बंधभावथी भिन्न स्वभावनो निर्णय करतां
चैतन्यने ते बंधभावनी लागणीओनो आधार
रहेतो नथी, एकला आत्मानो ज आधार रहे
छे. आवा स्वाश्रयपणानी कबुलातमां चैतन्यनुं
अनंत वीर्य आव्युं छे. पोतानी शक्तिद्वारा जेणे
बंधरहित स्वभावनो निर्णय कर्यो तेने
स्वभावनी होंश अने प्रमोद आवे के अहो!
आ चैतन्यस्वभाव पोते भवरहित छे, तेनो
आश्रय कर्यो तेथी हवे भवना अंत नजीक
आव्या अने मुक्तिदशानां नगारां वाग्यां.
पोताना निर्णयथी जे निःशंकता करे तेने
चैतन्य प्रदेशोमां उल्लास थाय अने तेने
अल्पकाळमां मुक्तदशा थाय ज.