Atmadharma magazine - Ank 062
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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: २२: ब्रह्मचर्य अंक : आत्मधर्म: ६२
ब्रह्मचर्यनी दीक्षा
आत्मधर्मना वांचकोने शुभ समाचार जणावतां हर्ष थाय छे के, कारतक सुद १३ ने रविवारना दिवसे
परम पूज्य सद्गुरुदेवश्री पासे नीचे जणावेल छ कुमारी बहेनोए जीवनभर ब्रह्मचर्य पाळवानी प्रतिज्ञा करी छे.
(१) मुक्ताबहेन (दोशी जगजीवन बाउचंदना सुपुत्री, सावरकुंडला.
(२) कंचनबहेन (शाह छोटालाल डामरभाईना सुपुत्री वढवाण केम्प.
(३) शारदाबहेन (शाह जगजीवन चतुरभाईना सुपुत्री, वढवाण शहेर.
(४) कंचनबहेन (स्व
मगनलाल त्रिभुवनदास ना सुपुत्री, वढवाण शहेर.
(५) दयाबहेन (मेता शीवलाल खीमचंदना सुपुत्री, राजकोट.
(६) कान्ताबहेन (स्व
माणेकचंद त्रिभुवनदास कामदारना सुपुत्री, अमरेली.
उपरना छए बहेनो बाल–ब्रह्मचारिणी छे. दरेक बहेननी उमर लगभग २२ वर्षनी आसपास छे,
आवी उंमरमां आवुं सुंदर कार्य करवा माटे छए बहेनो घणा अभिनंदनने पात्र छे; अने तेमने आज्ञा आपवा
बदल तेमना वडीलो पण धन्यवादने पात्र छे. आ ब्रह्मचर्य प्रसंग घणा उत्साहपूर्वक थयो हतो.
आ दिवसे सवारमां, ब्रह्मचर्य लेनारा छए बहेनो तरफथी श्री जिनमंदिरमां पूजन थयुं हतुं; त्यारबाद
सर्वे मुमुक्षुओ श्री जैन अतिथि सेवा समितिएथी एक नानकडा सरघसना रूपमां श्री जैन स्वाध्याय मंदिरे
आव्या हता, पूज्य गुरुदेवश्रीना व्याख्यान बाद छए बहेनो ब्रह्मचर्य लेवा माटे ऊभा थया हता. आ प्रसंगे
तेमना वडीलोनी हाजरी हती अने तेओए ब्रह्मचर्य लेवा माटे ते बहेनोने रजा आपी हती; बहेनोना मुख
उपर उत्साह अने वैराग्य जणातो हतो.
परम पू गुरुदेवश्रीए सौथी पहेलांं मांगळिक संभळाव्या बाद कह्युं हतुं के, “छए बोल–ब्रह्मचारी
बहेनो वीस–बावीस वरसनी नानी उंमरमां जावज्जीवन ब्रह्मचर्य ले छे ते बहु सारुं काम करे छे. तेओ
सत्समागमे रहीने तत्त्वना अभ्यासपूर्वक ब्रह्मचर्य ले छे. ब्रह्मचर्यनो रंग लगाडवो ते तत्त्व समजवा माटे
पात्रता छे... श्रीमद् राजचंद्रजीए कह्युं छे के–
पात्र विना वस्तु न रहे, पात्रे आत्मिक ज्ञान;
पात्र थवा सेवो सदा, ब्रह्मचर्य मतिमान.
पात्र थईने आत्मानुं लक्ष करवा माटे ब्रह्मचर्यनो रंग होय तो ते आगळ वधवामां निमित्त थाय. पुरुषो
बाल ब्रह्मचारी रहे, ते तो स्वतंत्र छे तेथी रही शके. पण आ बहेनो नानी उंमरमां ब्रह्मचर्यनी प्रतिज्ञा करे छे ते
घणी हिंमत छे, घणुं जीवोए आ वात अनुमोदवा जेवी छे.
जे नव वाड विशुद्धथी, धरे शियळ सुखदाई;
भव तेनो लव पछी रहे, तत्त्ववचन ए भाई.
‘विशुद्धथी’ एटले यथार्थ तत्त्वद्रष्टिपूर्वक जेने ब्रह्मचर्य होय तेने विशेष भव होय नहि; सत्समागमे
रहीने तत्त्वद्रष्टिपूर्वक ब्रह्मचर्य होय तेने एकाद भव बाकी रहे. व्यभिचार ते संयोग छे; संयोगीद्रष्टि छोडीने
असंयोगी आत्मानुं लक्ष करवा माटे अब्रह्मचर्य छोडीने ब्रह्मचर्यनो प्रेम जरूरनो छे.
ब्रह्मचर्य लेनार रहेनो एम ने एम ऊडसूड–वेगथी ब्रहचर्य लई लेता नथी; दरेक बहेनो अहीं चार–
पांच वर्ष थया अपूर्व तत्त्वनुं श्रवण ने अभ्यास करे छे. तत्त्वनुं निरंतर श्रवण करीने घेर विचारे छे ने समजे
छे. ए रीते विचारीने आ कार्य करे छे. लोकोए आ कार्यनुं अनुकरण करवा जेवुं छे......”
...त्यारबाद, पूर्वे कोई कुदेव–कुगुरु वगेरेना सेवनथी तथा साचा देवगुरुना अविनय–आसातना
आदिथी, हिंसाथी पापोथी, विषयवृत्तिथी वगेरे प्रकारे जे दोषो लाग्या होय तेनुं अनंत सिद्धोनी साक्षीए,
संतोनी साक्षीए प्रायश्चित् ‘मिच्छामि दुक्कडं” कराव्युं हतुं......
...त्यारबाद ब्रह्मचर्यनी प्रतिज्ञा आपतां कह्युं हतुं के, आत्माने आगळ वधवा माटे ने अब्रह्मना पापने
छोडवा माटे सिद्ध भगवाननी साखे, चार तीर्थनी साखे, देव–गुरुनी साखे ने पोताना आत्मानी साखे
जावज्जीवनपर्यंत–आखी जिंदगी ब्रह्मचर्य पाळवुं...