त्यारे पर्यायमां
अनंत आनंदनो अनुभव थाय छे.
ध्यानरूपी अग्निवडे ज परमात्मदशा प्रगट करी शकाय छे.
सुवर्णपाषाणमांथी सोनुं काढवानो उपाय तेने अग्निमां तपाववो ते छे, तेम आत्मामां परमात्मदशा प्रगटाववा
माटे क्यो अग्नि छे? जे परमात्मस्वभाव त्रिकाळ छे तेनुं ध्यान ते ज परमात्मदशानो उपाय छे. ए ध्यानरूपी
अग्निवडे कर्मकलंकने भस्म करीने सिद्धदशा प्रगट थाय छे. ध्यान कहेतां तेमां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र त्रणे
आवी जाय छे. पहेलेथी पूर्णदशा थतां सुधी शुद्ध आत्मानुं ध्यान ए ज उपाय छे.