उपाय दर्शावे छे–तेमना स्वभावनी मूडी सोंपे छे. हे जीवो! तमारो आत्मा सिद्ध समान शुद्ध छे, तेने ओळखीने
तेनुं शरण लो. स्वभावनुं शरण ते मुक्तिनुं कारण छे, बहारनो आश्रय ते बंधनुं कारण छे. धर्मपिता तीर्थंकरो
आवो स्वाश्रित मोक्षनो पंथ बतावीने सिद्ध थया; अहो! तेमने नमस्कार हो.
आत्माने ओळखो रे ओळखो, सर्व प्रकारे आत्मस्वभावनो ज आश्रय करो, ते ज मुक्तिनो रस्तो छे. पहेलांं
भगवाने पोते आवा उपायथी पूर्णदशा प्रगट करी अने पछी भव्योने एम ज उपदेशीने प्रभुश्री परमकल्याण
स्वरूप मुक्तिने प्राप्त थया. माटे मुक्तिनो आ ज मार्ग छे, अन्य कोई मार्ग नथी. अनंत तीर्थंकरोए दुदुंभीना
नाद वच्चे दिव्यध्वनिथी आ एक ज मार्ग जगतना जीवोने दर्शाव्यो छे; अहीं आचार्यदेव पोते वर्तमानमां
अनंत तीर्थंकरोना उपदेशनी जाहेरात करे छे. जेम मोटो भाई नानाभाईने कहे के ‘आपणा बापा तो आ
प्रमाणे मुक्तिनो मार्ग कही गया छे.
लीधो ते जीवने मोहनो क्षय थईने मुक्ति थया वगर रहे ज नहि. तेने कर्मनी के काळनी शंका न पडे. जेने
स्वभावनो आश्रय कर्यो नथी ते जीवने ज पराश्रये एवी शंका पडे छे के– ‘हजी मारी मुक्तिनो काळ पाक्यो नहि
होय तो? मारा कर्म निकाचित हशे तो? हजी अनंत भव बाकी हशे तो?’ पण जेणे पोताना ज्ञानस्वभावनो
आश्रय कर्यो छे–श्रद्धा–ज्ञान कर्यां छे ते जीव काळ के कर्मनो आश्रय करतो ज नथी, स्वभावना आश्रये तेने
मुक्तिनो काळ पाकी ज गयो छे, ने कर्मनी स्थिति पण पाकी गई छे.
तेनी भवस्थिति पाकी ज गई छे. जो तुं स्वाश्रयनो पुरुषार्थ कर तो तारी मुक्ति छे ने जो तुं स्वाश्रयनो पुरुषार्थ
भगवाने मुक्ति कही नथी.
उत्तर:– त्यां पण कांई पराश्रय बताव्यो नथी पण स्वभावनो आश्रय ज बताव्यो छे. सम्यग्दर्शननो
वधारे संसार तो न ज होय. स्वभावनो आश्रय करे तेने संसारनी लांबी स्थिति होय ज नहि. स्वाश्रयथी ज
निर्वाण छे एम भगवाने कह्युं छे. स्वाश्रित मोक्षमार्गमां कोई बीजा पदार्थो आडखील करे तेम नथी.
करो. जे जीव श्री जिनेश्वरदेवना उपदेश अनुसार पुरुषार्थपूर्वक मोक्षनो उपाय करे छे तेनो तो काळलब्धि अने
भवितव्य पण थई ज चूक्यां तथा कर्मनो उपशमादि पण थयो छे. माटे जे पुरुषार्थपूर्वक मोक्षनो उपाय करे छे तेने
तो अवश्य मोक्षनी प्राप्ति थाय छे अने जे जीव पुरुषार्थपूर्वक मोक्षनो उपाय करतो नथी तेने तो काळलब्धि अने
भवितव्य पण नथी तथा कर्मनो उपशमादि पण नथी. माटे जे पुरुषार्थ करतो नथी तेने मोक्षनी प्राप्ति थती नथी.