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पोताना स्पर्शमात्रथी धन्य बनावनार सम्यग्द्रष्टि महापुरुषनी जन्मजयंति उजववानो आजनो प्रसंग आपणा
माटे अति आनंदोल्लासनो प्रसंग छे. गुरुदेवनुं आंतरिक जीवन भेदज्ञानमय परम पवित्र होवा उपरांत
बाह्यमां पण तेमने आश्चर्यकारक परमोपकारी प्रभावनायोग वर्ते छे जेने लीधे भारतवर्षमां एक आध्यात्मिक
युग प्रवर्त्यो छे. ‘समयसारप्रवचनो’नी प्रस्तावनामां पोताने माटे ‘युगप्रधान’ शब्द लखायेलो वांचीने गुरुदेवे
निर्मानताने लीधे कह्युं हतुं के ‘मारे माटे बहु मोटो शब्द लखी नाख्यो छे. ’ परंतु आजथी एकाद अठवाडिया
पहेलांं ज पंडित लालनजीए कांईक वातथी उल्लास आवी जतां कह्युं के ‘गुरुदेव, आप युगप्रधान नथी पण
युगस्रष्टा छो. ’ आ रीते पं. लालनजीने गुरुदेवने माटे ‘युगप्रधान’ शब्द मोटो नहि पण नानो लागे छे;
‘युगस्रष्टा’ शब्द योग्य लागे छे. खरेखर गुरुदेवे आ काळमां ज्ञानमूर्ति आत्मानो, सम्यग्दर्शनना महिमानो
निश्चयनयनी मुख्यतानो, द्रव्यना संपूर्ण स्वातंत्र्यनो, उपादान–निमित्तना यथार्थ तत्त्वज्ञाननो, आध्यात्मिक
वस्तुविज्ञाननो अने समयसारनो युग सर्ज्यो छे.
वस्त्र तडके सूकववाथी पाणी झरी जाय छे तेम शरीर तडके तपाववा वगेरेनी कष्टक्रियाथी कर्मो निर्जरी जशे–
आवी आवी तत्त्वज्ञानशून्य मान्यताओ प्रवर्तती. अबाधित सुविज्ञानसिद्धांतोनी कसोटीमांथी पार उतरी शके
एवो वीतरागप्रणीत सद्धर्म वैज्ञानिक भूमिका उपरथी सरी पडीने रूढिचूस्त सांप्रदायिकतामां अने क्रियाकांडमां
अटवाई गयो हतो. ‘वीतरागे आम कह्युं छे माटे ते खरुं हशे, आपणे अल्पज्ञ शुं जाणीए? ’ एवी ढीली वातो
करनारा लोको ज चारे तरफ देखाता. पण ‘मेरो धनी नहि दूर दिसंतर, मोहिमें है मोहि सूझत नीके’ एवो
अनुभव करीने ‘हुं ज्ञानमूर्ति भगवान छुं’ एम छाती ठोकीने कहेनार कोई देखातुं नहोतुं. एवा समयमां
गुरुदेवे समयसार द्वारा परम चमत्कारिक आत्मपदार्थने अनुभव्यो अने अनुभवजनित श्रद्धाना वज्र–खडक
उपर ऊभा रहीने जगतने घोषणा करी के ‘अहो जीवो! परभावोथी अने विकारथी भिन्न ज्ञानमूर्ति
आत्मपदार्थना अनुभवथी कहीए छीए के अमे जे मार्गे चालीए छीए अने जे मार्ग दर्शावीए छीए ते मार्गे
चाल्या आवो अने जो मोक्ष न मळे तो ए दोष अमे अमारा शिर पर लईए छीए. आत्मामां भव छे ज नहि
एवो अनुभव कर्या विना ज्ञान केवुं? दर्शन केवुं? अने ए शुद्धात्मभूमिका प्राप्त कर्या विना तमे चारित्रनां
चित्रामण शेना पर करशो? आ जे अमे कहीए छीए ते वात त्रण काळमां त्रण लोकमां फरे एम नथी. सर्व
तीर्थंकरोए ए ज वात करी छे अने सर्व अनुभवी पुरुषो त्रण काळे ए ज वात कहेवाना छे. ’ अनुभवनी वज्र
भूमि उपर ऊभा रहीने अत्यंत अत्यंत निःशंकपणे तेम ज कोई दिवस लेश पण कंटाळा विना, सदा आनंद–
सागरने उछाळता, अत्यंत प्रमोदपूर्वक चैतन्य भगवाननां गाणां गाताअध्यात्म–उपदेश वरसावता गुरुदेव आ
काळे एक अजोड लोकोत्तर व्यक्ति छे. जगतने बाह्य पदार्थो ज देखाय छे पण ते बधानो देखनार महा पदार्थ
देखातो नथी. एवा जगतने गुरुदेव पडकार करे छे के ‘अहो जीवो! जे बधाना उपर तरतो ने तरतो रहे छे
एवो आ प्रत्यक्ष अनुभवगम्य प्रधान पदार्थ जेनी आगळ बीजुं बधुं शून्य जेवुं छे ते ज तमने केम देखातो
नथी? आत्मा ज एक परम अलौकिक सर्वोत्कृष्ट महिमावंत पदार्थ छे जेना विना जगतमां सर्वत्र अंधकार
छे........... आ बधुं अमे आगमाधारे कहीए छीए एम नहि पण प्रत्यक्ष अनुभवथी कहीए छीए. एम छतां
ते अनुभव आगमथी सर्वथा अविरुद्ध छे. ’ वस्तु–विज्ञान समजाववानी गुरुदेवनी शैली पण अनोखी छे.
‘सत्नो कदी नाश न थाय, शून्यमांथी सत् कदी उत्पन्न न थाय, कारण–कार्य भिन्न भिन्न पदार्थोमां न होय’
ईत्यादि परम वैज्ञानिक सत्योने गुरुदेव अत्यंत