Atmadharma magazine - Ank 057
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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। धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे ।
वर्ष पांचमुं : संपादक : अषाढ
रामजी माणेकचंद दोशी
अंक नवमो वकील २४७४
श्री वीतरागनी आज्ञा
[सं: २४७२ चैत्र वद २ ना दिवसे श्रीपरमात्मप्रकाश
अ. २ गा. १४२–१४३ उपरना व्याख्याननो टूंक सार]
हे मुनि! आत्मा कल्याण स्वरूप छे एमां तुं
तारा मनने जोड, तेने छोडीने बहार न जा. आत्मानी
पर्यायमां जेटला शुभाशुभ भाव थाय ते बधा उपद्रव
छे. स्वभाव तो त्रिकाळ अबंध ज छे. स्वभाव कदी
बंधाय नहि. आत्मा तो आनंदकंद कल्याण स्वरूप छे
तेथी तेमां एकाग्रता छोडीने बहार क्यांय न जा. हे
तपोधन! आत्मामां जेटला दया, दान, भक्ति, पूजा के
हिंसा, चोरी, जुठ आदिना भाव थाय तेने तुं दुःख देख.
जे प्राणी ज्ञानानंद चैतन्यमां लीन थता नथी ते मोटा
राजा के देव होय तो पण दुःखी छे. जेओ विषयोमां सुख
माने छे तेओ तो अग्निना हिंडोळे हींचके छे, तेमने
आत्मानी शांति नथी. शुं दुःखनुं लक्षण बहारमां राडो
पाडे ते हशे? दुःखनुं लक्षण पोताने भूलीने परमां
भटकवुं ते छे. मोटा देवो अने राजाओने पण
आत्मभान विना प्रत्यक्ष दुःखी जाण.
[अनुसंधान टाईटल पान त्रीजाथी चालु]
वार्षिक लवाजम छुटक अंक
त्रण रूपिया चार आना
• आत्मधर्म कार्यालय – मोटा आंकडिया – काठियावाड •