द्रव्योथी भिन्न रहीने तेने जाणे छे, पण परद्रव्योमां कांई करती नथी, तेम ज्ञान
पण परने जाणे छे, परंतु तेमां कांई ज करतुं नथी. बंगाळ प्रांतमां अनाज
सडी गयुं अने घणा माणसो मरी गया, त्यां अमुक माणसोए ध्यान न राख्युं
अने बेदरकारी करी तेथी एवुं बन्युं–एम अज्ञानी माने छे, पण खरेखर तेम
नथी. अनाज सडयुं अने माणसो मरी गयां ते कोईनी बेदरकारीने कारणे थयुं
नथी, परंतु एके एक दाणो तेना पोताना कारणे परिणमीने सडी गयो छे अने
जे माणसो मरी गया ते तेमनुं आयुष्य पूर्ण थवाथी ज मर्या छे, तेमां कोई
फेरफार करवा समर्थ नथी. कोई पण जीव पोताना भाव सिवाय अन्यमां शुं
करी शके छे? कांई ज करी शके नहि. ‘अनाज न सडे अने माणसो न मरे’
एवो भाव मात्र जीव करी शके, परंतु ते परद्रव्योनी क्रियामां कांई पण फेरफार
करी शके नहि. हे भाई! बहारना द्रव्योनुं तो जेम थवानुं तेम ज थवानुं, तारा
ज्ञाननो स्वभाव तो जाणवानो ज छे. जुओ तो खरा, आमां ज्ञाननी केटली
शांति! ज्ञानने कोई विघ्न करनार नथी अने कोई मददगार नथी. जेणे आवो
ज्ञानस्वभाव स्वीकार्यो तेने अभिप्रायमांथी तो सर्व राग–द्वेष बंधभाव टळी
गया एटले के अभिप्रायथी तो ते मुक्त थयो; हवे ते ज अभिप्रायना जोरे
अल्पकाळे बंधभावोने सर्वथा छेदीने मुक्त थशे.