पर्यायनी अधूराश टळती नथी. भगवानना उपदेशनो सार शुं? ‘स्वभावनो आश्रय करवो’ ते ज सार छे.
स्वभावनो आश्रय ते ज निश्चय सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र छे; स्वभावना आश्रयनो ज उपदेश भगवाने कर्यो
छे ने सर्व पराश्रय छोडाव्यो छे.
परना आश्रये मुक्ति थाय ज नहि–आम बधा अरिहंतोए उपदेश कर्यो छे. अहीं सिद्धभगवाननी वात न लेतां
तीर्थंकर अरिहंतोनी वात लीधी छे. तीर्थंकरोने नियमथी दिव्यध्वनि होय छे अने ते ध्वनिमां स्वाश्रयनो उपदेश
सांभळीने पोतामां स्वाश्रय प्रगट करीने तीर्थंकरोना पंथे चालनारा जीवो होय ज छे. ए रीते, कहेनार अने
सांभळनारनी संधिथी वात छे.
स्वरूप छे, ए सिवाय बीजा जे पराश्रित विकारी भावो छे ते तमारुं स्वरूप नथी. व्यवहाररत्नत्रयना परिणाम
पण बहारना लक्षे थाय छे, ते बंधमार्ग छे. जे पोताना स्वभावना आश्रये थाय ते ज मुक्तिमार्ग छे.
देवगुरुशास्त्रनी श्रद्धा नवतत्त्वनुं ज्ञान तथा पंचमहाव्रतनुं पालन ते व्यवहारचारित्र छे, तेना आधारे मोक्षमार्ग
भगवाने कह्यो नथी. भगवाने पोते पण ते व्यवहाररत्नत्रय छोडीने पूर्णता प्रगट करी छे, कांई
व्यवहाररत्नत्रयना अवलंबने पूर्णता थई नथी. भगवानना उपदेशमां व्यवहारनुं स्वरूप तो बराबर जणाव्युं
छे परंतु ते व्यवहारना आश्रये मोक्षमार्ग नथी कह्यो. मोक्षमार्ग तो निश्चयस्वभावना आश्रये ज छे. व्यवहारना
आश्रये तो बंधमार्ग छे. शुद्ध आत्मानी श्रद्धा, तेनुं ज्ञान अने तेमां पुण्य–पापरहित स्थिरता तेने ज भगवाने
मोक्षमार्ग तरीके उपदेशेल छे. निश्चय अने व्यवहार बंनेनुं स्वरूप जणावीने पण, मोक्षमार्ग तरीके तो निश्चयनो
छोडाववा माटे तेनुं ज्ञान कराव्युं छे. साधकदशामां वच्चे शुभरागरूप व्यवहार आवी जाय पण ते मुक्तिमार्ग
नथी–एम भगवाने कह्युं छे. ए रीते भगवाने स्वाश्रयनो ज उपदेश कर्यो छे. अनंत तीर्थंकरोना उपदेशनो आ
गाथामां सार छे. स्वाश्रितभावनो उल्लास आवतां श्रीआचार्यदेव कहे छे के, अहो! भगवंतोए आवो स्वाश्रित
मुक्तिमार्ग बताव्यो, तेमने नमस्कार हो.
जीव, तारो आत्मा पूरो छे तेने जाणीने तेना आश्रये ठर–ए ज मुक्तिनो मार्ग छे’ –आवो उपदेश ज्यां सुधी
भगवानने अरिहंतदशा हती त्यां सुधी कर्यो, अने पछी वाणी बंध पडी, योगनुं कंपन पण टळी गयुं अने प्रभु
निवृत थया–सिद्ध थया. अहो, भगवंतो! आपने नमस्कार हो. आपनो पवित्र उपदेश अमने अंतरमां रुच्यो छे
अने अमने अंतरमां स्वाश्रयनो आहलाद ऊछळ्यो छे. प्रभो, अमे बीजुं तो शुं कहीए? नाथ!
नमस्कार करे छे.