Atmadharma magazine - Ank 059
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४७४ : आत्मधर्म : १८७ :
तीर्थंकरोना पंथे लेखांक पांचमो
श्री तीर्थंकर भगवंतोए कर्मक्षय कई रीते कर्यो अने जगतना जीवोने शुं करवानो उपदेश आप्यो ते वात
श्री प्रवचनसारनी ८०–८१–८२ मी गाथामां भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे जणावी छे. अने ते गाथा उपर पू.
गुरुदेवश्रीए करेला आ विस्तृत प्रवचनो तीर्थंकरना मार्गनुं स्वरूप स्पष्टपणे दर्शावे छे.
तीर्थंकरोनो पंथ स्वाश्रयनो छे. तीर्थंकरोना उपदेशमां संपूर्ण स्वाश्रयनो ज आदेश छे. मोक्षमार्गमां
अंशमात्र पराश्रयभाव तीर्थंकरोए उपदेश्यो नथी. जे जीव स्वाश्रय नथी करतो ते जीव तीर्थंकरोना उपदेशना
आशयने समज्यो नथी. करणानुयोग हो के कथानुयोग हो, चरणानुयोग हो के द्रव्यानुयोग हो, पण तीर्थंकरोए
तो सर्वत्र स्वाश्रयभावने ज मोक्षमार्गपणे उपदेश्यो छे. तीर्थंकरोए स्वाश्रय करीने मुक्ति प्राप्त करी छे अने
स्वाश्रयने ज मोक्षमार्ग तरीके दिव्यध्वनिमां कह्यो छे; तेथी जे जीव स्वाध्यनी श्रद्धा–ज्ञान करे छे ते ज जीव
तीर्थंकरोना पंथे छे. जे जीव स्वाश्रयनी श्रद्धा–ज्ञान नथी करतो ने निमित्त–व्यवहार–कर्म–पुण्य वगेरेना लक्षे
पराश्रयथी अंश मात्र धर्म मनावे छे ते जीव तीर्थंकरोना पंथनो नथी.
आवो श्री तीर्थंकरोनो पंथ ज्ञानीओ बतावे छे अने जगतना जीवोने हाकल करे छे के: हे जगतना जीवो!
मोक्षनो मार्ग आत्माश्रित छे. तमे पराश्रयने छोडीने आ स्वाश्रितमार्गमां निःशंकपणे चाल्या आवो. आ मार्गे
ज तमारी मुक्ति थशे, बीजो कोई मुक्तिनो मार्ग नथी. श्री तीर्थंकरदेवोए आ ज मार्गे मुक्ति प्राप्त करी छे अने
आ ज मार्ग जगतने उपदेश्यो छे.
“भगवाने पर जीवोने बचाव्या ने भगवाने पर जीवोनी सेवा करवानो उपदेश कर्यो, भगवाने
स्याद्वादथी बधा धर्मोनो समन्वय कर्यो, भगवाने ‘जीवो अने जीववा दो’ एम कह्युं, भगवाने पर जीवोनी
हिंसा अटकावी, भगवाने व्यवहार करतां करतां धर्म थाय एम कह्युं” –ईत्यादि अनेक प्रकारे पराश्रयपणामां धर्म
मनाई रह्यो छे अने ए रीते भगवानना नामे अत्यारे मिथ्या मान्यताओनो जोरशोरथी प्रचार थई रह्यो छे.
सर्वे तीर्थंकरोए शुं कर्युं हतुं अने शुं कह्युं हतुं ते आ प्रवचनमां श्रीमद् भगवत् कुंदकुंददेवना कथन
अनुसार बताववामां आव्युं छे. तीर्थंकरोना साचा पंथने बतावतुं आ व्याख्यान जैनसमाजना सर्वे आत्मार्थी
जीवो बराबर वांचे, विचारे, मंथन करे... अने तीर्थंकरदेवोना पवित्र पंथने बराबर जाणीने, ऊंधा मार्गेथी
पाछा तीर्थंकरोना पंथे विचरे–तीर्थंकर देवना साचा अनुयायी बने, ए भावना छे.
(आ पहेलांं, ८०–८१ मी गाथा उपरना प्रवचनोना चार लेखो आत्मधर्म अंक २९, ३०, ३१ अने
५८मां छपाई गया छे; त्यांथी जोई लेवा.) संपादक
तीर्थंकरोए शुं कर्यु अने शुं कह्युं?
श्री प्रवचनसारनी ८०–८१मी गाथामां मोहनो सर्वथा नाश करीने संपूर्ण शुद्ध आत्मानी प्राप्ति माटेनो
उपाय आचार्यदेवे वर्णव्यो. हवे ८२मी गाथामां, बधाय तीर्थंकरोने साक्षीपणे उतारतां आचार्यदेव कहे छे के जे
उपाय अहीं वर्णव्यो ते ज उपाय बधाय तीर्थंकरोए पोते कर्यो अने तेओए जगतना भव्यजीवोने एवो ज
उपदेश कर्यो. तेओने नमस्कार हो.
आ गाथा घणी ऊंची छे. पुरुषार्थनी उग्रतानी आमां वात छे. हवे, आ ज एक (पूर्वोक्त गाथाओमां
वर्णव्यो ते ज एक), भगवंतोए पोते अनुभवीने दर्शावेलो निःश्रेयसनो (मोक्षनो) पारमार्थिक पथ छे–एम
मतिने व्यवस्थित करे छे:–
सव्वे वि य अरहंता तेण विधाणेण खविदकम्मंसा ।
किच्चा तधोवदेसं णिव्वादा ते णमो तेसिं ।।
८२।।
अर्हंत सौ कर्मो तणो करी नाश ए ज विधि वडे,
उपदेश पण एम ज करी, निर्वृत थया; नमुं तेमने. ८२
अर्थ:– बधाय अर्हंतभगवंतो ते ज विधिथी कर्मांशोनो (ज्ञानावरणीयादि कर्मभेदोनो) क्षय करीने तथा
(अन्यने पण) ए ज प्रकारे उपदेश करीने मोक्ष पाम्या छे. तेमने नमस्कार हो.
आ ८०, ८१ अने ८२ ए त्रण गाथाओमां अनंत तीर्थंकरोना दिव्यध्वनिनो, अनंत संत–मुनिओनो
अने सर्वे परमागम शास्त्रोनो आशय आवी जाय छे.
जे स्वाश्रय स्वभावनी प्रतीति करे तेने पराश्रित भावोनी प्रतीति टळीने क्षायक सम्यग्दर्शन थाय. आवो