Atmadharma magazine - Ank 059
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: १८८ : आत्मधर्म : भादरवो : २४७४ :
स्वभाव जेणे श्रद्धाज्ञानमां लीधो छे ते जीव सर्वे तीर्थंकरोना उपदेशना रहस्यने समजी गयो छे, ते जीव पोते
तीर्थंकरोना पंथनो छे.
अनंत तीर्थंकरोए, ८०–८१ मी गाथामां कहेलो मार्ग पोते अनुभवीने कर्मनो क्षय कर्यो अने जगतना
जीवोने ते ज मार्गनो उपदेश करीने तेओ मुक्ति पाम्या. अरिहंतोए पोते जे कर्युं ते ज कह्युं छे; जे मार्गे पोते
पूर्ण सुख प्रगट कर्युं ते ज मार्ग जगतना जीवोने दर्शाव्यो छे. अरिहंतोए जे कह्युं छे ते ज निःश्रेयसनो साचो
मार्ग छे. आम नक्की करीने आचार्यदेव पोतानी मति व्यवस्थित करे छे; लाख दुनिया न माने ने विरोध करे
तोय पोतानी मति न फरे एवी अप्रतिहत श्रद्धानी वात छे. मारी मुक्तिने माटे कोई काळनी अपेक्षा नथी,
क्षेत्रनी नथी, महाविदेहनी के भगवाननी अपेक्षा नथी, एकलो हुं ज बधायथी उदासीन थईने मारा द्रव्यगुणमां
पर्यायने एक करुं ते ज मारी मुक्तिनुं परमार्थ साधन छे. जे पोताना पूरा स्वभावने ओळखीने तेमां लीन थयो
तेने मुक्तिनुं बधुं साधन आवी जाय छे. त्रणे काळे आ एक ज मार्ग छे, बधाय तीर्थंकरोए आ ज मार्ग
उपदेश्यो छे. अहीं आचार्यदेवने स्वाश्रित मोक्षमार्गनो महिमा आवतां कहे छे के अहो, ते अरिहंतोने नमस्कार
हो अने तेमणे बतावेला मार्गने नमस्कार हो.
अरिहंतो कहे छे: पुरुषार्थवडे स्वाश्रय करो!
अरिहंतो कहे छे के अमे अमारा द्रव्यस्वभावनो आश्रय करीने केवळज्ञान पाम्या छीए अने हे जगतना
जीवो! तमे पण एम पोताना आत्मानो ज आश्रय करो. स्वभाव–आश्रित मुक्तिनो मार्ग छे माटे पुरुषार्थवडे
स्वभावने जाणीने तेनो ज आश्रय करो आम तीर्थंकरोना उपदेशमां तो पुरुषार्थनो आदेश छे. पण तीर्थंकरोए
उपदेशमां एम नथी कह्युं के ‘कर्मो ढीलां पडशे त्यारे के काळलब्धि पाकशे त्यारे मुक्ति थशे, अथवा तो देव–
गुरुना आश्रये मुक्ति थशे, अथवा तो अमारा केवळज्ञानमां जोयुं हशे त्यारे तमारी मुक्ति थशे.’ –ए तो बधी
पराश्रयनी वातो छे. जेवो अमारो (अरिहंतोनो) आत्मस्वभाव छे तेवो ज तमारो आत्मस्वभाव छे, तेने
जाणीने तेनो ज आश्रय करो, देव–गुरु–शास्त्रनो आश्रय छोडो, स्वाश्रयनी प्रतीति करीने स्वाश्रयमां एकता
करो, ते ज मुक्तिनो उपाय छे. –आवो बधाय अरिहंतोनो उपदेश छे. ‘तारी काळलब्धि पाकशे त्यारे मुक्ति थशे,
पुरुषार्थ काम नहि आवे’ एवी भगवाननी वाणी नथी. तीर्थंकरो अप्रतिहतपुरुषार्थवाळा होय छे. अने
तीर्थंकरोनी दिव्य वाणी जगतना जीवोने मोक्षमार्गना पुरुषार्थमां जोडवा माटे ज छे, पण मोक्षमार्गना पुरुषार्थथी
पाछा पाडवा माटे नथी.
पराश्रये मुक्ति अटके छे.
हे जीव! सब अवसर आ चूका है, तुं पुरुषार्थ कर. तुं अमारा जेवो ज छो, जेम अमारे कोई परनो
आश्रय नथी तेम तारे पण कोईनो आश्रय नथी, अमारो पण आश्रय तने नथी. तुं तारा स्वभावनो आश्रय
ले तो तारी मुक्ति माटेनो काळ पाकी ज गयो छे. पण तुं तारो आश्रय न करे तो ज तारी मुक्ति अटके छे. कांई
काळ तारी मुक्ति अटकावतो नथी.
स्वाश्रयना पुरुषार्थथी ज मुक्तिनो काळ पाके छे
‘काळ पाके त्यारे मुक्ति थाय’ ए वाक्य अज्ञानीनुं छे. केम के, काळनुं लक्ष ते पराश्रय छे के स्वाश्रय छे?
पराश्रयभावथी कदी मुक्ति थाय ज नहि. ‘काळ पाके त्यारे’ एमां पोताना स्वभावनो स्वीकार क्यां आव्यो?
पोताना स्वभावने स्वीकार्या वगर मुक्ति क्यांथी थाय? स्वभाव स्वीकारे तेने काळ पाकी ज गयो छे, ने जे
स्वभाव न स्वीकारे तेने काळ पाक्यो नथी. स्वभावनो स्वीकार ते स्वाश्रयनो पुरुषार्थ छे, ने स्वाश्रयथी मुक्ति
थाय छे. ‘काळ पाके त्यारे मुक्ति थाय’ ए मान्यतामां तो काळनी सामे ज जोवानुं रह्युं, पण स्वभावनो आश्रय
करवाना स्वतंत्र पुरुषार्थनी वात तो आवी नहि. मोक्षमार्ग पराधीन नथी, पण स्वतंत्र पुरुषार्थने आधीन
मोक्षमार्ग छे. ‘काळ पाके त्यारे मुक्ति थाय’ एमां पराश्रय छे, पराश्रयभाव अने मुक्तिनो मार्ग ए बंने एक
बीजाना विरोधी छे. स्वभावनो आश्रय छोडीने काळ उपर लक्ष गयुं ते पराश्रय छे, पराश्रय ते अधर्म छे. माटे,
काळ पाके त्यारे मुक्ति थाय–ए द्रष्टि मिथ्या छे. पोताना पूर्ण आत्मानी प्रतीति अने आत्मामां स्थिरता ते
स्वाश्रय भाव छे. तेनाथी मुक्ति थाय छे. जे स्वाश्रय करे तेने काळ पाकी गयो एम कहेवाय छे. स्वाश्रयने बदले