स्वयमपि निभृतः स्रन् पश्य षण्मासमेकम्।
हृदयसरसि पुं सः पुद्गलाद्भिन्नधाम्नो
ननु किननुपलब्धिर्भाति किंचोपलब्धि।।
निश्चळ लीन थई देख; एवो छ महिना अभ्यास कर अने जो
(तपास) के एम करवाथी पोताना हृदयसरोवरमां, जेनुं तेज,
प्रताप, प्रकाश पुद्गलथी भिन्न छे एवा आत्मानी प्राप्ति नथी थती के
थाय छे.
स्वरूप तो मोजूद छे, पण भूली रह्यो छे; जो चेतीने देखे तो पासे ज
छे. अहीं छ महिनानो अभ्यास कह्यो तेथी एम न समजवुं के
एटलो ज वखत लागे. तेनुं थवुं तो मुहूर्तमात्रमां ज छे, परंतु
शिष्यने बहु कठिन लागतुं होय तो तेनो निषेध कर्यो छे. जो
समजवामां बहु काळ लागे तो छ महिनाथी अधिक नहि लागे;
तेथी अन्य निष्प्रयोजन कोलाहल छोडी आमां लागवाथी जलदी
स्वरूपनी प्राप्ति थशे एवो उपदेश छे.