Atmadharma magazine - Ank 056
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: १३६ : आत्मधर्म जेठ : २४७४
एम सूचवे छे के तेओश्री १४मा गुणस्थानने प्राप्त थशे. ५९नो अंक अविभाज्य पण छे तेथी तेओ गुण–
गुणीनुं अविभाज्यपणुं ज्यां निरंतर वर्ते छे एवी अखंडित–अभेद मोक्षदशाने प्राप्त थशे. आ तेमना
आत्मगुणोनी अपेक्षानी वात थई.
हवे आपणा उपर तेमनो शो उपकार वर्ते छे तेनो थोडो विचार करीए:
‘दीसत जंगल मंगलकारी रे,
मनुष्यना परिताप निवारी रे.’
आ बाह्य क्षेत्र जे जंगल जेवुं हतुं त्यां जे मंगल वर्ती रह्युं छे ते तो संयोग मात्र छे तेथी तेनी वात
करवी नथी. पण आपणुं आंतरिक क्षेत्र उजड जंगलमय हतुं कारण के आपणे अगाउ मानता हता के पुण्यथी
धर्म थाय, शुभ करतां करतां शुद्धता प्रगटे, निमित्त मळतां उपादानमां विलक्षण पर्याय प्रगटे, व्यवहारथी निश्चय
पमाय, परद्रव्यना पर्यायमां आपणे निमित्तरूप तो थईए–आवी आवी अनेक मिथ्या मान्यताओथी आपणुं
अंतर उजड वेरान समान हतुं, ते मान्यताओने जडमूळथी उखेडी नाखी तेनी जग्याए शुद्धोपयोगथी ज धर्म
थाय, निश्चय एक ज धर्मनुं साधन छे, दरेक द्रव्य स्वतंत्र छे–निरपेक्ष छे वगेरे बाबतोनो निर्णय करावी आपणा
अंतर जंगलने मंगलमय बनाववामां जेओ निमित्तरूप बन्या ते परम पूज्य सद्गुरुदेवश्रीनो आपणा उपर
परम उपकार वर्ते छे.
श्रीसीमंधर भगवान महाविदेह क्षेत्रमां हाल बिराजे छे. तेमना जेवा तीर्थंकरोना दिव्यध्वनिनो आ क्षेत्रे
आपणने विरह छे पण ते विरहने पूज्य सद्गुरुदेव पोताना श्रुतज्ञानना दिव्यध्वनि द्वारा भूलावी दे छे. श्री
कुंदकुंदाचार्य देवने आपणे प्रत्यक्ष जोया नथी, मात्र तेमनी गाथाओ आपणी पासे छे; श्री अमृतचंद्राचार्यने पण
आपणे प्रत्यक्ष जोया नथी, तेमनी संस्कृत टीकाओ आपणी पासे छे; तेथी ते सर्वेनो आपणा उपर परोक्ष
उपकार छे. पण ते बधानो सुमेळ जेमां वर्ते छे एवा जीवंतमूर्ति श्री सद्गुरुदेवनो तो आपणा उपर प्रत्यक्षपणे
अनंत उपकार छे. तेथी तेओ दीर्घायु भोगवो अने आपणा जीवनपंथने उजाळ्‌या करो ए ज अभ्यर्थना.
[भाईश्री प्रेमचंद मगनलाल शेठना भाषणनो सार]
अहो! अहो! श्री सद्गुरु करुणा सिंधु अपार,
आ पामर पर प्रभु कर्यो अहो अहो उपकार.
आजे आपणा सद्गुरुदेवनी जन्मजयंतिनो महान मांगलिक दिवस छे. तेओश्रीनो जन्म आपणा सौ
मुमुक्षुओना भाग्य उदयने लईने ज थयो छे. तेओश्रीनो जन्म सं. १९४६ना वैशाख सुद २ ने रविवारे परोढिये
उमराळा गाममां थयो हतो. तेओश्रीए करेला उपकारोनुं वर्णन कोई रीते थई शके तेम नथी. अनादिकाळथी
अज्ञानअंधकारमां पडी रहेला जीवने माटे तत्त्वस्वरूप प्रगट करीने तेओश्रीए साचा सुखनो उपाय दर्शावीने
आपणने सौने दुःखमुक्त कर्या छे. जीवनुं शुं स्वरूप, पुण्य–पापनुं शुं स्वरूप, आस्रव–संवरनुं शुं स्वरूप वगेरे
बाबतो घणी घणी स्पष्ट रीते समजावीने आपणा उपर अनहद उपकार कर्यो छे.
अज्ञानी जीवो पोतानी मानेली ऊंधी द्रष्टिथी जडनी क्रियामां ज पुण्य–पाप तथा संवर–निर्जरा मानी
रह्या छे. अने पोकार करी रह्या छे के ‘आत्मा जडनी क्रिया करे छे ते प्रत्यक्ष देखाय छे. ’ पण जेम ‘आपो’ कहे
के में ‘वछेरानां इंडां’ नजरो नजर जोया–एना जेवी तेमनी वात छे. वछेरांनां इंडां जगतमां कदी होय ज नहि,
तेम जड शरीरनी क्रियामां आत्माना पुण्य–पाप के संवर–निर्जरा छे ज नहि. अज्ञानीओना ज्ञानचक्षु बिडाई
गयेलां छे. तेओ चर्मचक्षुथी जोनारा छे, तेथी आत्माने देखी शकता नथी. बिडाई गयेला ज्ञानचक्षुओनुं श्री
सद्गुरुदेव पासे ओपरेशन करावीने अंतरना ज्ञानचक्षुओ उघाडया विना एक पण वात स्पष्ट साची जाणी
शकाय तेम नथी.
पू. गुरुदेव संबंधी बोलवा माटे अंतरमां कांईक कांईक उमळका होय छे, पण बोलवा जतां अन्य ज कांई
बोलाई जवाय छे, ने उमळका अंदरने अंदर ज रही जाय छे. केमके सत्पुरुषनी गहनताना विचारो वारंवार
जुदा जुदा स्फूर्या करे छे.
गुरुदेवश्रीनो आपणा उपर अनहद उपकार छे. मारी भावना छे के ज्यां ज्यां तेओश्री होय त्यां
त्यां आपणने सौने हमेशने माटे साथे ने साथे राखे, अने आपणे तेमनी छत्रछायामां आपणुं
आत्महित पूरुं करीए.