Atmadharma magazine - Ank 059
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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। धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे ।
वर्ष पांचमुं : संपादक : भादरवो
रामजी माणेकचंद दोशी
अंक अगीयार वकील २४७४
श्री गुरुनुं स्वरूप
जे मोटा होय तेने गुरु कहेवाय छे; जीवोने अहितथी
बचावीने हितमां प्रवर्ताववाना कारणरूप जे होय तेने मोटा
कहेवाय छे, ने ते ज गुरु छे. ते गुरु बे प्रकारना छे: एक धर्मगुरु
अने बीजा उपकारी गुरु.
जेओ अठ्ठावीस मूळगुण सहित होय, बाह्य–अभ्यंतर
परिग्रहना त्यागी होय, नग्नमूद्राना धारक होय, शुद्धरत्नत्रयरूप
जेमनी प्रवृत्ति होय, परम दश लाक्षणिक धर्मरूप जेनी मूर्ति होय,
बाह्य–अभ्यंतर बार प्रकारना तपमां आरूढ होय, अने परम
दिगंबर होय तेमने धर्मगुरु जाणवा.
उपकारी गुरु बे प्रकारना छे: एक धर्म–उपकारी गुरु अने
बीजा लौकिक उपकारी गुरु. तेमां धर्म–उपकारी गुरु त्रण
प्रकारना छे: एक दीक्षागुरु, बीजा शिक्षागुरु अने त्रीजा
विद्यागुरु. अणुव्रत तथा महाव्रतनुं आचरण करावनार ग्रहण
करावनार एवा जे चतुर्विध संघमां महान मुनिराज ते दीक्षागुरु
छे. श्री जिनेंद्र प्रणीत मार्गनो उपदेश देनारा ते शिक्षागुरु छे.
अने श्री जिन प्रणीत शास्त्रने भणावनारा ते विद्यागुरु छे.
(श्री दीपचंदजी पंडित विरचित ‘भाव दीपिका’ पृ. ३०)
वार्षिक लवाजम छुटक अंक
त्रण रूपिया चार आना
• आत्मधर्म कार्यालय – मोटा आंकडिया – काठियावाड •