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पूर्वाचार्योनी साख आपे छे. ए रीते गुरुदेवे शुद्धात्म–अनुभवथी, आगमथी अने अबाध्य युक्तिथी जगतमां
एक युग प्रवर्ताव्यो छे अने ते पण एक सामाजिक के राजकीय युग नहि पण भवभ्रमणने छेदनारो, परम
कल्याणकारी लोकोत्तर युग प्रवर्ताव्यो छे. श्री. हीराभाईना नाना शा मकानमां दशवीश धर्मप्रेमी जीवोथी मांडीने,
क्रमे करीने स्वाध्याय मंदिरमां सेंकडो जीवो उपर अने प्रवचनमंडपमां हजारो जीवो उपर गुरुदेवना कल्याणकारी
उपदेशनुं मोजुं पथरायुं अने आजे तो ‘आत्मधर्म’ द्वारा समस्त भारतवर्षने–आखा मुमुक्षु जगतने ए
उपदेशसागरना कल्लोलो पावन करे छे, आसपासना संयोगो जोतां एम लागे छे के जे कोई जीव आ काळे
मोक्षमार्ग समजशे ते जीव प्राय: गुरुदेवनी ज सीधी के आडकतरी असरथी समजशे. जगतमां आवा लोकोत्तर
युगना सृष्टा गुरुदेवना चरणकमळमां आजे तेमनी जन्मजयंतिनां प्रसंगे आपणा कोटि कोटि वंदन हो.
आपणामां जे कांई शुभेच्छा होय, जे कांई वैराग्य होय, जे कांई ज्ञानमूर्ति भगवाननो आदर होय, ते बधुंय
गुरुदेवने आभारी छे. आपणा शुभ भावोना, वैराग्य जीवनना, मंथनजीवनना, श्रद्धाजीवनना–बधायना
गुरुदेव ज स्वामी अने निर्माता छे. हंमेशा प्रवचनो द्वारा अने तेमना जीवननी छाप द्वारा तेओ आपणुं जीवन
घडी रह्या छे. ज्यां आपणने आत्मानी शंका थाय त्यां ‘अरे भाई! ए शंकानो करनार तुं छो कोण ए तो जो!’
एम कहीने आपणुं श्रद्धाजीवन गुरुदेव टकावे छे. ‘शरीरने हुं हलावुं छुं’ एम थई जाय त्यां ‘अरे भाई! नेत्र
जेवुं ज्ञान पर पदार्थने हलावी शके छे एवो भ्रम तने क्यांथी पेठो?’ एम कहीने फरी श्रद्धामां स्थापित करे छे.
आ रीते गुरुदेव आपणा समग्र जीवनना घडवैया छे.
आगळ ए दीवाओ अत्यंत झांखा लागे छे; जे गुरुदेव हंमेशा आपणने आत्मिक सुधारसमां तरबोळ करी रह्या
छे तेमने क्षीरसागरना नीरथी अभिषेक करीए तो पण ए अभिषेक ए उपकारसागर आगळ एक बिंदुमात्र
जेटलो पण लागतो नथी; अने जे गुरुदेव मुक्तिफळदायक मोक्षमार्ग दर्शावी रह्या छे, तेमनुं कल्पवृक्षनां फळथी
पूजन करीए तो पण ए उपकारमेरू आगळ तुच्छ लागे छे, आ रीते दैवी सामग्रीथी पूजन करतां पण भावना
तृप्त थाय एम नथी. परमोपकारी गुरुदेव प्रत्येनी भक्तिभावना त्यारे तृप्त थशे के ज्यारे आत्मिक सामग्रीथी
गुरुदेवनुं पूजन करीए–ज्यारे आत्माना असंख्य प्रदेशे केवळज्ञानना दीवडा प्रगटावी गुरुदेवनी आरती
उतारीए, आत्माना प्रदेशे प्रदेशे सुखसिंधु उछाळी गुरुदेवनो अभिषेक करीए, आत्माना सर्व प्रदेशोने सर्वथा
मुक्त करीने ए मुक्तिफळथी गुरुदेवनुं पूजन करीए. आवुं पूजन करवानुं सामर्थ्य आपणने प्राप्त थाय त्यां
सुधी गुरुदेव आपणुं कांडुं न छोडे अने सदा सर्वदा एमना पडखे ज राखे एवी गुरुदेव पासे आपणी नम्र अने
दीन याचना छे.
साध्यदशाने प्राप्त थशे ए प ना अंकथी सूचित थाय छे. ९ नो अंक अभेदअखंड छे. क्षायिकभाव पण ९ छे,
तेथी तेओ क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक चारित्र, क्षायिक ज्ञान, क्षायिक दर्शन, क्षायिक दान–लाभ–वीर्य–भोग–
उपभोगनी प्राप्ति करशे एम ९ना अंकथी सूचित थाय छे वळी प अने ९नो सरवाळो करतां १४ थाय छे ते