वर्ष छठ्ठुं
अंक पहेलो
करतक
२४७५
वार्षिक लवाजम
त्रण रूपिया
छूटक अंक
चार आना
संपादक: – रामजी माणेकचंद दोशी वकील
मुबारक हो.मुबारक हो
गजल
घडी धन आज की सबको मुबारिक हो मुबारिक हो,
हुए जिनराज के दर्शन मुबारिक हो मुबारिक हो.
कहीं अरच कहीं चरच, कहीं जनरज गण गयन,
महातम जैनशासनका मुबारिक हो मुबारिक हो.
चँवर छत्रादि सिंहासन, प्रभाकर श्रेष्ठ भामंडल,
अनुपम शांतिमूद्रा ये, मुबारिक हो मुबारिक हो.
सफल हो कामना ‘सेवक’ यही अरदास है स्वामिन्,
श्री गुरुदेव व जिनशासन, मुबारिक हो मुबारिक हो.
– नुतन स्तवनावली.
अनेकान्त मुद्रणालय : मोटा आंकडिया : काठियावाड