Atmadharma magazine - Ank 059
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: १९६ : आत्मधर्म : भादरवो : २४७४ :
जिनेश्वरदेवोए स्वाश्रयनो पुरुषार्थ कर्यो अने तेओ स्वाश्रयनो ज पुरुषार्थ उपदेशे छे. श्रीजिनेन्द्रदेवनो
स्वाश्रित पुरुषार्थ करवानो उपदेश सांभळीने जे जीव तेम करे छे ते जीव अवश्य मोक्ष पामे छे. जेने पोताना
स्वभावनी पूर्णतानो संतोष नथी–विश्वास नथी ते ज परनो आश्रय करे छे, ते जीव कदी बंधनथी छूटतो नथी.
भगवाने तो आत्मानो पूर्ण स्वभाव बतावीने तेना ज आश्रयनो पुरुषार्थ करवानुं कह्युं छे, तेम न माने अने
विरुद्ध माने तो मुक्ति क्यांथी थाय?
सर्वज्ञनुं अनुकरण करीने तेमना जेवो पुरुषार्थ कर.
शरीरादि सारां रहे के नरसां रहे, –तेनो आश्रय छोड, देव–गुरु–शास्त्रनो आश्रय छोड, रागनो आश्रय
छोड अने क्षणिक पर्यायनो आश्रय छोड, आखा स्वभावने ओळखीने तेनो आश्रय कर. तारा आत्मामां
विकारनी एकता न करतां जेवो स्वभाव छे तेवो सरखो रहे तो तारी मुक्ति थाय. तारा आत्माने सर्वज्ञ जेवो
समजीने तुं सर्वज्ञनी ओथ लईने पुरुषार्थ कर, सर्वज्ञनुं अनुकरण करीने सर्वज्ञ पुरुषार्थ कर. सर्वज्ञदेवे स्वाश्रय
कर्यो तेम तुं तारा आत्मानो आश्रय कर. अज्ञानी जीवोनी ओथ लईने पराश्रय न कर. दीवाळीयो माणस
दीवाळीयानी ओथ लईने कहे के अमुक माणसे तो छ आनी तरीके देवुं चूकव्युं अने हुं तो आठ आना तरीके
चूकवुं छुं. पण शाहूकार तेम न करे, ते तो पूरेपूरुं ज चूकवे. तेम भगवानना भक्त साधक सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा
तो भगवान जेवो पोताने मानीने पूर्ण स्वाश्रयनो पुरुषार्थ करे छे. अज्ञानी जीवो पराश्रयने ज शोधे छे. धर्मी
जीव काळ के धर्मनी ओथ लईने पुरुषार्थमां छांदा पाडता नथी. पराश्रयनी स्वीकारता नथी, पण पोताना पूरा
स्वभावनी ओथ लईने पूर्णतानो ज पुरुषार्थ उपाडे छे. पुरुषार्थ हीन जीवो पराश्रयमां अटके छे, ते तेना घरे
रह्या, हुं तो मारा स्वभावनो आश्रय करीने पूर्ण पुरुषार्थ वडे मुक्ति पामवानो छुं. मुक्तिनो अन्य कोई मार्ग
नथी, –एम आचार्य भगवाननो आ गाथामां पोकार छे.
धर्मी जीव शुं करे छे?
वर्तमानमां ज परिपूर्ण भगवान जेवो पोतानो आत्मा छे, तेनो ज आश्रय धर्मी जीव करे छे. जे
स्वभावनो आश्रय करे ते विकारने पोतानुं स्वरूप माने नहि. जे विकारने पोतानुं स्वरूप माने ते जीव कदी
विकारनो आश्रय छोडीने स्वभावनो आश्रय करे नहि. ने तेने स्वाश्रयनो पुरुषार्थ प्रगटे नहि. पूर्वनो विकार
वर्तमानमां नडे अथवा तो पूर्वना सारा संस्कार होय तो अत्यारे धर्म थाय–एम धर्मात्मा जीव पूर्वपर्यायनो
आश्रय करता नथी, पण पोतानो स्वभाव अत्यारे ज परिपूर्ण छे एने स्वीकारीने, तेनो ज आश्रय करीने
दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी पूर्णताने पामे छे. आ ज मोक्षनो उपाय छे. पंचमकाळ छे तेने लीधे अत्यारे पूर्ण पुरुषार्थ
थतो नथी’ –एम नथी, पण जीव पोते स्वाश्रयमां संपूर्ण पणे टकी शकतो नथी ते पोताना ज पर्यायने कारणे
पुरुषार्थ नबळो छे. स्वाश्रयनी पूर्णता नथी करतो माटे मोक्ष थतो नथी.
स्वाश्रय सिवाय बीजो कोई मोक्षमार्ग कोई काळे नथी
भावि मुमुक्षुओने पण तीर्थंकरोए ए ज प्रकारना स्वाश्रित मोक्षमार्गनो उपदेश कर्यो छे. अने भविष्यमां
थनारा तीर्थंकरो पण ए ज प्रकारनो उपदेश करशे. भविष्यमां जेओ तीर्थंकरो थशे तेओ पण प्रथम तो मुमुक्षु
थईने भगवाननो उपदेश सांभळीने ज थशे, माटे तेमनो समावेश पण बधा मुमुक्षुओमां थई जाय छे.
पंचमकाळे के अनंतकाळे, सर्वे जीवोने पोताना आत्मस्वभावना आश्रय सिवाय बीजो कोई मोक्षनो मार्ग नथी.
अन्य संप्रदायोमां तो कदी मोक्षमार्ग होतो ज नथी, सत्य जैन संप्रदायमां पण कोई पण जीवने निमित्तना
आश्रयथी, रागना आश्रयथी व्यवहारना आश्रयथी के कोई संयोगना आश्रयथी, मोक्षमार्ग नथी. शुद्ध
वस्तुस्वभावना आश्रयथी ज जैनमतमां ज मोक्षमार्ग छे. बधाय तीर्थंकरोए आम ज कर्युं छे अने आम ज कह्युं
छे तेथी निर्वाणनो आ ज मार्ग छे, बीजो मार्ग नथी एम बराबर नक्की थाय छे.
आचार्यदेव पोताने प्रगटेला स्वाश्रयनी नि:शंक जाहेरात करे छे
‘अथवा, प्रलापथी बस थाओ; मारी मति व्यवस्थित थई छे. ’ तीर्थंकरोए जे उपदेश कर्यो ते कर्यो, में
मारा आत्मामां स्वाश्रये ज मुक्ति थाय एम नक्की करीने, स्वाश्रयभावने अंगीकार कर्यो छे. माटे हवे विशेष
विकल्पोथी बस थाव, बस थाव. मारी मति