वीर संवत २४७३ ना भादरवा सुद पांचमथी चौदश सुधीना ‘दस लक्षणी पर्व’ना दिवसो दरमियान श्री
मार्दव अने आर्जीव एम त्रण धर्मो अगाउना पप मा अंकमां आवी गया छे.
आ भादरवा सुद प थी १४ सुधीना दिवसोने दस लक्षणीपर्व कहेवाय छे ने ते ज पर्युषण पर्व छे.
वक्तव्यं वचनमथ प्रविधेयं धीधनैर्मौनम् ।।
वचन बोलवा जोईए के जे सदाय स्व–परने हितकारी होय, अमृत समान मिष्ट होय अने सत्य होय.
जगतना कर्ता छे. एम मानतो होय ते जीव लौकिकमां सत्य बोलतो होय तोपण तेने उत्तम सत्यधर्म होतो
नथी. अहीं तो सम्यग्दर्शन पछी मुनिदशानी मुख्यपणे वात छे. उत्तम सम्यग्ज्ञानने धरनारा मुनिवरोए प्रथम
तो मौन ज रहेवुं श्रेष्ठ छे, एटले के चैतन्यस्वरूपमां वीतरागी स्थिरता प्रगट करीने वाणी तरफनो विकल्प ज
थवा देवो नहि. आवो वीतरागीभाव ते ज परमार्थे उत्तम सत्य धर्म छे. अने अस्थिरताने लीधे ज्यारे विकल्प
ऊठे त्यारे पोताने अने परने हितकारी एवा सत्य तथा प्रिय वचनो बोलवानो शुभराग ते व्यवहारे उत्तम
सत्य धर्म छे. तेमां जे राग छे ते धर्म नथी पण ते वखते जेटलो वीतरागभाव छे तेटलो धर्म छे. वाणी बोलाय
के न बोलाय ते तो जड परमाणुओनी स्वतंत्र अवस्था छे, आत्मा तेनो कर्ता नथी. वाणीनो कर्ता आत्मा छे–
एम जे माने ते अज्ञानी छे, तेने सत्यधर्म होय नहि.
आत्मस्वरूपमां स्थिर रहीने वाणी तरफनो विकल्प ज थवा न देवो, अने जो विकल्प थाय तो असत्य वचन
तरफनो अशुभराग तो न ज थवा देवो. परंतु ‘आत्मा जड वाणीनो कर्ता छे’ एम कहेवानो आशय नथी.
ज पोतानुं स्वरूप मानीने आदरे छे. तेथी श्रद्धा अने ज्ञान अपेक्षाए तो चोथा गुणस्थाने धर्मात्माने पण उत्तम
सत्य वगेरे धर्म होय छे. वस्तुस्वरूप जेवुं छे तेवुं सत्य जाणवुं ते धर्म छे. जेवुं छे तेवुं सत्य वस्तु जाण्या वगर
सत्यधर्म होई शके नहि. सम्यग्ज्ञानथी वाणी–विकल्पो रहित आत्मस्वरूपने जाण्या पछी ते स्वरूपमां स्थिरता
करवी तेमां उत्तम क्षमादि दशे धर्मो आवी जाय छे. अने सत्य बोलवानो–उपदेशादिनो–विकल्प ऊठे ते व्यवहारे
उत्तम सत्य छे. सत्य बोलवाना विकल्पने के वाणीने ज्ञानी पोतानुं स्वरूप मानता नथी. हुं