Atmadharma magazine - Ank 059
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 6 of 25

background image
: भादरवो : २४७४ : आत्मधर्म : १८९ :
पराश्रयथी मुक्ति मानी ते जीव मिथ्याद्रष्टि छे. अरिहंतोना उपदेशने ते समज्यो नथी, तेणे अरिहंतोने
ओळख्या नथी.
निमित्त के व्यवहार वगेरेनो आश्रय करवानो भगवानो हुकम नथी.
पूर्वे कहेलो, भगवाने पोते ज अनुभवीने दर्शावेलो एक मात्र परमार्थ मार्ग छे एटले ए सिवाय बीजा
बधाय मार्गो खोटा छे–एम तेमां आवी जाय छे. निमित्तो मळे तो जीवनी मुक्ति थाय, काळ पाके तो थाय,
निमित्तद्वारा थाय, व्यवहार करतां करतां थाय, पुण्य करतां करतां थाय–ए बधी मान्यता पराश्रयद्रष्टिवाळानी
छे, सर्वज्ञ भगवंतोना श्रीमुखनो ते हुकम नथी, सर्वज्ञ भगवाने तेम कर्युं नथी, ने पोताना ज्ञानमां तेम जाण्युं
नथी. जेओ कर्मनुं, काळनुं, निमित्तनुं के रागादिनुं अवलंबन माने छे तेनी मुक्ति भगवाने जोई नथी. पण जे
पराश्रयबुद्धि छोडीने, पोताना शुद्ध आत्मस्वभावनो निर्णय करीने स्वाश्रये पुरुषार्थ करे छे ते ज जीव मुक्ति
पामे छे. आचार्यदेव कहे छे के अहो, आवो स्वाश्रय मुक्तिमार्ग बतावनारा अर्हंतोने नमस्कार हो.
स्वाश्रयना स्वीकार विना मुक्तिमार्ग नथी
मुक्ति एटले परना संबंध रहित एकलो शुद्ध आत्मा. तेनो उपाय परना आश्रये नथी. जेनुं वीर्य हजी
पराश्रयनी श्रद्धामां अटक्युं छे ते जीव मुक्तिना मार्गनो निर्णय करी शके नहि. तुं मुक्तिनी वात करे छे के
परनी? जो मुक्तिनी वात करतो हो तो पराश्रयनी श्रद्धा छोड. अरिहंतोए पराश्रय कर्यो नथी अने पराश्रयने
मोक्षनो मार्ग कह्यो नथी.
जगतने स्वाश्रयना मार्गदर्शक अरिहंतोने श्रीकुंदकुंदाचार्यदेव नमस्कार करे छे.
श्रीकुंदकुंदआचार्यदेव कहे छे के ‘णमो तेसिं’ ते अरिहंतोने नमस्कार हो. अहोहो, नाथ! आपे आपना
आत्मामां तो स्वभावनो संपूर्ण आश्रय प्रगट करीने पराश्रयभावना भूक्का उडाडया, अने अन्य जीवोने माटे
आपना कथनमां पण पराश्रयना भूक्का ज छे. आपनो दिव्य उपदेश जीवोने पराश्रय छोडावे छे. आचार्यदेवने
घणो स्वाश्रयभाव तो प्रगट्यो छे ने पूर्ण स्वाश्रयभाव प्रगट करवानी तैयारी छे, तेथी स्वाश्रय मुक्तिमार्गनो
प्रमोद आवी जतां कहे छे के–अहो, जगतना जीवोने स्वाश्रयनो उपदेश आपनार हे अर्हंतो! आपने नमस्कार
हो. नमो, नमो! हे जिन भगवंतो! तमने. नमस्कार करुं छुं.
अज्ञानभावे अनंत प्रकारना पराश्रयभावमां अज्ञानी जीवो रखडे छे. अहो, जगतमां आटला आटला
पराश्रयभावो, ते बधायथी छोडावीने आत्माने एक पोताना स्वभावना ज आश्रयमां लावी मूक्यो छे. हे
तीर्थंकरो! आप पोते पण स्वभावनी श्रद्धा अने स्थिरता करीने ज मुक्त थया छो अने आपनी वाणीमां
जगतना मुमुक्षुओने पण ए ज प्रकारनो उपदेश कर्यो छे. अहो, अरिहंतो! आपने नमस्कार, आपना
स्वाश्रितमार्गने नमस्कार. मारो आत्मा स्वाश्रयनी साक्षी पूरतो आपना अप्रतिहत मार्गमां चाल्यो आवे छे.
अरिहंतोने नमनार जीव केवो होय?
हे नाथ! अमने स्वाश्रयनो उल्लास आवे छे. धन्य प्रभु तारा कथनने! तमने हुं नमस्कार करुं छुं.
अमारो आत्मा स्वाश्रयमां नमे छे, आपनी जेम अमे पण स्वाश्रयपूर्वक अरहंतदशा प्रगट करवा तरफ आपना
मार्गे चाल्या आवीए छीए. अहो, आवा नमस्कार कोण करे? आवो उल्लास कोने ऊछळे? जेणे पोताना
स्वभावनी श्रद्धाथी स्वाश्रय तरफ वलण कर्युं छे अने पराश्रयना अंशनो पण नकार कर्यो छे ते स्वाश्रयना
उल्लासथी अरिहंतोने नमस्कार करे छे.
अरिहंतोना पगले
अहो अरिहंतो! हुं आपने पगले पगले आवी रह्यो छुं. सर्वे अरिहंतोने मारा नमस्कार छे. ‘बधाय
अरिहंतोए आ एक ज मार्गथी पूर्णता करी छे अने तेओए उपदेशमां पण एम ज कह्युं छे,’ एम कहीने पछी
ते सर्वे अरिहंतोने आचार्यदेवे नमस्कार कर्या छे. आमां आचार्यदेवना ऊंचा भणकारा छे. ‘उपदेश पण एम ज
कर्यो’ –आम कहीने आचार्यदेव उपदेशवाळा अरिहंतोनी एटले के तीर्थंकरोनी वात लेवा मागे छे. तीर्थंकरोने
केवळज्ञान प्रगट्या पछी नियमथी दिव्यध्वनि छूटे छे ने ते ध्वनि द्वारा आवो ज स्वाश्रयनो मार्ग जगतना
मुमुक्षुओने उपदेशे छे. अने ते सांभळीने स्वाश्रय करनारा जीवो पण होय ज छे. ए रीते संधि वडे
स्वाश्रयमार्गनो अछिन्नप्रवाह बताव्यो छे.