Atmadharma magazine - Ank 057
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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(आर्या)
दस लक्षणी पर्व

वीर संवत २४७३ ना भादरवा सुद पांचमथी चौदश सुधीना ‘दस लक्षणी पर्व’ना दिवसो दरमियान श्री
पद्मनंदी पचीसीमांथी उत्तमक्षमा वगेरे दस धर्मो उपर पू. सद्गुरुदेवश्रीए करेला व्याख्यानोनो सार. उत्तमक्षमा,
मार्दव अने आर्जीव एम त्रण धर्मो अगाउना पप मा अंकमां आवी गया छे.
४ उत्तम सत्य धम (भदरव सद : ८)
आजे दस लक्षणीपर्वनो चोथो दिवस छे. उत्तमक्षमा, मार्दव अने आर्जव ए त्रण धर्मोनुं स्वरूप कहेवाई
गयुं छे. आजे उत्तम सत्यधर्मनो दिवस छे. आ उत्तमक्षमादि धर्मोनुं आराधन सम्यग्दर्शनपूर्वक ज थई शके छे.
आ भादरवा सुद प थी १४ सुधीना दिवसोने दस लक्षणीपर्व कहेवाय छे ने ते ज पर्युषण पर्व छे.
निर्ग्रंथ संत मुनिवरोने सम्यग्दर्शन–ज्ञानपूर्वक उत्तमसत्यधर्म केवो होय तेनुं वर्णन श्रीपद्मनंदी
आचार्यदेव करे छे–
स्वपरहितमेव मुनिभिर्मितममृतसमं सदैव सत्यं च।
वक्तव्यं वचनमथ प्रविधेयं धीधनैर्मौनम् ।।
९१।।
उत्कृष्ट ज्ञानने धारण करनारा मुनिवरोए, प्रथम तो मौन ज रहेवुं जोईए. एटले के परम सत्य
आत्मस्वभावनी एकाग्रतामां रहीने बोलवानो विकल्प ज न थवा देवो जोईए. अने जो विकल्प ऊठे तो एवा
वचन बोलवा जोईए के जे सदाय स्व–परने हितकारी होय, अमृत समान मिष्ट होय अने सत्य होय.
सम्यग्ज्ञान ते ज उत्कृष्ट ज्ञान छे. एवा सम्यग्ज्ञानना धारक मुनिओने ज उत्तमसत्य होय छे. उत्तमसत्य
ते सम्यक्चारित्रनो एक प्रकार छे. जेने सम्यग्ज्ञान न होय अने आत्मा परनुं करे, पुण्यथी धर्म थाय, ईश्वर
जगतना कर्ता छे. एम मानतो होय ते जीव लौकिकमां सत्य बोलतो होय तोपण तेने उत्तम सत्यधर्म होतो
नथी. अहीं तो सम्यग्दर्शन पछी मुनिदशानी मुख्यपणे वात छे. उत्तम सम्यग्ज्ञानने धरनारा मुनिवरोए प्रथम
तो मौन ज रहेवुं श्रेष्ठ छे, एटले के चैतन्यस्वरूपमां वीतरागी स्थिरता प्रगट करीने वाणी तरफनो विकल्प ज
थवा देवो नहि. आवो वीतरागीभाव ते ज परमार्थे उत्तम सत्य धर्म छे. अने अस्थिरताने लीधे ज्यारे विकल्प
ऊठे त्यारे पोताने अने परने हितकारी एवा सत्य तथा प्रिय वचनो बोलवानो शुभराग ते व्यवहारे उत्तम
सत्य धर्म छे. तेमां जे राग छे ते धर्म नथी पण ते वखते जेटलो वीतरागभाव छे तेटलो धर्म छे. वाणी बोलाय
के न बोलाय ते तो जड परमाणुओनी स्वतंत्र अवस्था छे, आत्मा तेनो कर्ता नथी. वाणीनो कर्ता आत्मा छे–
एम जे माने ते अज्ञानी छे, तेने सत्यधर्म होय नहि.
प्रश्न:– जो वाणीनो कर्ता आत्मा नथी तो ‘मुनिओए सत्य वचनो बोलवां’ एम अहीं आचार्यदेवे शा
माटे कह्युं?
उत्तर:– सम्यग्ज्ञान पूर्वक सत्य बोलवानो भाव होय त्यारे, जो वाणी नीकळे तो ते वाणी सत्य ज होय–
एवो मेळ बताववा माटे निमित्तथी कहेवाय के ‘मुनिओए सत्य बोलवुं; तेमां एवो आशय छे के, मुनिवरोए
आत्मस्वरूपमां स्थिर रहीने वाणी तरफनो विकल्प ज थवा न देवो, अने जो विकल्प थाय तो असत्य वचन
तरफनो अशुभराग तो न ज थवा देवो. परंतु ‘आत्मा जड वाणीनो कर्ता छे’ एम कहेवानो आशय नथी.
वाणी बोलाय के न बोलाय तेनो कर्ता जीव नथी. ज्ञानी पोताने वाणीनो कर्ता मानता नथी अने सत्य
बोलवानो विकल्प थाय तेना पण स्वामी ज्ञानी थता नथी; तेओ वाणी अने विकल्प रहित चिदानंदस्वभावने
ज पोतानुं स्वरूप मानीने आदरे छे. तेथी श्रद्धा अने ज्ञान अपेक्षाए तो चोथा गुणस्थाने धर्मात्माने पण उत्तम
सत्य वगेरे धर्म होय छे. वस्तुस्वरूप जेवुं छे तेवुं सत्य जाणवुं ते धर्म छे. जेवुं छे तेवुं सत्य वस्तु जाण्या वगर
सत्यधर्म होई शके नहि. सम्यग्ज्ञानथी वाणी–विकल्पो रहित आत्मस्वरूपने जाण्या पछी ते स्वरूपमां स्थिरता
करवी तेमां उत्तम क्षमादि दशे धर्मो आवी जाय छे. अने सत्य बोलवानो–उपदेशादिनो–विकल्प ऊठे ते व्यवहारे
उत्तम सत्य छे. सत्य बोलवाना विकल्पने के वाणीने ज्ञानी पोतानुं स्वरूप मानता नथी. हुं