Atmadharma magazine - Ank 059
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४७४ : आत्मधर्म : १९५ :
पुरुष मुक्ति पामतां पहेलांं (सिद्ध थतां पहेलांं) तीर्थंकरपदे दिव्य उपदेश द्वारा जगतना भव्य जीवोने मोक्षनो
उपाय दर्शावे छे–तेमना स्वभावनी मूडी सोंपे छे. हे जीवो! तमारो आत्मा सिद्ध समान शुद्ध छे, तेने ओळखीने
तेनुं शरण लो. स्वभावनुं शरण ते मुक्तिनुं कारण छे, बहारनो आश्रय ते बंधनुं कारण छे. धर्मपिता तीर्थंकरो
आवो स्वाश्रित मोक्षनो पंथ बतावीने सिद्ध थया; अहो! तेमने नमस्कार हो.
साधक आत्माना परमपिता श्रीतीर्थंकरदेव छे. तेओ भलामण करे छे के अहो जीवो! आत्माने ओळखो,
आत्माने ओळखो. आत्माना स्वाधीन सत् पदार्थ छे, ते परना आश्रय वगरनो पोताथी परिपूर्ण छे.
भगवानने स्वाश्रयभावनी पूर्णता थतां केवळज्ञान थाय छे. समोसरण रचाय छे. दिव्यवाणी “
वीतरागभावे छूटे छे ने बार सभाना जीवो ते उपदेश सांभळे छे. भगवाननी वाणीमां एम उपदेश छे के
आत्माने ओळखो रे ओळखो, सर्व प्रकारे आत्मस्वभावनो ज आश्रय करो, ते ज मुक्तिनो रस्तो छे. पहेलांं
भगवाने पोते आवा उपायथी पूर्णदशा प्रगट करी अने पछी भव्योने एम ज उपदेशीने प्रभुश्री परमकल्याण
स्वरूप मुक्तिने प्राप्त थया. माटे मुक्तिनो आ ज मार्ग छे, अन्य कोई मार्ग नथी. अनंत तीर्थंकरोए दुदुंभीना
नाद वच्चे दिव्यध्वनिथी आ एक ज मार्ग जगतना जीवोने दर्शाव्यो छे; अहीं आचार्यदेव पोते वर्तमानमां
अनंत तीर्थंकरोना उपदेशनी जाहेरात करे छे. जेम मोटो भाई नानाभाईने कहे के ‘आपणा बापा तो आ
प्रमाणे कही गया छे. ’ तेम आचार्यभगवान जगतना जीवोने कहे छे के परम पिता अरिहंत भगवंतो आ
प्रमाणे मुक्तिनो मार्ग कही गया छे.
स्वाश्रयने कबूलनार जीव केवो होय?
जेणे अरिहंत जेवा पोताना आत्माने कबूल्यो अने स्वाश्रयभावनो स्वीकार कर्यो ते जीवे खरेखर
रागादिनो आश्रय छोडीने ज्ञानस्वरूपी आत्मानो ज आश्रय लीधो छे. जेणे ज्ञानस्वस्वरूपी आत्मानो आश्रय
लीधो ते जीवने मोहनो क्षय थईने मुक्ति थया वगर रहे ज नहि. तेने कर्मनी के काळनी शंका न पडे. जेने
स्वभावनो आश्रय कर्यो नथी ते जीवने ज पराश्रये एवी शंका पडे छे के– ‘हजी मारी मुक्तिनो काळ पाक्यो नहि
होय तो? मारा कर्म निकाचित हशे तो? हजी अनंत भव बाकी हशे तो?’ पण जेणे पोताना ज्ञानस्वभावनो
आश्रय कर्यो छे–श्रद्धा–ज्ञान कर्यां छे ते जीव काळ के कर्मनो आश्रय करतो ज नथी, स्वभावना आश्रये तेने
मुक्तिनो काळ पाकी ज गयो छे, ने कर्मनी स्थिति पण पाकी गई छे.
जिनशासनमां स्वाश्रयना पुरुषार्थनो आदेश छे, पराश्रयनो आदेश नथी.
‘जे जीवनी भवस्थिति पाकी गई होय तेने माटे आ स्वाश्रयनो उपदेश छे’ –एम आचार्यदेव नथी
कहेता. काळनो आश्रय नथी बतावता, पण आत्मानो आश्रय बतावे छे. पुरुषार्थवडे जे आत्मानो आश्रय करे
तेनी भवस्थिति पाकी ज गई छे. जो तुं स्वाश्रयनो पुरुषार्थ कर तो तारी मुक्ति छे ने जो तुं स्वाश्रयनो पुरुषार्थ
न कर तो तारी मुक्ति नथी. जेणे काळनी के कर्मनी ओथ लीधी तेणे परनो आश्रय लीधो छे, परना आश्रये
भगवाने मुक्ति कही नथी.
प्रश्न:– जेने अर्धपुद्गलपरावर्तन संसार बाकी होय तेने सम्यग्दर्शन थाय–एम शास्त्रोमां आवे छे ने?
उत्तर:– त्यां पण कांई पराश्रय बताव्यो नथी पण स्वभावनो आश्रय ज बताव्यो छे. सम्यग्दर्शननो
महिमा बताव्यो छे के जे जीव स्वभावनो आश्रय करीने सम्यग्दर्शन प्रगट करे ते जीवने अर्धपुद्गलपरावर्तन करतां
वधारे संसार तो न ज होय. स्वभावनो आश्रय करे तेने संसारनी लांबी स्थिति होय ज नहि. स्वाश्रयथी ज
निर्वाण छे एम भगवाने कह्युं छे. स्वाश्रित मोक्षमार्गमां कोई बीजा पदार्थो आडखील करे तेम नथी.
जिनेन्द्रदेवोए आत्मस्वभाव तरफना पुरुषार्थथी मुक्ति प्राप्त करी छे अने दिव्यध्वनिमां जगतना जीवोने
पुरुषार्थनो ज उपदेश कर्यो छे. हे जगतना जीवो;! संसार समुद्रथी पार थवा माटे साचो पुरुषार्थ करो, पुरुषार्थ
करो. जे जीव श्री जिनेश्वरदेवना उपदेश अनुसार पुरुषार्थपूर्वक मोक्षनो उपाय करे छे तेनो तो काळलब्धि अने
भवितव्य पण थई ज चूक्यां तथा कर्मनो उपशमादि पण थयो छे. माटे जे पुरुषार्थपूर्वक मोक्षनो उपाय करे छे तेने
तो अवश्य मोक्षनी प्राप्ति थाय छे अने जे जीव पुरुषार्थपूर्वक मोक्षनो उपाय करतो नथी तेने तो काळलब्धि अने
भवितव्य पण नथी तथा कर्मनो उपशमादि पण नथी. माटे जे पुरुषार्थ करतो नथी तेने मोक्षनी प्राप्ति थती नथी.