Atmadharma magazine - Ank 059
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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• जेठ मासना प्रश्नोना जवाब •
[बाल – विभाग]
(१) “आत्मा अरूपी वस्तु छे तेथी पोते पोताने जाणी शके नहि” ए वात खोटी छे. आत्मा अरूपी
वस्तु होवाथी ते ईन्द्रियोथी जणातो नथी. परंतु आत्मामां ‘प्रमेयत्व’ गुण छे एटले आत्मानो एवो स्वभाव
छे के, साचा ज्ञानमां ते जणाय छे. वळी आत्मामां ज्ञान गुण छे; ते ज्ञाननो स्वभाव एवो छे के ते रूपी तेम ज
अरूपी वस्तुओने पण जाणे छे. तेथी आत्मा पोताना ज्ञानथी पोताने जाणी शके छे. ‘आत्मा अरूपी छे माटे
तेने जाणी शकाय नहि’ एम जेओ माने छे तेओ अज्ञानी छे, केम के तेओ आत्माना ज्ञान–गुणने तेम ज
प्रमेयत्व गुणने मानता नथी.
(२) खाली जग्या पूरेला वाक्यो–
१. अरूपी वस्तुओ पण ज्ञानमां जणाय छे, केमके तेमनामां प्रमेयत्व गुण छे.
२. आत्माने कोईए बनाव्यो नथी अने तेनो कदी नाश थतो नथी, केमके तेनामां अस्तित्व गुण छे.
३. आत्मानी अज्ञानदशा टाळीने ज्ञानदशा प्रगट करी शकाय छे, केमके तेनामां द्रव्यत्व गुण छे.
४. आत्मा बधा पदार्थोने जाणी शके छे, केम के आत्मामां ज्ञान गुण छे.
५. शरीरमां सुख–दुःख थतां नथी, केमके ते अजीव छे.
(३) ‘गुण’ जीव अने अजीव बंनेमां होय छे, केमके गुणोनो पिंड ते द्रव्य छे. अस्तित्व जीव अने
अजीव बंनेमां होय छे, केमके ते सामान्यगुण छे.
(४) मुनिश्री कुंदकुंद–आचार्य, मुनिश्री धरसेन–आचार्य, मुनिश्री पुष्पदंत–आचार्य, मुनिश्री भूतबली–
आचार्य अने मुनिश्री अमृतचंद्र–आचार्य–ए पांचे मुनिवरो श्रीमहावीर भगवान पछी थई गयेला छे.
आ वखते ६० बाळकोना जवाब आवेला, तेमांथी नीचेना १४ बाळकोना जवाब संपूर्ण साचा हतां:–
(१–४) वींछीया: चंद्रकान्त, रसिकलाल, स्नेहलता, इंदुमती. (प) भानुमती–वढवाण सीटी (६) शांतिलाल:
वांकानेर (७) हरिहरःअमदावाद (८) जगदीशचंद्र: मुंबई (९) राजेन्द्रःसावरकुंडला (१०) कौशल्या: महेसाणा
(११–१२) चंद्रप्रभा, सुशिला. सोनगढ (१३) अमरेलीना एक बाळक: (तेणे पोतानुं नाम तथा सरनामुं
मोकलवुं.) (१४) ललितकुमार: सावरकुंडला.
– नवा प्रश्नो –
(१) शुं करवाथी धर्म थाय?
(२)
–जे गुण जीवमां ज होय ने अजीवमां न होय तेने शोधी काढो.
–जे गुण अजीव–पुद्गलमां ज होय ने जीवमां न होय तेने शोधी काढो.
–जे गुण जीवमां पण होय ने अजीवमां पण होय तेने शोधी काढो.
(३) नीचेना लखाणमां जो भूल होय तो सुधारो:–
. ज्यारे शरीरमां जीव रहेलो हीटोय त्यारे शरीर जाणे छे, अने जीव शरीरमांथी नीकळी जाय त्यारे
शरीर जाणतुं नथी.
. आत्मा कदी जड थतो नथी पण सदाय आत्मा ज रहे छे, अने जड वस्तु कदी आत्मा थती नथी पण
सदाय जडरूपे ज रहे छे. केम के बंनेमां द्रव्यत्वगुण छे.
जवाबो जेम बने तेम वहेलासर नीचेना सरनामे मोकलवा:
“आत्मधर्म–बालविभाग:” सोनगढ.
आत्मधर्म अंक ५८ मां सुधारो
पृ. १७१ कोलम २ लाईन १८: ‘परिणाम–परिणाम’ ने बदले ‘परिणामी–परिणाम’ एम सुधारवुं.
पृ. १७३ कोलम २ लाईन ३६–३७: ‘स्वभावनो नाश थया पछी’ ने बदले ‘स्वभावनी अभेदताना
आश्रये मिथ्यात्वनो नाश थया पछी’ एम सुधारवुं.
पृ. १७४ कोलम १ लाईन २४: “एवी ऊंधी प्रतीति” ने बदले “मिथ्यात्व अने रागादि मारा स्वरूपमां
छे एवी ऊंधी प्रतीति” एम सुधारवुं.
पृ. १८१ कोलम १ लाईन १९: ‘सर्वत्रतनुं प्रयोजन’ ने बदले ‘सर्वश्रुतनुं प्रयोजन’ एम सुधारवुं.
पृ. १८१ कोलम १ लाईन २३: “व्याख्याननुं घोलन” ने बदले “व्याख्यान करतां–एटले के आत्माना
स्वभावमां विपरीतता न थाय एवी रीते सम्यग्ज्ञाननुं घोलन करतां” एम सुधारवुं.