: १९४ : आत्मधर्म : भादरवो : २४७४ :
द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भाव फरतां कांई धर्मनुं स्वरूप फरी जतुं नथी. आत्मानो स्वभाव सदाय एकरूप छे ने ते
स्वभावना आश्रये ज सदाय मोक्षमार्ग छे, तेथी मोक्षनो मार्ग सदाय एक ज प्रकारनो छे. जेम सुखडी मोटा
राजाने घेर करे के रंकने घेर करे, पण घी–गोळ अने लोट ए त्रण वस्तुनी ज थाय छे, पण घीने बदले पाणी वगेरे
नांखता नथी. आजे, भूतकाळे के भविष्यमां सुखडी करवानो एक ज उपाय छे. तेम अनंतकाळ पहेलांं, अत्यारे के
अनंतकाळ पछी बधाय मुमुक्षु जीवोने मोक्षनो उपाय एक ज प्रकारनो छे. पोताना शुद्ध आत्मस्वभावनी
ओळखाण अने तेना आश्रये सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी एकता सिवाय बीजो कोई उपाय नथी.
अरिहंतभगवानो पोते ते उपायथी धर्म पाम्या अने बीजा मुमुक्षुओने ते ज उपायनो उपदेश करीने सिद्ध थया.
शुद्धउपयोग ए ज अरिहंतोनो मार्ग छे
पोते भगवान थवा माटे भगवान जेवा पोताना आत्मानी ओळखाण करवी जोईए. पुण्य पापरहित
ज्ञानानंदस्वरूपनी श्रद्धा–ज्ञान अने तेमां स्थिरतारूप जे शुद्धोपयोग ते ज एक मात्र उपाय मोक्ष माटे भगवाने
कह्यो छे. आनाथी विरुद्ध बीजो कोई उपाय जेओ कहेता होय तेओ अरिहंतना मार्गे चालनारा नथी. सर्वज्ञदेवे
पोते जोयेला, करेला अने उपदेशेला वस्तुस्वरूपना नियमने जाण्या वगर सम्यग्दर्शन थाय नहि ने मोह टळे
नहि. विकार ते आत्मानो स्वभाव नथी एम भगवाने जाण्युं छे अने विकार टाळीने शुद्ध संपूर्ण ज्ञानदशा प्रगट
करी छे. जगतना जीवोने एवा शुद्धस्वरूपनो उपदेश कर्यो छे. ए रीते श्री जिनेन्द्रभगवान ‘मग्ग देसियाणं’
मार्गना देखाडनारा छे. भगवाने जेवो मोक्षमार्ग हतो तेवो देखाडयो छे, कांई नवो मार्ग कर्यो नथी.
जे अमारो मार्ग ते ज तमारो मार्ग
श्रीआचार्यप्रभु कहे छे के हे भाई! भगवाननी वाणी परमविश्वासयोग्य छे. भगवान कहे छे के,
स्वभावना आश्रये मोह–राग–द्वेषनो क्षय करवो ते ज मोक्षमार्ग छे, कोई राग मोक्षमार्गमां सहायकारी नथी.
पंचमकाळमां मोळा हीन पुरुषार्थी जीवो पाकशे तेमने माटे पण आ ज एक धर्मनो मार्ग छे, बीजो मार्ग नथी.
अमारी जेम बीजा मुमुक्षुओने पण भविष्यकाळे आ ज मार्ग छे. अमारामां ने तमारामां खरेखर फेर नथी,
अमे पण आत्मा, ने तमे पण आत्मा छो, अमारुं स्वरूप पुण्य–पाप रहित छे ने तमारुं स्वरूप पण पुण्य–पाप
रहित छे. तमारा पर्यायमां पुण्य–पाप थाय छे, पण अमे कहीए छीए के ते विकार तमारुं स्वरूप नथी. माटे
विकार रहित तमारुं पूर्ण स्वरूप समजीने तेनो आश्रय करो–ए ज मोक्षनो पंथ छे. जेम बधाय सिद्धोनुं स्वरूप
एक ज प्रकारनुं छे तेम बधा मुमुक्षुओने सिद्ध थवा माटेनो उपाय एक ज प्रकारनो छे.
स्वाश्रयभाव ते ज मोक्षमार्ग छे
स्वाश्रय एटले पोताना शुद्ध आत्मानो आश्रय, स्वभावमां एकता. स्वाश्रय ते सम्यग्दर्शन छे, स्वाश्रय
ते ज सम्यग्ज्ञान छे ने स्वाश्रय ते ज सम्यक्चारित्र छे. ए रीते स्वाश्रय ते ज मोक्षमार्ग छे. पराश्रयभाव थाय
ते मोक्षमार्ग नथी. व्यवहार रत्नत्रयना शुभ परिणाम पण परना आश्रये थाय छे, ते मोक्षमार्ग नथी. आवा ज
उपायथी भगवान अरिहंत थया अने पोते आवा ज प्रकारनो उपदेश आप्यो. श्रीकुंदकुंदभगवान पोते स्वाश्रित
मोक्षमार्ग अनुभवीने ते मोक्षमार्गनुं वर्णन करतां कहे छे के जे उपाय में बताव्यो ते ज उपाय सर्वे तीर्थंकरोए
कर्यो हतो अने उपदेशमां पण ते ज कह्युं हतुं. वर्तमान पोते स्वभाव–आश्रित निर्णय कर्यो तेमां त्रणेकाळनो
निर्णय आवी जाय छे.
भगवान शुं करीने मोक्ष पाम्या?
पूर्ण शुद्ध उपयोग प्रगट थतां पहेलांं व्यवहार रत्नत्रयरूप राग आवे खरो, पण तेना वडे कर्मनो क्षय
थतो नथी. निश्चयस्वभावना आश्रये ज कर्मनो क्षय थईने केवळज्ञान थाय छे–एम पोते आत्मामां अनुभवीने
अने ते ज प्रकारे बधायने उपदेश करीने अरिहंतप्रभु निःश्रेयस (मोक्ष) पाम्या छे.
तीर्थंकरोए जगतना जीवोने वारसामां ‘स्वाश्रित मोक्षमार्ग’ आप्यो
प्रभु मोक्ष पधारतां पहेलांं जगतना मुमुक्षु जीवोने मोक्षनो उपाय सोपी गया छे. अमे आ उपायथी
मोक्ष पामीए छीए ने जगतना मुमुक्षुओ पण आ ज उपायथी मोक्ष पामशे. जेम अंतिम समये बाप पोताना
पुत्रने मूडी सोंपी दे छे अने भलामणो करे छे, तेम अहीं परम धर्मपिता सर्वज्ञ प्रभु परम वीतराग आप्त