Atmadharma magazine - Ank 058
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष पांचमुं : संपादक : श्रावण
रामजी माणेकचंद दोशी
अंक दसमो वकील २४७४
ह भव्य! छ महन अभ्यस कर
मालिनी
विरम किमपरेणा कार्यकोलाहलेन
स्वयमपि निभृतः स्रन् पश्य षण्मासमेकम्।
हृदयसरसि पुं सः पुद्गलाद्भिन्नधाम्नो
ननु किननुपलब्धिर्भाति किंचोपलब्धि।।
३४।।
अर्थ:– हे भव्य! तने नकामो कोलाहल करवाथी शुं लाभ छे?
ए कोलाहलथी तुं विरक्त था अने एक चैतन्यमात्र वस्तुने पोते
निश्चळ लीन थई देख; एवो छ महिना अभ्यास कर अने जो
(तपास) के एम करवाथी पोताना हृदयसरोवरमां, जेनुं तेज,
प्रताप, प्रकाश पुद्गलथी भिन्न छे एवा आत्मानी प्राप्ति नथी थती के
थाय छे.
भावार्थ:– जो पोताना स्वरूपनो अभ्यास करे तो तेनी प्राप्ति
अवश्य थाय; जो पर वस्तु होय तो तेनी तो प्राप्ति न थाय. पोतानुं
स्वरूप तो मोजूद छे, पण भूली रह्यो छे; जो चेतीने देखे तो पासे ज
छे. अहीं छ महिनानो अभ्यास कह्यो तेथी एम न समजवुं के
एटलो ज वखत लागे. तेनुं थवुं तो मुहूर्तमात्रमां ज छे, परंतु
शिष्यने बहु कठिन लागतुं होय तो तेनो निषेध कर्यो छे. जो
समजवामां बहु काळ लागे तो छ महिनाथी अधिक नहि लागे;
तेथी अन्य निष्प्रयोजन कोलाहल छोडी आमां लागवाथी जलदी
स्वरूपनी प्राप्ति थशे एवो उपदेश छे.
[श्री समयसारजी पृ. ७६]
वार्षिक लवाजम छुटक अंक
त्रण रूपिया चार आना
• आत्मधर्म कार्यालय – मोटा आंकडिया – काठियावाड •