Atmadharma magazine - Ank 059
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: १९० : आत्मधर्म : भादरवो : २४७४ :
(पोष वद ४) मुक्त थवानो उपाय
आ आत्मानो स्वभाव अरिहंत जेवो ज छे. अरिहंतनुं द्रव्य एकरूप रहेनारुं सद्रश्य तत्त्व पूरा स्वभावे छे
तेवुं ज पोतानुं आत्मद्रव्य छे. अरिहंत जेवा पोताना आत्माने जाण्या वगर कोई जीव धर्म पामी शके नहि. त्रणे
काळना सर्वे तीर्थंकरो आ ज उपाय वडे मोहनो नाश करी, केवळज्ञान पामीने मुक्त थया छे, थाय छे ने थशे.
अरिहंतोए शुं कर्युं? अने शुं कह्युं?
जेओ अरिहंत थया ते आत्माओए पहेलांं शुं कर्युं? पहेलांं तो तेमना पर्यायमां राग–द्वेष–मोह हता;
पण ते राग–द्वेष–मोहने पोतानुं स्वरूप न मानतां, अरिहंतना शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्यायने ओळखीने पोताना
आत्माने पण तेवो ओळख्यो. अरिहंतने आत्मद्रव्य अने चैतन्यगुण तो सदाय एकरूप हता अने ते
स्वभावना आश्रये पूर्ण निर्मळ पर्याय नवो प्रगट कर्यो छे, रागादि ते आत्मानुं मूळ स्वरूप न हतुं तेथी तेनो
नाश थई गयो छे. अरिहंतनी जेम पोतानो आत्मा पण द्रव्यथी अने गुणथी तो अत्यारे पण परिपूर्ण एकरूप
छे, पर्यायमां जे मोह भाव छे ते पोतानुं स्वरूप नथी एम ओळखाण करीने द्रव्य–गुणनो आश्रय करतां
पर्यायमांथी मोह टळे छे ने शुद्धता प्रगटे छे. –आ रीते, अरिहंत थनारा बधाय आत्माओए अरिहंत दशा
प्रगट थया पहेलांं जाण्युं हतुं. आ ज विधिथी पहेलांं तो दर्शनमोहनो नाश करीने क्षायक सम्यग्दर्शन प्रगट कर्युं
हतुं अने पछी स्वभावना ज आश्रये रागद्वेष टाळीने केवळज्ञान प्रगट करी अरिहंत थया हता. अने अरिहंत
थया पछी जे सहज दिव्यध्वनि छूटयो तेमां आ ज विधिथी कर्म क्षय थवानो उपदेश हतो.
आत्मा संपूर्ण ज्ञानस्वरूप छे, तेनामां शरीर नथी, मन नथी, वाणी नथी, कर्मो नथी, राग–द्वेष नथी
अने अपूर्णता नथी. जेवा अरिहंत छे तेवो ज पूरो पोतानो स्वभाव छे; ए स्वभावना आश्रये ज धर्म छे.
पराश्रयनी कोई लागणीमां धर्म नथी. अरिहंतोनो आश्रय छोडीने तेमज पोतामां पण द्रव्य–गुण–पर्यायना
भेदनो आश्रय छोडीने, एकरूप अभेद द्रव्यना आश्रये श्रद्धा–ज्ञान करतां मिथ्यात्वनो नाश थाय छे अने ते
अभेद स्वभावमां ज एकाग्रता करतां रागद्वेषनो नाश थाय छे. आ ज उपाय अनंत तीर्थंकरोए पोते कर्यो छे
अने आ ज उपाय उपदेश्यो छे.
एक ज विधि
जुओ, अहीं कुंदकुंद प्रभु मोक्षनो उपाय बतावे छे अने तेमां सर्वे तीर्थंकरोनी साख पूरे छे. पोतानो
आत्मा ज्ञान–दर्शन–आनंदस्वरूप छे, तेने लक्षमां लईने तेना ज आश्रये शुद्धोपयोग प्रगट करीने, भेद अने
व्यवहारनो क्षय करीने भगवान अरिहंतोए केवळज्ञान प्रगट कर्युं छे. त्रणे काळे मोहनो क्षय करवानो आ एक
ज विधि छे. तीर्थंकरोए आ ज विधि कर्यो छे, अने आ ज विधि कह्यो छे, आ सिवाय बीजो कोई विधि मोक्ष
माटे छे ज नहि.
‘निश्चय स्वभावनो आश्रय’ ए एक ज विधि भगवाने कर्यो छे ने कह्यो छे.
‘शरीरादिनी क्रियानो हुं कर्ता छुं के पुण्य–पापनी क्रिया मारी छे’ –एवा प्रकारनी विकार साथे एकपणानी
मान्यतानो स्वभावना आश्रये नाश करीने अने पोताना स्वभावमां एकता करीने सर्वे तीर्थंकरो केवळज्ञान
पाम्या छे; अने पछी दिव्यध्वनिमां अन्य जीवोने पण ए ज प्रमाणे मार्ग उपदेशीने तेओ मोक्षने पाम्या छे.
तीर्थंकरोए पोते निश्चय स्वभावनो आश्रय कर्यो ने व्यवहारनो आश्रय छोड्यो; दिव्यध्वनिमां पण
निश्चयरत्नत्रयने ज मोक्षमार्गपणे उपदेश्यां अने व्यवहाररत्नत्रय ते खरो मोक्षमार्ग नथी पण बंधमार्ग छे एम
भगवाने उपदेश्युं. कोई तीर्थंकरो व्यवहाररत्नत्रयथी केवळज्ञान पाम्या नथी, स्वभावआश्रित निश्चय–श्रद्धा–
ज्ञान–चारित्रथी ज सर्वे तीर्थंकरो केवळज्ञान पाम्या छे. आ एक ज प्रकारनो मोक्षमार्ग छे. पुण्य परिणाम ते
मोक्षनुं कारण थाय एम भगवाने उपदेश्युं नथी, पुण्यपरिणामथी सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र थाय एवो मार्ग
भगवाने उपदेश्यो नथी. मोक्षमार्गनो एक ज विधि छे के पोताना शुद्धआत्माने ओळखीने तेना आश्रये मोहनो
क्षय करवो. आनाथी विरुद्ध जेटली विधि होय ते मोक्षमार्ग नथी–पण संसारमार्ग छे.
भगवानना उपदेशनो सार: ‘स्वभावनो आश्रय करवो’