Atmadharma magazine - Ank 059
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: १९२ : आत्मधर्म : भादरवो : २४७४ :
अभेद स्वभावना आश्रये ज सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र थाय छे. अमने आवो पवित्र उपदेश करीने स्वाश्रयनो
मार्ग दर्शाव्यो ते माटे हे नाथ! तमने मारा नमस्कार छे. वर्तमान शुभ विकल्प छे पण ते तरफ न वळतां
स्वभावना महिमा तरफ ज अमे वळीए छीए. स्वभावना आश्रये धर्मनी वृद्धि ज छे. जे दशा आपे प्रगट करी
तेने अमे नमस्कार करीने रागरहित चैतन्यस्वभावनो ज आश्रय अने विनय करीए छीए, विकल्पनो आश्रय
के आदर करता नथी. हे नाथ जिनेश! तमारो उपदेश सांभळीने अमने स्वभाव अने परभावनुं भेदज्ञान थयुं–
अमने निश्चय स्वाश्रय रागरहित स्वभाव मळ्‌यो तेथी अमे आपने नमस्कार करीए छीए–आपे दर्शावेला मार्गे
आवीए छीए.
जेणे पोताना आत्मामां स्वाश्रयनो स्वीकार कर्यो तेणे अनंत तीर्थंकरोना मार्गने अंगीकार कर्यो. अने
जेणे कोई पण प्रकारे पराश्रयमां (जडनी क्रियामां, रागमां, निमित्तना आश्रयमां के व्यवहारमां) धर्म मान्यो छे
ते जीव अनंत तीर्थंकरोना मार्गने उल्लंघनारो छे. सर्वे तीर्थंकरो स्वाश्रयभावथी ज कर्मोनो नाश करीने केवळी
थया छे अने पछी तेओए उपदेश पण एम ज कर्यो छे के स्वाश्रयभाव ते धर्म छे ने पराश्रयभाव ते अधर्म छे.
पुण्य पण पराश्रयभाव छे, तेमां धर्म नथी. आम होवा छतां, जे जीव स्वाश्रयने अंगीकार करतो नथी ने
पुण्यादिथी धर्म माने छे ते जीव अनंत तीर्थंकरोना उपदेशने मानतो नथी, ते अनंत तीर्थंकरोनो वेरी महा
मिथ्याद्रष्टि छे. निर्मळ सम्यग्दर्शन प्रगट करवुं होय तो ते आत्माना आधारे प्रगटे छे, कोई परना आश्रये
प्रगटतुं नथी. आम समजीने जे जीव स्वाश्रय करे ते ज जीव तीर्थंकरोना पंथे चालनार छे.
टीका
“अतीत काळमां क्रमश: थई गयेला समस्त तीर्थंकर भगवंतो, प्रकारांतरनो असंभव होवाने लीधे जेमां
द्वैत संभवतुं नथी एवा आ ज एक प्रकारथी कर्मांशोनो क्षय पोते अनुभवीने, (तथा) परमात्मपणाने लीधे
भविष्यकाळे के आ (वर्तमान) काळे अन्य मुमुक्षुओने पण ए ज प्रकारे तेनो (कर्मक्षयनो) उपदेश करीने,
निःश्रेयसने प्राप्त थया छे; माटे निर्वाणनो अन्य (कोई) मार्ग नथी एम नक्की थाय छे. अथवा, प्रलापथी बस
थाओ; मारी मति व्यवस्थित थई छे. भगवंतोने नमस्कार हो.”
(प्रवचनसर प. १२) अछन्न धमप्रवह
गया काळमां क्रमश: –एक पछी एक अनंत तीर्थंकरो थई गया छे. क्रमश: केम कह्युं? जेम संसार अनादि
अनंत छे तेम स्वभाव समजीने मोक्ष जनारा जीवोनो प्रवाह पण अनादि अनंत छे. अनादिथी एक पछी एक
तीर्थंकरो थता आवे छे ने तेमना निमित्ते स्वभाव समजीने मोक्षमां जनार जीवो पण क्रमे क्रमे थता ज आवे छे.
तीर्थंकरोनो अने मोक्ष जनारा जीवोनो कदी सर्वथा अभाव थतो नथी. ए रीते धर्मनो अच्छिन्न प्रवाह अनादि
अनंत छे.
अहीं मुख्यपणे तीर्थंकरोनी वात लीधी छे. वाणी वगरना मूक केवळी भगवंतोनी मुख्यपणे वात नथी.
केम के तीर्थंकरोने नियमथी दिव्यध्वनि होय छे अने ते द्वारा स्वाश्रयस्वभाव समजीने मोक्ष जनारा जीवो पण
होय छे. बधाय तीर्थंकरोए कहेलो मोक्षनो एक ज विधि
क्रमश: अनंत तीर्थंकरो थया एटले के अनंतकाल पहेलांं थया तेमणे अने हमणां ज थया तेमणे–ए
बधाए एक ज विधि कर्यो हतो. अनंतकाळ पहेलांं थया तेमणे जुदो विधि कर्यो हतो अने हमणां थया तेमणे
जुदो विधि कर्यो हतो–एम नथी, केम के मोक्षनो विधि बे प्रकारनो नथी, एक ज प्रकारनो छे. अत्यार सुधी
जेटला तीर्थंकर भगवंतो थई गया ते बधाये शुं विधि कर्यो हतो अने शुं उपदेश कर्यो हतो? ते आचार्यदेवे ८०
अने ८१ मी गाथामां बताव्युं. श्री आचार्यदेव पोते स्वाश्रयभावनी निःशंकताथी सर्वे तीर्थंकरोनी साक्षी आपे छे
के, मोक्षनो जे उपाय में वर्णव्यो ते ज उपाय सर्वे तीर्थंकरोए कर्यो छे अने ते ज उपाय सर्वे तीर्थंकरोए उपदेश्यो
छे. हुं कांई नवो उपाय कहेतो नथी, पूर्वे अनंता तीर्थंकरोए जे उपाय कर्यो अने समवसरणमां जे उपाय कही
गया, ते ज हुं कहुं छुं.
अरिहंत जेवा पोताना आत्मस्वभावने जाणीने अने शुद्धोपयोगवडे तेनो ज आश्रय करीने मोहनो क्षय
थाय छे; आ प्रमाणे ८०–८१ मी गाथामां मोहना क्षयनो जे उपाय वर्णव्यो ते ज उपायथी मोहनो क्षय थाय छे,
अन्य प्रकारे मोहनो क्षय थतो नथी. अनंत तीर्थंकरोए कर्मनो नाश एक ज प्रकारथी कर्यो छे.