निमित्तद्वारा थाय, व्यवहार करतां करतां थाय, पुण्य करतां करतां थाय–ए बधी मान्यता पराश्रयद्रष्टिवाळानी
नथी. जेओ कर्मनुं, काळनुं, निमित्तनुं के रागादिनुं अवलंबन माने छे तेनी मुक्ति भगवाने जोई नथी. पण जे
पराश्रयबुद्धि छोडीने, पोताना शुद्ध आत्मस्वभावनो निर्णय करीने स्वाश्रये पुरुषार्थ करे छे ते ज जीव मुक्ति
पामे छे. आचार्यदेव कहे छे के अहो, आवो स्वाश्रय मुक्तिमार्ग बतावनारा अर्हंतोने नमस्कार हो.
परनी? जो मुक्तिनी वात करतो हो तो पराश्रयनी श्रद्धा छोड. अरिहंतोए पराश्रय कर्यो नथी अने पराश्रयने
मोक्षनो मार्ग कह्यो नथी.
आपना कथनमां पण पराश्रयना भूक्का ज छे. आपनो दिव्य उपदेश जीवोने पराश्रय छोडावे छे. आचार्यदेवने
घणो स्वाश्रयभाव तो प्रगट्यो छे ने पूर्ण स्वाश्रयभाव प्रगट करवानी तैयारी छे, तेथी स्वाश्रय मुक्तिमार्गनो
प्रमोद आवी जतां कहे छे के–अहो, जगतना जीवोने स्वाश्रयनो उपदेश आपनार हे अर्हंतो! आपने नमस्कार
हो. नमो, नमो! हे जिन भगवंतो! तमने. नमस्कार करुं छुं.
तीर्थंकरो! आप पोते पण स्वभावनी श्रद्धा अने स्थिरता करीने ज मुक्त थया छो अने आपनी वाणीमां
जगतना मुमुक्षुओने पण ए ज प्रकारनो उपदेश कर्यो छे. अहो, अरिहंतो! आपने नमस्कार, आपना
स्वाश्रितमार्गने नमस्कार. मारो आत्मा स्वाश्रयनी साक्षी पूरतो आपना अप्रतिहत मार्गमां चाल्यो आवे छे.
मार्गे चाल्या आवीए छीए. अहो, आवा नमस्कार कोण करे? आवो उल्लास कोने ऊछळे? जेणे पोताना
स्वभावनी श्रद्धाथी स्वाश्रय तरफ वलण कर्युं छे अने पराश्रयना अंशनो पण नकार कर्यो छे ते स्वाश्रयना
उल्लासथी अरिहंतोने नमस्कार करे छे.
ते सर्वे अरिहंतोने आचार्यदेवे नमस्कार कर्या छे. आमां आचार्यदेवना ऊंचा भणकारा छे. ‘उपदेश पण एम ज
कर्यो’ –आम कहीने आचार्यदेव उपदेशवाळा अरिहंतोनी एटले के तीर्थंकरोनी वात लेवा मागे छे. तीर्थंकरोने
केवळज्ञान प्रगट्या पछी नियमथी दिव्यध्वनि छूटे छे ने ते ध्वनि द्वारा आवो ज स्वाश्रयनो मार्ग जगतना
मुमुक्षुओने उपदेशे छे. अने ते सांभळीने स्वाश्रय करनारा जीवो पण होय ज छे. ए रीते संधि वडे
स्वाश्रयमार्गनो अछिन्नप्रवाह बताव्यो छे.