Atmadharma magazine - Ank 063-064
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष छठ्ठुं संपादक: पोष – महा
अंक त्रीजो – चोथो रामजी माणेकचंद दोशी २४७५
पूर्णताने लक्षे शरूआत
जो पोते पोताना आत्मानी परिपूर्णता छे तेने न
माने तो परनो आश्रय मान्या वगर रहे नहि, अने तेथी ते
जीव पर साथे एकताबुद्धि छोडीने पोताना परिपूर्ण स्वभाव
तरफ वळे नहि, ने तेने धर्म थाय नहि. माटे आचार्यदेव कहे
छे के तारो आत्मा ज्ञानथी परिपूर्ण छे, श्रुतना आधारे तारुं
ज्ञान नथी; माटे श्रुतनो आश्रय छोडीने तारा परिपूर्ण
ज्ञानस्वभावनो आश्रय कर, तेना ज आश्रये धर्म प्रगटे छे
ने मुक्ति थाय छे.



वार्षिक लवाजम छुटक अंक
त्रण रूपिया चार आना
अनेकान्त मुद्रणालय : मोटाआंकडिया : काठियावाड