Atmadharma magazine - Ank 059
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 8 of 25

background image
: भादरवो : २४७४ : आत्मधर्म : १९१ :
जेवो केवळी भगवाननो ज्ञानस्वभाव छे तेवो ज मारो ज्ञानस्वभाव छे, एम निर्णय करीने पोताना
ज्ञान–स्वभावनो आश्रय करवाथी पर्यायमां ज्ञाननी अधूराश टळे छे ने पूर्णता थाय छे. विकारना आश्रये
पर्यायनी अधूराश टळती नथी. भगवानना उपदेशनो सार शुं? ‘स्वभावनो आश्रय करवो’ ते ज सार छे.
स्वभावनो आश्रय ते ज निश्चय सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र छे; स्वभावना आश्रयनो ज उपदेश भगवाने कर्यो
छे ने सर्व पराश्रय छोडाव्यो छे.
तीर्थंकरोनो पंथ
भगवंतोए स्वभावना आश्रये ज पूर्णता प्रगट करी छे ने कर्मनो क्षय कर्यो छे. जे विधिथी अरिहंत
भगवंतोए पोते कर्मनो क्षय कर्यो ते ज प्रकारे उपदेश कर्यो छे. आत्मस्वभावना ज आश्रये मुक्ति थाय अने
परना आश्रये मुक्ति थाय ज नहि–आम बधा अरिहंतोए उपदेश कर्यो छे. अहीं सिद्धभगवाननी वात न लेतां
तीर्थंकर अरिहंतोनी वात लीधी छे. तीर्थंकरोने नियमथी दिव्यध्वनि होय छे अने ते ध्वनिमां स्वाश्रयनो उपदेश
सांभळीने पोतामां स्वाश्रय प्रगट करीने तीर्थंकरोना पंथे चालनारा जीवो होय ज छे. ए रीते, कहेनार अने
सांभळनारनी संधिथी वात छे.
अरिहंतोए उपदेशेला स्वाश्रित मुक्तिमार्गमां व्यवहारनुं ज्ञान कराव्युं छे पण आश्रय छोडाव्यो छे.
अरिहंतोए संपूर्ण मोहनो क्षय करीने केवळज्ञान प्रगट कर्युं, तेमने उपदेशादि कोई ईच्छा होती नथी.
छतां सहजपणे दिव्यध्वनिमां जगतना मुमुक्षुओने एवो उपदेश कर्यो के–हे जीवो! जेवो अमारो आत्मा छे तेवो
ज तमारा आत्मानो स्वभाव छे. जेवा अमारा द्रव्य–गुण–पर्याय छे तेवा ज द्रव्य–गुण–पर्याय तमारा आत्मानुं
स्वरूप छे, ए सिवाय बीजा जे पराश्रित विकारी भावो छे ते तमारुं स्वरूप नथी. व्यवहाररत्नत्रयना परिणाम
पण बहारना लक्षे थाय छे, ते बंधमार्ग छे. जे पोताना स्वभावना आश्रये थाय ते ज मुक्तिमार्ग छे.
देवगुरुशास्त्रनी श्रद्धा नवतत्त्वनुं ज्ञान तथा पंचमहाव्रतनुं पालन ते व्यवहारचारित्र छे, तेना आधारे मोक्षमार्ग
भगवाने कह्यो नथी. भगवाने पोते पण ते व्यवहाररत्नत्रय छोडीने पूर्णता प्रगट करी छे, कांई
व्यवहाररत्नत्रयना अवलंबने पूर्णता थई नथी. भगवानना उपदेशमां व्यवहारनुं स्वरूप तो बराबर जणाव्युं
छे परंतु ते व्यवहारना आश्रये मोक्षमार्ग नथी कह्यो. मोक्षमार्ग तो निश्चयस्वभावना आश्रये ज छे. व्यवहारना
आश्रये तो बंधमार्ग छे. शुद्ध आत्मानी श्रद्धा, तेनुं ज्ञान अने तेमां पुण्य–पापरहित स्थिरता तेने ज भगवाने
मोक्षमार्ग तरीके उपदेशेल छे. निश्चय अने व्यवहार बंनेनुं स्वरूप जणावीने पण, मोक्षमार्ग तरीके तो निश्चयनो
ज उपदेश भगवाने कर्यो छे, व्यवहारनो उपदेश मुक्तिमार्ग तरीके भगवाने कर्यो नथी, पण तेनुं अवलंबन
छोडाववा माटे तेनुं ज्ञान कराव्युं छे. साधकदशामां वच्चे शुभरागरूप व्यवहार आवी जाय पण ते मुक्तिमार्ग
नथी–एम भगवाने कह्युं छे. ए रीते भगवाने स्वाश्रयनो ज उपदेश कर्यो छे. अनंत तीर्थंकरोना उपदेशनो आ
गाथामां सार छे. स्वाश्रितभावनो उल्लास आवतां श्रीआचार्यदेव कहे छे के, अहो! भगवंतोए आवो स्वाश्रित
मुक्तिमार्ग बताव्यो, तेमने नमस्कार हो.
अरिहंतोनो उपदेश समजनार जीव उल्लासथी नमी पडे छे.
‘अरिहंत भगवानना द्रव्य–गुण–पर्याय जेवो पोतानो आत्मा छे एटले पोताने अरिहंतनो आश्रय
नथी पण पोताना आत्मानो ज आश्रय छे. पहेलांं अरिहंतनुं लक्ष होय छे पण ते धर्म नथी, केम के ते पराश्रय
छे. अरिहंतनुं लक्ष छोडीने पोताना परिपूर्ण स्वभावने अभेदपणे लक्षमां लेवो ते स्वाश्रय छे, ते धर्म छे. हे
जीव, तारो आत्मा पूरो छे तेने जाणीने तेना आश्रये ठर–ए ज मुक्तिनो मार्ग छे’ –आवो उपदेश ज्यां सुधी
भगवानने अरिहंतदशा हती त्यां सुधी कर्यो, अने पछी वाणी बंध पडी, योगनुं कंपन पण टळी गयुं अने प्रभु
निवृत थया–सिद्ध थया. अहो, भगवंतो! आपने नमस्कार हो. आपनो पवित्र उपदेश अमने अंतरमां रुच्यो छे
अने अमने अंतरमां स्वाश्रयनो आहलाद ऊछळ्‌यो छे. प्रभो, अमे बीजुं तो शुं कहीए? नाथ!
नमो भगवद्भयः
भगवतोने नमस्कार हो. आ रीते, अरिहंतोनो उपदेश समजावनार जीव स्वाश्रयना उल्लासथी भगवानने
नमस्कार करे छे.
अरहंतोना मार्गे
कोई पुण्यभावथी के निमित्तोना अवलंबनथी सम्यग्दर्शन थतुं नथी पण पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायथी