Atmadharma magazine - Ank 059
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४७४ : आत्मधर्म : १९३ :
‘कोईक तीर्थंकरोए निश्चयना आश्रये कर्मनो क्षय कर्यो अने कोईक तीर्थंकरोए व्यवहारना आश्रये कर्मनो क्षय
कर्यो’ –एम नथी, मोक्षनो मार्ग द्वैतरूप नथी पण एक ज प्रकारनो छे. भगवान जेवा ज पोताना आत्मानी
ओळखाण करीने अने शुद्धोपयोग प्रगट करीने कर्मनो क्षय अने मुक्ति थाय छे. बधाय जीवोने माटे आ एक ज
उपाय कर्मक्षयनो छे; आ सिवाय बीजो कोई मार्ग तीर्थंकरोए जाण्यो नथी, कर्यो नथी, कह्यो नथी अने छे ज नहि.
एकांत अने अनेकांतनुं स्वरूप: निश्चय अने व्यवहार बंनेने मुक्तिनो उपाय मानवो ते एकांत छे
वर्तमान पर्यायमां अधूराश अने अशुद्धता होवा छतां ते पर्याय जेटलो आखो आत्मा न मानतां,
‘अरिहंत भगवान जेवो ज परिपूर्ण हुं छुं’ एम अरिहंतद्वारा पोताना परिपूर्ण स्वभावनी प्रतीति करीने अने
तेमां ज स्थिर थईने–आ एक ज प्रकारथी–सर्वे तीर्थंकरोए कर्मनो क्षय कर्यो छे. ‘एक ज उपाय छे’ एमां ज
अनेकांत आवी जाय छे. स्वाश्रय ते ज उपाय छे ने पराश्रय ते उपाय नथी–एवो अनेकांत छे; निश्चय ते ज
उपाय छे ने व्यवहार ते उपाय नथी–एवो अनेकांत छे; शुद्ध उपयोग ते ज उपाय छे ने शुभ–अशुभ उपयोग ते
उपाय नथी–एवो अनेकांत छे. परंतु ‘निश्चय ते मुक्तिनो उपाय छे ने व्यवहार पण मुक्तिनो उपाय छे,
स्वाश्रय पण उपाय छे ने पराश्रय पण उपाय छे, शुद्ध उपयोग उपाय छे ने अशुद्धोपयोग पण उपाय छे’ –
आम मानवुं ते एकांत छे–मिथ्यात्व छे. एक प्रकार छे, ने बीजो कोई प्रकार नथी ए ज अनेकांत स्वरूप छे.
मोक्षनो एक ज विधि छे, बीजो विधि नथी, आत्मानी श्रद्धाज्ञान–स्थिरताथी ज धर्म थाय, बीजी रीते न
थाय, निश्चयरत्नत्रयथी धर्म थाय, व्यवहार रत्नत्रयथी धर्म न थाय–आनुं ज नाम अनेकांत छे.
निश्चयरत्नत्रयथी धर्म थाय ने व्यवहार रत्नत्रयथी पण धर्म न थाय एवी मान्यतामां निश्चय–व्यवहारनी
एकत्वबुद्धि छे ते एकांत छे. आत्मस्वभावथी धर्म थाय ने रागथी पण धर्म थाय एवी मान्यतामां आत्मा अने
रागनी एकत्वबुद्धि छे, ते एकांत छे. निमित्तोना आश्रये धर्म थाय एम माने तेने स्व–परमां एकत्वबुद्धिरूप
एकांतवाद छे. पोताना स्वभावमां पुण्य–पापनी नास्ति छे. जो पुण्य–पापक्रियानी पोताना स्वरूपमां नास्ति न
माने तो मिथ्यात्व छे. जे पुण्य–पापथी आत्माने लाभ माने तेणे विकारने अने आत्माने एक मान्या छे. तेने
अरिहंत जेवा पोताना आत्मानी श्रद्धा नथी, ते अरिहंतोना मार्गे चालनारो नथी.
पहेलां के पछी क्यारेय शुभरागथी धर्म थतो नथी
भले, सम्यग्दर्शन थया पहेलांं साचा देव गुरु–शास्त्र तरफनो शुभराग होय छे पण तेनाथी सम्यग्दर्शन
थतुं नथी, ज्यारे देव–गुरु–शास्त्रनुं अने रागनुं अवलंबन छोडीने पोताना चैतन्य स्वभावनुं अवलंबन
(श्रद्धा, ज्ञान) करे त्यारे ज सम्यग्दर्शन थाय छे. सम्यग्दर्शन थया पछी पूर्ण वीतरागचारित्र थया पहेलांं जे
शुभराग होय छे ते पण चारित्र–धर्मनुं कारण नथी. स्वभाव आश्रित शुद्ध उपयोग ते ज चारित्रधर्म छे. आ ज
एक प्रकारे अनंत तीर्थंकर भगवंतोए कर्मोनो क्षय कर्यो छे. स्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान ने स्थिरता ए एक ज प्रकार
मोक्षमार्गनो छे. ए प्रकारथी तीर्थंकरोए सर्व कर्मनो क्षय करीने शुद्ध आत्मस्वरूप पोते अनुभव्युं छे. एवा
तीर्थंकरो सर्वज्ञ अने वीतराग होवाथी परमआप्त छे, जगतना जीवोने आत्महितना उपदेष्टा छे. तीर्थंकरोन
उपदेश परमविश्वास योग्य छे. तीर्थंकरोए शुं उपदेश कर्यो?
तीर्थंकरोए उपदेशेलो त्रणकाळना सर्व मुमुक्षुओने एक ज उपाय
भगवानना श्रीमुखे एम नीकळ्‌युं छे के, अमे जे उपदेश करीए छीए ते ज प्रमाणे आ काळना के भविष्य
काळना मुमुक्षु जीवोने मोक्षनो उपाय छे. भविष्यमां पंचमकाळ कठण आवशे माटे ते काळनो उपाय जुदो–एम
भगवाने कह्युं नथी. भगवाननो उपदेश भविष्यकाळना जीवोने माटे पण एक ज प्रकारनो छे. धर्मनो बीजो
रस्तो छे ज नहि. आत्मानी श्रद्धा–ज्ञान–रमणता ते एक ज त्रणकाळ त्रणलोकना मुमुक्षुजीवोने माटे मोक्षनो
उपाय छे.
त्रणे काळना अरिहंतोनो उपदेश एक ज प्रकारनो छे के स्वाश्रये धर्म छे. भूतकाळे भगवान मोक्ष पाम्या
तेओ आ ज विधिथी पाम्या छे अने अरिहंतदशामां तेओए ते काळे प्रत्यक्ष सांभळनारां जीवोने ए ज मार्ग
उपदेश्यो छे तेम ज भविष्यकाळना मुमुक्षुओने माटे पण ते एक उपाय ज स्थाप्यो छे.