कर्यो’ –एम नथी, मोक्षनो मार्ग द्वैतरूप नथी पण एक ज प्रकारनो छे. भगवान जेवा ज पोताना आत्मानी
ओळखाण करीने अने शुद्धोपयोग प्रगट करीने कर्मनो क्षय अने मुक्ति थाय छे. बधाय जीवोने माटे आ एक ज
उपाय कर्मक्षयनो छे; आ सिवाय बीजो कोई मार्ग तीर्थंकरोए जाण्यो नथी, कर्यो नथी, कह्यो नथी अने छे ज नहि.
तेमां ज स्थिर थईने–आ एक ज प्रकारथी–सर्वे तीर्थंकरोए कर्मनो क्षय कर्यो छे. ‘एक ज उपाय छे’ एमां ज
अनेकांत आवी जाय छे. स्वाश्रय ते ज उपाय छे ने पराश्रय ते उपाय नथी–एवो अनेकांत छे; निश्चय ते ज
उपाय छे ने व्यवहार ते उपाय नथी–एवो अनेकांत छे; शुद्ध उपयोग ते ज उपाय छे ने शुभ–अशुभ उपयोग ते
उपाय नथी–एवो अनेकांत छे. परंतु ‘निश्चय ते मुक्तिनो उपाय छे ने व्यवहार पण मुक्तिनो उपाय छे,
स्वाश्रय पण उपाय छे ने पराश्रय पण उपाय छे, शुद्ध उपयोग उपाय छे ने अशुद्धोपयोग पण उपाय छे’ –
आम मानवुं ते एकांत छे–मिथ्यात्व छे. एक प्रकार छे, ने बीजो कोई प्रकार नथी ए ज अनेकांत स्वरूप छे.
निश्चयरत्नत्रयथी धर्म थाय ने व्यवहार रत्नत्रयथी पण धर्म न थाय एवी मान्यतामां निश्चय–व्यवहारनी
एकत्वबुद्धि छे ते एकांत छे. आत्मस्वभावथी धर्म थाय ने रागथी पण धर्म थाय एवी मान्यतामां आत्मा अने
रागनी एकत्वबुद्धि छे, ते एकांत छे. निमित्तोना आश्रये धर्म थाय एम माने तेने स्व–परमां एकत्वबुद्धिरूप
एकांतवाद छे. पोताना स्वभावमां पुण्य–पापनी नास्ति छे. जो पुण्य–पापक्रियानी पोताना स्वरूपमां नास्ति न
माने तो मिथ्यात्व छे. जे पुण्य–पापथी आत्माने लाभ माने तेणे विकारने अने आत्माने एक मान्या छे. तेने
अरिहंत जेवा पोताना आत्मानी श्रद्धा नथी, ते अरिहंतोना मार्गे चालनारो नथी.
(श्रद्धा, ज्ञान) करे त्यारे ज सम्यग्दर्शन थाय छे. सम्यग्दर्शन थया पछी पूर्ण वीतरागचारित्र थया पहेलांं जे
शुभराग होय छे ते पण चारित्र–धर्मनुं कारण नथी. स्वभाव आश्रित शुद्ध उपयोग ते ज चारित्रधर्म छे. आ ज
एक प्रकारे अनंत तीर्थंकर भगवंतोए कर्मोनो क्षय कर्यो छे. स्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान ने स्थिरता ए एक ज प्रकार
मोक्षमार्गनो छे. ए प्रकारथी तीर्थंकरोए सर्व कर्मनो क्षय करीने शुद्ध आत्मस्वरूप पोते अनुभव्युं छे. एवा
तीर्थंकरो सर्वज्ञ अने वीतराग होवाथी परमआप्त छे, जगतना जीवोने आत्महितना उपदेष्टा छे. तीर्थंकरोन
उपदेश परमविश्वास योग्य छे. तीर्थंकरोए शुं उपदेश कर्यो?
भगवाने कह्युं नथी. भगवाननो उपदेश भविष्यकाळना जीवोने माटे पण एक ज प्रकारनो छे. धर्मनो बीजो
रस्तो छे ज नहि. आत्मानी श्रद्धा–ज्ञान–रमणता ते एक ज त्रणकाळ त्रणलोकना मुमुक्षुजीवोने माटे मोक्षनो
उपाय छे.
उपदेश्यो छे तेम ज भविष्यकाळना मुमुक्षुओने माटे पण ते एक उपाय ज स्थाप्यो छे.