माटे ते बहेनोने जेटलो धन्यवाद आपवामां आवे तेटलो ओछो छे. (बहेनोनां नाम वगेरे समाचार आ
अंकमां अन्यत्र छे.) सोनगढमां रहीने ते बहेनो लांबा वखतथी तत्त्वज्ञाननो अभ्यास करे छे अने निरंतर
पूज्यपाद सद्गुरुदेवश्रीना व्याख्यानोनो तेम ज भगवती बहेनो श्री चंपाबहेन अने शांताबहेनना समागमनो
लाभ लई रह्यां छे. लांबा वखतना तत्त्वज्ञानना अभ्यासपूर्वक एक साथे छ कुमारिका बहेनोना जीवनभर
ब्रह्मचारी रहेवानो आवो बनाव जैन जगतमां लांबा काळथी बन्यानुं जोवामां आवतुं नथी, तेथी ते जेटलो
प्रशंसनीय छे तेटलो ज विरल छे. ते बहेनोनो हेतुं तत्त्वज्ञानना अभ्यासमां आगळ वृद्धि करवानो छे, ते
भावना तेमना ब्रह्मचर्यने विशेष देदीप्यमान बनावे छे.
हेतुं वगेरे होय छे, पण जेनी पाछळ परम सूक्ष्म तत्त्वज्ञानना लांबा वखतनुं अभ्यासनुं बळ होय अने जेनी
साथे ते ज प्रकारना तत्त्वज्ञानने विशेष विस्तृत करवानी भावना होय–एवो बनाव हालमां जोवामां आवतो
नथी. ज्यारे आ पुण्यभूमिमां तीर्थंकर भगवंतो विचरता हता अने तेमना दिव्यध्वनिवडे आ देशमां धीकती
धर्मपेढी चालती हती, तेम ज ज्यारे आत्मज्ञानी संत–मुनिवरोना टोळां ज्यां जोईए त्यां देखवामां आवता
अने तेमनी पासेथी परम सूक्ष्म तत्त्वज्ञाननो लाभ जगतना जीवोने मळतो त्यारे तो आवा प्रकारना
ब्रह्मचर्यादिना अनेक बनावो बनता, परंतु अत्यारे तो लोकोनी वृत्ति घणी ज बाह्य थई गई छे, धर्मना नामे
पण बाह्य वृत्तिओ पोषाई रही छे, जैनधर्मना नामे प्राय: अजैनत्वनो उपदेश जोर शोरथी चाली रह्यो छे अने
ए रीते वर्तमानमां जे मोक्षमार्ग बहु सुषुप्त अने बहु लुप्त अवस्थामां पड्यो छे तेने सर्वथा लुप्त करी देवाना
प्रयत्नो जैनधर्मना नामे चाली रह्या छे.
प्रभावना योग सहित आ काळे प्रागट्य थयुं छे अने निरंतर तेमना परम तत्त्वज्ञानना उपदेशनो लाभ हजारो
गामे मुमुक्षुओ लई रह्या छे. ज्यारे चारे तरफ गृहित मिथ्यात्वना पोषणनी पेढीओ चाली रही छे त्यारे आ
परम तत्त्वज्ञान प्राप्त करवा माटेनी धीकती पेढी शरू थई छे अने खूब प्रफुल्लित थई छे ने थती जाय छे; तेनां
अनेक सुशोभित, मीठां–मधुर अने सुखमय फळो आव्या छे; अने तेमानुं एक सुशोभित–मीठुं–मधुरुं अने
सुखमय फळ आ छ बहेनोना ब्रह्मचर्य लेवानो बनाव छे.
बहेनोए प्रगट करी छे अने ते पण तत्त्वज्ञानना अभ्यासमां आगळ वधवा माटे छे. आ कार्य एवुं सुंदर छे के
ते प्रत्ये सहृदय माणसोने प्रशंसाभाव आव्या वगर रहे नहि.
टळीने आवा प्रकारना शुभभाव आव्या वगर रहेता नथी. तत्त्वज्ञाननी द्रष्टिए ए शुभ भावनुं कार्यक्षेत्र केटलुं
छे ते तेओ जाणे छे. वळी तेओ समजे छे के सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी एकता ज मोक्षमार्ग छे, सम्यग्दर्शन
वगर मोक्षमार्ग होतो नथी; तेथी ते माटेना पुरुषार्थनी ज तेमनी भावना छे, तेमनी ए भावना सफळ